नाज़िम हिकमत और पिराये, उनकी पत्नी, जिन पर उन्होंने जेल से कुछ प्रेम-कवितायेँ लिखी थीं, जो अब विश्व साहित्य की धरोहर हैं. |
दलील
-नाज़िम
हिकमत
किसी
घोड़ी के सिर की जैसी आकृति वाला यह मुल्क
सुदूर
एशिया से दौड़ता चला आता है
भूमध्यसागर
तलक पसरते जाने को
हमारा
है यह मुल्क.
खून
सनी कलाइयां, भिंचे हुए दांत,
नंगे
पैर,
बेशकीमती
रेशमी गलीचे सरीखी धरती,
हमारा
यह नरक, यह स्वर्ग हमारा है.
बंद
हो जाने दो दरवाजों को जो हमारे हैं
कभी न
खुलने दो उन्हें
ख़त्म
करो आदमी का आदमी को गुलाम बनाना
हमारी
है यह दलील.
जीना!
एक दरख्त की तरह अकेले और आज़ाद
भाईचारे
में रह रहे एक जंगल की मानिन्द
यह ख्वाहिश हमारी
है.
(नोट: कहीं-कहीं इस कविता को 'घुड़सवार का गीत' शीर्षक भी दिया जाता है.)
(नोट: कहीं-कहीं इस कविता को 'घुड़सवार का गीत' शीर्षक भी दिया जाता है.)
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