Monday, December 22, 2014

ज़रीन दारूवाला को श्रद्धांजलि


९ अक्टूबर १९४६ को जन्मीं ज़रीन शर्मा (दारूवाला) को चार साल की आयु में ही एक बड़ी संगीत प्रतिभा मान लिया गया था. सरोदवादिका के तौर पर अपनी अलग पहचान बना चुकी ज़रीन के उस्तादों में संगीत के बड़े नाम जैसे पं. हरिपद घोष, पं. भीष्मदेव वेदी, पं. लक्ष्मणप्रसाद जयपुरवाले, पं. वी.जी. जोग. डॉ. एस. सी. आर. भट्ट और पद्मभूषण डॉ. एस. एन. रत्नाकर शामिल थे. सरोद जैसे मुश्किल वाद्य पर ज़रीन की उम्दा पैठ थी और उन्होंने उसमें अपनी एक अलग शैली विकसित की. उनकी खूबी यह थी कि वे उन रागों को उन तालों पर बजाती रहीं जो आमफ़हम नहीं होते थे.

मात्र १३ वर्ष की आयु में उन्होंने आकाशवाणी की संगीत प्रतिस्पर्धा जीती और उसके बाद वे संगीत में उत्तरोत्तर नए मुकाम हासिल करती गईं. जब वे चौदह की हुईं उन्होंने तक हिन्दी फिल्म के लिए टाइटिल संगीत बजाया. कुछ सालों बाद फ़िल्मी संगीत से उनका लम्बा सम्बन्ध शुरू हुआ और ऐसा करने वाली वे पहली महिला संगीतकार थीं. १९८८ में संगीत नाटक अकादेमी पुरूस्कार सहित उन्होंने तमाम इनामात हासिल लिए. २००७ में उन्हें दादासाहेब फाल्के अकादेमी अवार्ड दिया गया. मशहूर संतूर वादक उल्हास बापट उनके शागिर्द रहे हैं. अभी बीती 20 दिसंबर को उनका देहांत हुआ.

इस महान सरोदवादिका को कबाड़खाने की श्रद्धांजलि.


सुनिए उनका बजाया राग मालकौंस –

  

Zarin Daruwala - Sarod - Raga Malkauns

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