Wednesday, December 10, 2014

अच्छे दिन आर जस्ट राउंड द कॉर्नर

बीबीसी के संवाददाता वुसतुल्लाह खान का एक व्यंग्य आपने कल पढ़ा था. आज उन्हीं का एक और आलेख बीबीसी से साभार -



बस कुछ ही दिनों की तो बात है, आपके साथ भी वही होने वाला है जो मेरे साथ हो रहा है.

आपका बच्चा भी मेरे सबसे छोटे बालक की तरह आपका ज्ञान आप ही के सिर पर पटक देगा.

मेरी पीढ़ी को इसी इस्लामी जम्हूरिया पाकिस्तान के एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में ये पढ़ाया गया था कि हमारा इतिहास मोहन जोदड़ो से शुरू होता है.

पर आज मेरा बालक अपनी किताब खोलते हुए कहता है, बाबा आपको इतना भी नहीं पता कि हमारा इतिहास मोहम्मद बिन कासिम से शुरू होता है.

मेरी पीढ़ी को पढ़ाया गया कि मानव को वर्तमान शरीर में आने तक लाखों वर्ष लगे.

मेरा बच्चा ये बात सुनकर कहता है, बाबा क्या आप वाकई मुसलमान हैं, आपको किसी ने नहीं बताया कि अल्लाह मियाँ ने एक मिट्टी का पुतला बनाकर उसमें आत्मा डाली और फिर उसे पृथ्वी पर भेज दिया...ये देखिए ये लिखा है मेरी पुस्तक में.

कब बना पाकिस्तान?

मेरी पीढ़ी को पढ़ाया गया कि पाकिस्तान १९४७ में बना.

मेरा बच्चा झुंझलाते हुए कहता है...बाबा आपको बीबीसी में किसने नौकरी दे दी...हमारे मास्टर साहब कहते हैं पाकिस्तान उसी दिन बन गया था जिस दिन इस उप-महाद्वीप में पहला आदमी मुसलमान हुआ.

अगर आपका बेटा या पोता आने वाले दिनों में आपसे पूछे कि मोटरकार किसने ईज़ाद की तो फट से किसी जर्मन कार्ल बेंज़ का नाम न ले बैठिएगा, वो फौरन अपनी क्लास में पढ़ाई जाने वाली दीनानाथ बत्रा की पुस्तक खोलकर दिखा देगा कि अब्बा जी, पहली कार महाभारत के युग में एक महान ऋषि ने बनायी थी.

'कथा-वथा'


और ख़बरदार, कभी अपने बच्चे को नहीं बताइएगा कि आर्य कौन थे और कहाँ से आए थे, वरना वो आपको आत्म-विश्वास के साथ समझाएगा कि आर्य-वार्य कुछ नहीं होता, हम लोग इस जगत के जन्म से भी पहले से भारतवासी हैं.

और ध्यान रखिएगा कि रामायण या महाभारत सुनाते समय कहीं मुँह से कथा का शब्द न निकल पड़े.
वरना मेरी ज़िम्मेदारी नहीं अगर बालक, इंडियन काउंसिल ऑफ़ हिस्टोरिकल रिसर्च के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर सुदर्शन राव के अनुसंधानिक विचार मुँह पर न दे मारे, कि बाबा जी आपने क्या पूरा जीवन भांड़ झोका जो ये तक नहीं मालूम की रामायण और महाभारत में जो भी है वो कथा-वथा नहीं बल्कि जैसा प्राचीन समय में हुआ वैसा ही बताया गया है, उपन्यास तो अभी १००-२०० बरस पहले ही पश्चिम में आया.

'गंदे लोग'


मैंने अपने लाड़ले सुपुत्र को जब बताया कि मेरी क्लास में दो हिंदू, एक ईसाई और चार-पाँच अहमदी बच्चे भी पढ़ते थे और हम सब एक साथ परीक्षा की तैयारी करते थे तो मेरे बेटे ने इस पर ध्यान देने के बजाय ये पूछा कि फिर तो आप लोग साथ बैठकर खान-पान भी करते होंगे.

मैंने कहा, हाँ करते थे, इसमें क्या मसला है....तौबा-तौबा बाबा आप कितने गंदे हैं...मेरी क्लास में तो बस एक अहमदी लड़का है मगर हम तो उससे हाथ भी नहीं मिलाते.

आप बिल्कुल चिंतित न हों, आपका बच्चा या पोता भी साल-दो साल बाद ऐसा ही बताया करेगा कि बाबा हमारी क्लास में दो ईसाई और तीन मुसलमान बच्चे भी हैं पर हममें से कोई भी उनसे हाथ नहीं मिलाता.

... ये लोग गंदे होते हैं ... है न बाबा ...

अच्छे दिन बस नुक्कड़ पर ही तो हैं...

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