सफ़ेद - बर्फ
न बादल निकल रहे हैं दरवाज़ों से,
काले
न सफ़ेद आसमान,
पिघल रही है
चौकोर बंद कमरे में
बर्फ़,
उतनी ही,
जितनी जगह है,
उस बंद सूटकेस
और दरवाज़े पर खड़ी,
खाली चप्पल से
बची हुई.
सफ़ेद - पानी
पहाड़ के मकान में
ऊंची खिड़कियों से,
घुल घुल कर घुस रहा है
दूधिया पानी,
बिसरता जा रहा है
गीला मन,
उँगलियों और
पन्ने के बीच,
शब्दों पर पसरती जा रही है रज़ाई
आज रात
कुछ नहीं लिखा जाएगा.
सफ़ेद - भाप
पिछली बर्फ सफ़ेद है अब भी,
पैर चले नहीं
पत्ते भी गिरे नहीं,
साल भर रुकी नहीं
एक सूरज भर रौशनी,
की खुल जाए रास्ता यहाँ,
एक पीला शब्द आ कर
घुस जाए
जमी हुई भाप में,
शिनाख़्त हो कि
ज़िंदा पाँव गुज़र सकता है
इस बंजर से अब भी,
और वो अकेली गिलहरी
चैन की सांस ले कर
एक बार फिर
गुम हो जाए.
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