Wednesday, December 17, 2014

चाहे तो उससे सीख सकता है ईश्वर


कुमार गन्धर्व पर दो कविताएँ 

– अजंता देव

1.

मैंने तुम्हारे नाम से बजाया चिमटा
मसानों की राख़
ख़ाक गलियों की छानी

शरीर से आत्मा की तरह निकल कर
भटका हूँ त्रिलोक में
बजाता रह बरसों से अनहद का ढोल

पर यह तो हद है प्रभु
कि आखिर पकड़ लिया तुमने
आकाशगंगा के छोर पर
मछली की तरह चमकता सुर

उस अगति की इतनी गति
कि तड़ित वेग से उठता है उठता है उसका कंठ
तुम तक
और सीधे उतर आता है माँ की आँखों तक
इस नर पर यह कृपा
कि ठहर ही न पाए
मेरे गुन
इस निर्गुन के आगे

2.

घड़ों की दीवार से लगकर बैठा है
कच्चा कुम्भ

पैतालीसवें साल में ही घुल रहा है
भीतर का पानी
बाहर के पानी में

कुछ घड़े अधपके रह जाते हैं हर बार
प्रभु के आंवे में
सोचता है वह
और धकेल देता है
अपने आंवे में सात घड़े

चाहे तो उससे
सीख सकता है ईश्वर
घड़े पकाना
जब वह होगा स्वर्ग में


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