युद्धबन्दी
-अजन्ता देव
हताशा से मेरा गला सूख गया
फिर से मेरा ही नाम दर्ज हुआ
दुनिया की किसी भी भाषा में
नफ़रत से बोला गया नाम
मेरे नाम में बदल जाता है
हर युद्ध की मै क़ैदी हूँ
हर युद्ध मुझसे छीनता रहता है
आसमान पेड़ गीत और मोटा अनाज
कुछ दूर तक का वक्फा भी नहीं मिलता रिहाई का
कि फिर पकड़ लिया जाता है
कितने सत्तावन सैतालीस पैंतालीस चार पांच तेरह सौ अट्ठारह सौ उन्नीस सौ दो हज़ार ग्यारह बारह तेरह और आगे भी जाने कितने
मुझ पर पूरी दुनिया का दावा है
इसलिए मुझे कोई नहीं जानता
कोई देश नहीं कहता आगे आकर
यह युद्धबन्दी मेरा है
सिर्फ घोड़ों की आँखों में आंसू आ जाते हैं हर बार
पेड़ों से टपकता है खारा पानी
मछलियाँ उलट जाती हैं समंदर में
ज़मीन फट कर खाई बन जाती है
जिसमे दुबके बच्चे फैली आँखों से इन्तेज़ार करते हैं
सुर्ख धमाकों का
आसमान पर मंडराने लगता है भूतिया जहाज़ ...
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