कल कबाड़ी अनिल
यादव ने अपनी फेसबुक वॉल पर पटना के पत्रकार रघुवेंद्र दुबे की यह पोस्ट शेयर की
है. बहुत ध्यान से पढ़े जाने की दरकार रखता है रघुवेंद्र जी का यह वक्तव्य –
“मैं ६ दिसंबर का
प्रत्यक्षदर्शी और उसके बाद के दंगे कवर करने वाले पत्रकारों में से एक हूं.
निसंदेह बाबरी का जमींदोज़ किया जाना हमारे लोकतांत्रिक इतिहास की सबसे बड़ी
सांप्रदायिक गुंडागर्दी थी. उस दिन लग रहा था अब भारत का नाम और नक्शा पुराना वाला
नहीं रह जाएगा ... लेकिन अकल्पनीय और सबसे बुरा घटित हो जाने के बाद मुझे लगता है
कि सत्ता हथियाने की सांप्रदायिक कारगुजारियों और तिकड़मों के खिलाफ लोग अधिक सचेत
और मुखर हुए हैं. दोनों फिरकों में धर्म की पतनशील भूमिका और ऐसे राजनेताओं, मुल्लाओं, बाबाओं का मजाक
उड़ाने वाले युवाओं की तादाद बढ़ रही है. मोदी की सूपड़ा साफ जीत का कारण सिर्फ
सांप्रदायिक ध्रुवीकरण नहीं, कारपोरेट की गोद में बैठे
सेकुलरों के राजकाज के प्रति गहरी हताशा भी थी. बिल्कुल संभव दिखता है कि इसी
हताशा का नवीनीकरण मोदी को भी एक दिन उपहास का पात्र बनाकर विदा कर देगा.”
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