(पिछली कड़ी से जारी)
आप ने यहाँ ब्रिटेन में पत्रकारिता का काम किया और तब आपके जीवन में वह महत्वपूर्ण क्षण आया था जब आप नौकरी छोड़कर अपने बच्चों के साथ उत्तरी यॉर्कशायर जा बसे थे और वह भी उन तीन हज़ार पाउंड्स की हिम्मत पर जो आपको एक किताब लिखने के लिए मिलने वाले थे, और उसके बाद आप अपने बच्चों की परवरिश के अलावा ‘द लॉस्ट कंटीनेंट’ लिखने को यात्रा पर निकलने वाले थे. यह सुनना ही डरावना लगता है?
मेरे लिए भी वह डरावना ही था और इस का पूरा श्रेय मेरी पत्नी को जाता है कि मैं वैसा कर सका. हुआ ये कि मैं फ्लीट स्ट्रीट में काम कर रहा था और अखबारों में उपसंपादक के तौर पर मेरा करियर खासा सुखद था. एक बार छुट्टियों में हम यॉर्कशायर गए हुए थे और मेरे ख्याल से मैं रोज़ के काम पर आने-जाने के क्रम से सामान्य से कहीं ज्यादा उकताया हुआ था. रोज़ गाड़ी लेकर लंदन में प्रवेश करने और वहां से बाहर निकलने से मैं ऊब चुका था और मैं लिखना भी चाहता था. यह मेरी हमेशा से ख्वाहिश रही थी कि मैं लिख कर अपना पेट पालूँ. यॉर्कशायर से वापस आते समय मैं कुछ ज्यादा ही झींकता रहा होऊँगा क्योंकि वापस काम पर जाने के बाद एक दिन मेरी पत्नी ने मुझे फोन किया, जो वह आम तौर पर नहीं करती और बोली – “मैं तुम्हें यह बताना चाहती हूँ कि मैंने मकान को बिक्री के लिए बाज़ार में लगा दिया है.” और मैंने कहा – “तुम ने क्या ...?” तो वह बोली “और बड़ी बात यह है कि कुछ लोग कल उसे देखने आ रहे हैं.” तो उन लोगों ने अगले दिन आकर मुंहमांगी कीमत अदा की और मकान खरीद लिया, तो एक तरह से मुझे जबरन ऐसा करने को धकेला गया. मैं भयाक्रांत था क्योंकि वयस्क होने के बाद से कभी भी मैं बगैर तनख्वाह के नहीं रहा था.
आपकी किताब का विचार वापस अमेरिका जाकर वहां की छोटी छोटी जगहों की यात्रा करने का था और नतीजे में जो सामने आया वह ‘द लॉस्ट कंटीनेंट’ था. आप के यात्रा लेखन में बार बार आने वाली इस चीज़ ने मुझे बहुत मुग्ध किया है कि आप एक साथ आउटसाइडर भी हो जाते दीखते हैं और इनसाइडर भी. इस मामले में आप एक अमेरिकी थे जो वापस जाकर अमेरिका के बारे में लिखने जा रहा था. जब आप अपने घर के बारे में लिख रहे थे तब क्या आप को किसी आउटसाइडर जैसा महसूस हुआ था?
मेरे ख्याल से मुझे एक हद तक हमेशा ऐसा लगता रहा. बाकी और लोगों से कहीं ज्यादा मैं असल में आयोवा से बाहर निकला कर कहीं और बस जाना चाहता था. मुझे बस यह लगता था कि मैं दूसरों की तरह उसके भीतर ठीक से फिट नहीं हो पाता था. तब मैं यहाँ आया और मैंने पाया कि एक विदेशी के रूप में ब्रिटेन में रहना कितना आह्लादकारी होता है. यह एक बेहतरीन स्थिति होती है. जब सब कुछ ठीक ठाक चल रहा हो तो आप आगे बढ़कर समारोहों वगैरह में हिस्सेदारी कर सकते हैं और हर चीज़ बहुत अच्छी होती है. और जब सब कुछ ठीक न चल रहा हो, जो यहाँ के मामले में पूरी तरह एक परिकल्पित स्थिति होती है, जैसे कि मान लीजिये आपकी राष्ट्रीय फ़ुटबाल टीम जर्मनी से हार गयी तो आप पीछे खड़े रहते हुए कह सकते हैं कि क्या शर्म की बात है.
तो जब आप ब्रिटेन में बीस साल रहने के बाद ‘नोट्स फ्रॉम अ स्मॉल आइलैंड’ लिखने जा रहे थे क्या ब्रिटेन में तब भी आप अपने को एक आउटसाइडर महसूस करते थे?
मैं यहाँ हमेशा बहुत सुकून से रहा हूँ. यहाँ आकर मुझे बहुत जल्दी ही घर जैसा लगने लगा था और मैं यहाँ वाकई बस गया और खुश था. विदेशी होना मेरी खुसूसियत थी. मैं एक अमेरिकी हूँ. मैं हमेशा था भी और यही मेरा पहचान चिन्ह था और एक तरह से अच्छा था. मैंने उसका बड़ा लुत्फ़ उठाया. इस आप कुछ अलग और ख़ास बन जाते हैं. मेरे लिए यह समस्या तब बनी जब मैं वापस अमेरिका गया और मेरे पास अचानक यह विशिष्टता नहीं रही थी. वहां जो मैं था एक अमेरिकी था जिसकी आवाज़ मजेदार सी थी और लोगों को सही सही पता ही नहीं रहता था कि वे मेरे बारे में किस तरह सोचा करें.
(इसके बाद बिल ‘नोट्स फ्रॉम अ स्मॉल आइलैंड’ से एक अंश पढ़कर सुनते हैं जिसे संभवतः कोई आउटसाइडर ही समझ सकता है.)
‘नोट्स फ्रॉम अ स्मॉल आइलैंड’ के बाद आप वापस अमेरिका चले गए और मैं जानता हूँ कि ऐसा करना आपके लिए कोई आसान सांस्कृतिक फ़ैसला नहीं रहा था. सच यह है कि आपने एक दफा कहा था कि आप जीवन में तीन काम नहीं कर सकते – पहला, आप टेलीफोन कम्पनी को हरा नहीं सकते, दूसरा आप किसी वेटर की निगाह में तब तक नहीं आ सकते जब तक कि वह आपको देखने को तैयार न हो और तीसरा यह कि आप कभी घर वापस नहीं जा सकते. तो क्या आप वापस घर जा पाए?
बहुत मुश्किल था. मेरी उम्मीदों से कहीं ज्यादा मुश्किल. मैंने सोचा था कि मैं बस वहां जा रहा हूँ जो मेरे लिए बहुत परिचित था, लेकिन दिक्कतें तमाम तरह की थीं. पहली यह कि मैं काफी लम्बे समय से बाहर रह रहा था, और मैं अपनी कई आदतों और सोचने के तरीकों में ‘अँगरेज़’ बन चुका था. सो यह एक बड़ी समस्या थी. और अमेरिका भी बहुत बदल गया था. और आख़िरी यह कि मैं वयस्क होने के बाद अमेरिका में रहा ही नहीं था; मैं हमेशा किसी न किसी का बच्चा रहा था. सो वे सारी चीज़ें जो आप बड़े होने पर ही करते हैं – पेंशन लेना, चीज़ें गिरवी रखना वगैरह, वे सब मैंने ब्रिटेन में की थीं. अमेरिका में मेरे पिताजी ने यह सब किया था. सो मैं अपने ही देश में एक तरह से असहाय था. मुझे किसी हार्डवेयर स्टोर में सामान तक मांगना नहीं आता था. मुझे चीज़ों के नाम याद ही नहीं रह गए थे. मेरे वार्तालाप अक्षरशः इस तरह के हुआ करते थे – “मुझे थोड़ी सी वो अजीब सी चीज़ चाहिए जिनसे दीवारों के छेड़ भरे जाते हैं.” मेरी पत्नी के देश के लोग उसे ‘पौलीफीलिया’ कहते हैं, वहां वे उसे ‘स्पेकल’ कहते थे. बचपन से ही इतनी अंतरंगता से परिचित ऐसी जगह पर अलग-थलग पड़ जाना बेहद अटपटा था.
मुझे इस बात की भी आदत पद गयी थी कि यहाँ ब्रिटेन में आप बात बात पर लतीफे गढ़ सकते हैं पर अमेरिका में ऐसा करना बहुत खतरनाक होता. इस बारे में मैंने अपनी एक किताब में लिखा है. एक बार मैं बोस्टन में कस्टम और इमीग्रेशन से गुज़र रहा था तो वहां पर मौजूद आदमी ने मुझ से पूछा “कोई फल या सब्जियां?” तो मैंने जवाब दिया “ठीक है, चार किलो आलू दे दीजिये.” उस वक्त मुझे ऐसा लगा था कि वह मुझे दबोच कर फर्श से चिपका देने वाला था.
आपने अक्सर अमेरिका में एक अलग तरह के सेन्स ऑफ़ आइरनी की बात की है. मिसाल के लिए मुझे आपके उस पड़ोसी का वो किस्सा बहुत पसंद आया था जो अपने बगीचे में एक पेड़ काट रहा था और उसे अपनी कार की छत पर लाद रहा था ...
हाँ, एक तूफ़ान में उसके बगीचे में एक पेड़ गिर गया था और एक दिन घर के बाहर आकर मैंने देखा कि वह पेड़ को छोटे हिस्सों में काट कर उसे निबटाने की नीयत से अपनी कार की छत पर लाद रहा था. पेड़ खासा झाड़ीदार था और कार के अगल बगल झूल रहा था. मैंने बिना सोचे जल्दीबाजी में कह दिया – ‘अच्छा तो आप कार को छिपाकर ले जा रहे हैं” और उसने मुझे देख कर कहा “नहीं, नहीं. रक रात तूफ़ान में यह पेड़ गिर गया था.” सो यह ऐसे ही चलता रहा. ऐसी घटनाएं होती रहीं. मैं पाता था कि मैं उन सज्जन के साथ खूब लतीफेबाजी कर रहा हूँ. एक दफा मुझे एक हवाई यात्रा का दुस्वप्न सरीखा अनुभव हुआ – फ्लाईट छूट गयी वगैरह वगैरह, तो उन साहब ने मुझ से पूछा “आप किस कम्पनी के साथ यात्रा कर रहे थे?” तो मैंने जवाब दिया “पता नहीं सारी ही कम्पनी अजनबी थी.” इस बात से उसे बहुत असुविधा हुई.
आपको अमेरिका वापस गए हुए पांच साल हो चुके हैं. ब्रिटेन के बारे में आपके आउटसाइडर का नजरिया अब क्या है? क्या आप संपर्क में रहते हैं?
मैं हर साल छः या सात बार वापस आता हूँ. जितना भी परिस्थियां अनुमति दें. अब लन्दन में हमारे पास एक फ़्लैट है, सो हम एक परिवार के तौर पर आया करते हैं और मैं संपर्क बनाए रखता हूँ. मैं अब भी टेलीफोन पर बहुत सारे लोगों के साथ बात करता हूँ और घटनाओं के बारे में जानकारियाँ लेता रहता हूँ. सो ब्रिटेन विदेश नहीं बना है.
(जारी)
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