बच्चा
-अजंता देव
पैसे वालों की भीख नहीं है
नहीं है मेमसाहब की उतरन
बड़े घरों की जूठन भी नहीं
यह उसका बच्चा है
उसकी अपनी देह
भले पली हो माँगी हुई रोटियों पर
बच्चे के शरीर में माँ का खून है
वह सूंघता है
माँ के पसीने की महक
और सो जाता है
माँ सहलाती है मुलायम पीठ
बच्चा हंसता है नींद में
पर हंसते नहीं हैं पैसेवाले
वे तब तक डरते रहेंगे
जब तक गरीब माँ की गोद में
हंसता रहेगा बच्चा
1 comment:
दिल तक पहुँचनेवाली बेहद खूबसूरत कविता .चित्र जैसी ही ...
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