"जो लोग दिल्ली को गालियां देते हैं वो भूल जाते हैं कि दिल्ली ने उन्हें जीने के अवसर दिये हैं. पाखंड है ये कि गांव चला जाऊंगा, और यहां दम घुटता है वगैरह."
-इब्बार रब्बी, 23 जून 2004, दिल्ली
पाल गोमरा का स्कूटर शायद इन्हीं के ड्राइविंग फ़ोबिया पर उदय प्रकाश जी ने लिखी थी । अच्छी बातचीत है । सुन कर उदासी तो हुई लेकिन एक मखमली उदासी थी ये । एक्सेंट से पंजाबी लगते हैं रब्बी । यहूदियों के धरमगुरुओं का नाम क्योंकर रखा होगा इन्होंने , ये जानना अभी बाक़ी है । खैर..सुन्दर प्रस्तुति , साधुवाद ।
दूसरी बार सुन रहा हूँ । दिल्ली के बारे में जो कुछ इन्होंने कहा वो बहुत ही शानदार है । मैं भी दिल्ली को गरियाता रहा हूँ लेकिन अब मैं अपनी विचारधारा बदलने पर विचार कर रहा हूँ ।
ऐसा लगा जैसे रब्बी जी ने बाल पकड़ कर दस पन्द्रह झापड़ मार दिए हों। मैं भी उन अवसरवादी जाहिलों की भीड़ में शामिल हूं जो दिल्ली से सारे लाभ लेने बावजूद इस शहर को सुविधानुसार गाली देते रहते हैं। 87-88 में ज्ञान जी ने भी चिट्ठी लिखकर चेताया था। वह उनकी कृपा थी। मेरी कमनज़र, जो बात तब ठीक से समझ न आई।
इस मुद्दे से हटकर, बड़ी तसवीर के एतबार से भी - मुझे नहीं याद पड़ता की मैंने ऐसा साक्षात्कार पहले कभी पढ़ा-सुना हो। इरफ़ान साहब को बहुत-बहुत धन्यवाद जिन्होंने बड़े शऊर, सब्र और काबिलियत के साथ इस साक्षात्कार को प्रकट होने दिया। क्या शान आपकी रब्बी जी!
4 comments:
पाल गोमरा का स्कूटर शायद इन्हीं के ड्राइविंग फ़ोबिया पर उदय प्रकाश जी ने लिखी थी । अच्छी बातचीत है । सुन कर उदासी तो हुई लेकिन एक मखमली उदासी थी ये । एक्सेंट से पंजाबी लगते हैं रब्बी । यहूदियों के धरमगुरुओं का नाम क्योंकर रखा होगा इन्होंने , ये जानना अभी बाक़ी है । खैर..सुन्दर प्रस्तुति , साधुवाद ।
दूसरी बार सुन रहा हूँ । दिल्ली के बारे में जो कुछ इन्होंने कहा वो बहुत ही शानदार है । मैं भी दिल्ली को गरियाता रहा हूँ लेकिन अब मैं अपनी विचारधारा बदलने पर विचार कर रहा हूँ ।
एक्सेंट तो खालिस पश्चिमी यूपी का है लेकिन जाने क्यों शुरू में कहीं कहीं कुछ मामूली सी पंजाबियत आ गई । जाने क्यों ।
ऐसा लगा जैसे रब्बी जी ने बाल पकड़ कर दस पन्द्रह झापड़ मार दिए हों। मैं भी उन अवसरवादी जाहिलों की भीड़ में शामिल हूं जो दिल्ली से सारे लाभ लेने बावजूद इस शहर को सुविधानुसार गाली देते रहते हैं। 87-88 में ज्ञान जी ने भी चिट्ठी लिखकर चेताया था। वह उनकी कृपा थी। मेरी कमनज़र, जो बात तब ठीक से समझ न आई।
इस मुद्दे से हटकर, बड़ी तसवीर के एतबार से भी - मुझे नहीं याद पड़ता की मैंने ऐसा साक्षात्कार पहले कभी पढ़ा-सुना हो। इरफ़ान साहब को बहुत-बहुत धन्यवाद जिन्होंने बड़े शऊर, सब्र और काबिलियत के साथ इस साक्षात्कार को प्रकट होने दिया। क्या शान आपकी रब्बी जी!
Post a Comment