Friday, December 26, 2014

बिल ब्राइसन का एक इंटरव्यू - तीसरा हिस्सा


(पिछली कड़ी से जारी)

क्या यह आपका स्थाई निर्णय है? उदाहरण के लिए यह बताइये कि अमेरिका के पास क्या है जो ब्रिटेन आप को नहीं दे सकता?

जो इकलौती चीज़ दिमाग में आती है वो यह कि मैं बेसबाल का दीवाना हूँ. मैं बोस्टन रेड सॉक्स के प्रति खासा समर्पित हूँ. बेसबाल के बारे में बढ़िया चीज़ यह है कि यह तकरीबन आधे साल चलता रहता है. खेल तकरीबन रोज़ होता है और आपके दिमाग में यह बात धंसी रहती है कि अगर शाम को करने को कुछ नहीं है तो आप टेलीविज़न पर बेसबाल का गेम देख सकते हैं. यह मुझे बहुत पसंद है.

आपके यात्रावृत्तों का एक विशिष्ट आनन्द आपके सहयात्रियों के चित्रण से आता है. अपनी जवानी में आपने मिसाल के लिए कुख्यात काट्ज़ के साथ विदेश यात्रा की थी और उसके बारे में आप ने लिखा था “काट्ज़ के साथ विदेश यात्रा करने की सबसे बेहतरीन बात यह थी कि बाकी बचे अमेरिका को उसके साथ गर्मियां नहीं बितानी थीं.” और तब भी तीन साल पहले आप उसे अपने साथ एप्पलाकियन ट्रेल पर उस मूर्खतापूर्ण साहसिक अभियान ‘वॉक इन द वुड्स’ में ले गए. क्यों?

क्योंकि मैं अकेले यात्रा करना नहीं चाहता था और वह इकलौता शख्स था जो मेरे साथ आ सकता था. सीधी सी बात है. मैं निकलने ही वाला था जब मुझे अहसास हुआ कि मैंने खुद को कहाँ अटका लिया है : मैं इस विराट यात्रा पर निकल रहा था और हफ़्तों हफ़्तों तक मैं निर्जन इलाके में रहने जा रहा था, मुझे सचमुच ख्याल आया कि मैं अकेलापन और एकांत नहीं चाहता था. मुझे इस बात का भान ही नहीं था कि रास्ते में मुझे कितने लोग मिलने वाले थे. असल में वह एक खासी सौहार्दपूर्ण यात्रा रही क्योंकि और भी कितने ही लोग इस तरह की हाईकिंग पर निकलते हैं. पर तब मुझे पता नहीं था. सो मैं बेताबी से चाहता था कि कोई मेरे साथ चले. मैंने किया यह कि क्रिसमस के समय लिखे जाने वाले कार्डों में अलग से नोट लिख कर डाला कि कोई भी मेरे साथ इस यात्रा पर चलाना चाहे तो उसका स्वागत है, चाहे वह यात्रा के एक हिस्से के लिए ही हो. मैंने वह नोट अपने हरेक दोस्त को लिखा और किसी का भी जवाब नहीं आया. फिर कई दिनों बाद काट्ज़ का फोन आया और उसने थोड़ा हिचकते हुए कहा कि अगर वह पूरी यात्रा भर साथ आना चाहे तो. मैं बहुत खुश हो गया. ज़रुरत से ज्यादा प्रसन्न. मुझे पता था काट्ज़ बहुत मशक्कत का काम होगा. मैं नहीं जानता था कितनी मशक्कत का जब तक कि वह आ न गया. लेकिन मैं इस कदर कृतज्ञ था कि कोई तो मेरे साथ है. जैसा कि मैंने किताब में लिखा भी है जब तक उसकी नाड़ी चल रही थी, उसकी संगत से मुझे कोई ऐतराज़ न था.

उस यात्रा के मेरे सर्वप्रिय लोगों में मैरी-एलेन है, जिसे आप यूँ ही टकरा गए थे, अलबत्ता मैं नहीं समझता अपने उसे साथ आने को चुना था. क्या ऐसा था?

मैरी-एलेन दर असल हमारे साथ नत्थी हो ली टी और कई दिनों तक उसने हमें पागल बनाए रखा. उसका नाम मैरी-एलेन नहीं था पर वह ठीक वैसी ही थी जैसा किताब में दिखाया गया है.

वास्तविक व्यक्तियों के ये चित्रण कितने सच होते हैं?

निर्भर करता है. अक्सर जीवन में जब आपको मैरी-एलेन जैसा उपहार-सरीखा पात्र मिलता है, आप बहुत सच्चे बने रह सकते हैं. बाकी मौकों पर मैं थोड़ा बढ़ा चढ़ा कर लिखता हूँ या लोगों के चरित्र के अलग अलग हिस्सों के बारे में लिखता हूँ. उदाहरण के लिए काट्ज़ के साथ: मैं कसम खाकर कहता हूँ कि काट्ज़ के साथ चलना ठीक वैसा ही था जैसा किताब में दिखाया गया है, सिवा इसके कि वास्तविक जीवन में उसके और भी पहलू हैं जिनके बारे में उतना ज्यादा मैंने नहीं लिखा. मेरा मतलब है कि उसका एक संवेदनशील हिस्सा भी है. लेकिन उसके साथ यात्रा में इस कदर मुश्किल संघर्ष करना और उसका हमेशा गुस्से में रहना और अपने बैकपैक से नफरत करना – सब कुछ वैसा ही था. मैंने इस सब को असल में किताब में नहीं लिखा क्योंकि उसे बयान कर सकना किसी भी सूरत में मुमकिन नहीं होता, लेकिन मैं कसम खा कर कहता हूँ कि हम अलग अलग रफ़्तार से चला करते थे और अक्सर जब मैं उस से काफी आगे पहुँच जाया करता था तो उस के लिए रुक जाता और वह किस रफ़्तार से मेरे नज़दीक आ रहा है इसका अनुमान सुदूर गूँजती उसकी “फ़क, फ़क, फ़क” से लग जाता था.
       
यह तो वही हो सकता था. और मैरी-एलेन? क्या आप के पास वास्तविक मैरी-एलेन के बारे में बताने को कुछ ख़ास है?

यही वास्तविक मैरी-एलेन है. लोग मुझसे पूछते हैं “क्या उसने वाकई वो सारी बातें कही थीं?” और मेरा उत्तर होता है नहीं, ठीक ठीक वो ही नहीं. लेकिन अगर आप मुझ से पूछें कि उसके साथ चार दिन रहना कैसा था तो आप मेरा यक़ीन कीजिये वह ऐसी ही थी.

आपकी सबसे हालिया यात्रा ऑस्ट्रेलिया की थी जिसके बारे में आपने अपनी नई किताब ‘डाउन अंडर’ में लिखा है (अमेरिका में इसे ‘इन अ सनबर्न्ट कंट्री’ शीर्षक से छपा गया है). सबसे पहले वह कौन सी बात थी जिसने आप को ऑस्ट्रेलिया जाने और उस बारे में लिखने की दिशा में आकर्षित किया?

हम्म, मैंने ऑस्ट्रेलिया के बारे में ज्यादा कभी सोचा नहीं था. मेरे लिए ऑस्ट्रेलिया कभी भी दिलचस्प नहीं था. वह तो पार्श्व में घटी कोई चीज़ थी. ‘नेबर्स’ और ‘क्रोकोडाइल डंडी’ फ़िल्में और इस तरह की चीज़ें थी जो कभी मेरे जेहन में ठीक से दर्ज नहीं रह सकीं और जिन पर मैंने बहुत ध्यान भी नहीं दिया था. मैं वहां १९९२ में गया चूंकि मुझे मेलबर्न रायटर्स फेस्टीवल के लिए बुलाया गया था, सो मैं वहां गया और करीब करीब वहां पहुँचते ही मुझे लगा कि यह एक दिलचस्प देश है जिसके बारे में मैं ज़रा भी नहीं जानता. जैसा कि मैंने किताब में लिखा है मुझे इस बात से हैरत हुई थी कि उनके एक प्रधानमंत्री हैरल्ड होल्ट के बारे में मुझे बिलकुल पता नहीं था जो १९६७ में गायब हो गया था. मुझे आपको संभवतः इस बारे में बताना चाहिए क्योंकि बहुत सारे औरों को भी यह बात पता नहीं होती. १९६७ में हैरल्ड होल्ट प्रधानमंत्री थे और विक्टोरिया की एक बीच पर क्रिसमस से ठीक पहले टहल रहे थे जब उन्हें अचानक तैरने की इच्छा हुई और वे पानी में कूद पड़े. सौ फीट तक पानी में तैरने के बाद वे लहरों के नीचे गायब हो गए – अनुमानतः उन्हें उन बनैले अधोप्रवाहों ने अपने भीतर चूस लिया था जो ऑस्ट्रेलियाई समुद्रीतट के बड़े हिस्से की विशेषता हैं. जो भी हो उनका शव कभी मिला ही नहीं. इस बारे में दो बातों ने मुझे चमत्कृत किया. पहली यह कि कोई देश इस तरह अपने प्रधानमंत्री को गँवा सकता है – यह मुझे बहुत ख़ास बात लगी थी – और दूसरी यह कि इस बारे में कभी कुछ सुने होने की मुझे कोई स्मृति नहीं थी. १९६७ में मैं सोलह साल का था. मुझे इस बारे में पता होना चाहिए था और तब मुझे अहसास हुआ कि ऑस्ट्रेलिया के बारे में बहुत सी दिलचस्प बातें मुझे पता नहीं थीं. मैंने जितना अधिक इस बाबत खोजा मेरी दिलचस्पी बढ़ती चली गयी. जिस बात ने  ऑस्ट्रेलिया को मेरे लिए हैरल्ड होल्ट को लेकर बहुत प्रिय बनाया वह उनकी त्रासद मृत्यु नहीं बल्कि यह थी कि अपने गृहनगर मेलबर्न ने, उनके गायब होने के एक साल बाद फ़ैसला किया कि उनकी स्मृति में कुछ किया जाना चाहिए. सो नगरपालिका के एक स्विमिंग पूल का नामकरण उनके नाम पर कर दिया गया. मैंने सोचा – मुल्क है तो मजेदार.

आपके भीतर अजीब तरह से हैरान कर देने वाली चीज़ों को लेकर एक ख़ास तरह की स्ट्रीक है. आपमें और आपके लेखन के भीतर अमेरिका और ब्रिटेन के मिश्रण मैं वापस लौटा जाए तो आप ऑस्ट्रेलिया का वर्णन एक वैकल्पिक दक्षिणी कैलिफोर्निया के तौर पर करते हैं – ‘बेवॉच और क्रिकेट’. क्या आपने ऑस्ट्रेलिया में अमेरिका और ब्रिटेन की यह मिलावट देखी?

हाँ, मेरा ख्याल है यह एक बड़ा कारण था कि ऑस्ट्रेलिया पहुँचते ही मैं इस कदर आराम महसूस करने लगा था. अब आप देखिये एक इंसान है यानी मैं जो आधी ज़िन्दगी ब्रिटेन में काट चुका है और आधी अमेरिका में और वह एक ऐसे देश में जा रहा है जो इन दोनों के आधे आधे से बना हुआ है. कई मामलों में ऑस्ट्रेलिया मुझे अमेरिका सरीखा लगता है. चाक्षुष पहलू से सिडनी, एडीलेड और पर्थ सरीखे शहर यूरोपीय होने के बजाय उत्तर अमेरिकी ज्यादा हैं, क्योंकि वे बहुमंजिला इमारतों से अटे पड़े हैं और वहां सड़कों का ज्यामितीय जाल है. और ऑस्ट्रेलियाइयों का रवैया और जीवन को देखने की निगाह काफी अमेरिकन है. वे बहुत मिलनसार लोग होते हैं जिन्हें अजनबियों के साथ ज़रा भी असुविधा महसूस नहीं होती, और उनके भीतर एक ख़ास तरह की डाइनैमिज़्म और सब कुछ कर सकने वाला जज्बा होता है जो काफी कुछ अमेरिका की याद दिलाता है.लेकिन उनकी संस्कृति की बुनियाद बेहद, बेहद ब्रिटिश हैं. वे चाय पीते हैं, बाईं तरफ ड्राइव करते हैं और क्रिकेट खेलते हैं. उनका सेन्स ऑफ़ ह्यूमर काफी ब्रिटिश है और उनकी शिक्षा व्यवस्था वगैरह बाकी सब. सो यह सब एक वाक़ई दिलचस्प मिश्रण है.

(जारी)

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