Friday, December 12, 2014

मृत्यु सिर्फ़ मृत्यु को देखती है - अदूनिस


(जारी)

५.

संस्थागत बना दी गयी भाषा “मैं” और “दूसरे” के ऊपर बाढ़ की तरह बहती है और स्वाधीनता और लोकतंत्र की बुनियादों को झकझोर कर रख देती है. मृत्यु और कत्ले-आम की इस भाषा में “मैं” और “दूसरा” अपनी मृत्यु खोजा करते हैं.

मृत्यु सिर्फ़ मृत्यु को देखती है. पहले से ही मरा हुआ “मैं” “दूसरे” को स्वीकार नहीं कर सकता – वह उसे अपनी ही छवि में देखता है जो कि मृत्यु की छवि है. फ़िलहाल हमारी कविता इसी तरह की मृत्यु के भीतर घूमती नज़र आती है.

अदूनिस
पेरिस, ९ मार्च १९९२


(समाप्त)

1 comment:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना शनिवार 22 दिसंबर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!