Thursday, March 5, 2015

होली भी यही कहती है ऐ जान इधर देख - नज़ीर अकबराबादी की होली – 2


मिलने का तेरे रखते हैं हम ध्यान इधर देख।
भाती है बहुत हमको तेरी आन इधर देख।
हम चाहने वाले हैं तेरे जान ! इधर देख।
होली है सनम, हँस के तो इक आन इधर देख।
ऐ ! रंग भरे नौ - ग़ुले - खंदान इधर देख ॥

हम देखने तेरा यह जमाल इस घड़ी ऐ जान !
आये हैं यही करके ख्याल इस घड़ी ऐ जान !
तू दिल में न रख हमसे मलाल इस घड़ी ऐ जान !
मुखड़े पे तेरे देख गुलाल इस घड़ी ऐ जान !
होली भी यही कहती है ऐ जान ! इधर देख॥

है धूम से होली के कहीं शोर , कहीं गुल।
होता नहीं टुक रंग छिड़कने में तअम्मुल।
दफ़ बजते हैं सब हँसते हैं और धूम है बिल्कुल।
होली की खुशी में तू न कर हमसे तग़ाफुल।
ऐ जान ! हमारा भी कहा कहा मान इधर देख॥

है दीद की हर आन तलब दिल को हमारे।
जीते हैं फ़क़त तेरी निगाहों के सहारे ।
हर याँ जो खड़े आन के इस शौक़* के मारे।
हम एक निगाह के तेरे मुश्ताक हैं प्यारे।
टुक प्यार की नजरों से मेरी जान ! इधर देख॥

हर चार तरफ होली की धूमें हैं अहा ! हा !।
देखो जिधर आता है नजर रोज़ तमाशा।
हर आन चमकता है अज़ब ऐश का चर्चा।
होली को 'नज़ीर' अब तू खड़ा देखे है यां क्या।
महबूब यह आया , अरे नादान इधर देख।

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(नौ-ग़ुले-खंदान : नए फूल जैसी मुस्कान वाले, तअम्मुल : सोच विचार, तग़ाफुल : देर, विलम्ब , विस्मृति, मुश्ताक : अभिलाषी, उत्सुक)

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