छः दिसम्बर पर शिवप्रसाद जोशी ने अपनी एक ताज़ा
कविता मेल से भेजी है. प्रस्तुत है –
अयोध्या में एक घाट |
1992
-शिवप्रसाद जोशी
एक
मस्जिद कबकी गिराई जा चुकी
और कुछ होना नहीं था इस साल
लिहाज़ा इतना ही हुआ
कि एक हाशिम बोल पड़े.
दो
राम की सेना हम नहीं जानते
हम हैं परिषद् हम हैं दल हम हैं सेना
हमारा नहीं है बनबास
हमारी है अयोध्या
हमारा है देश
इस देश के सब लोग हम हैं
क्या कर लेंगे आप.
तीन
कितनी सुनहरी सुबह है
ज़रा भी धूल और चोट नहीं
हिंसा कैसी
रक़्त बह रहा है धीरे धीरे
ये खिली हुई धूप है महोदय सर्दियों की
इसे आर्तनाद मत कहिये.
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