Wednesday, March 4, 2015

हमारी निरावृत्त इन्द्रियाँ बदल जाती हैं लुगदी में

माया ब्लोच का चित्र

प्रशान्त चक्रबर्ती की कवितायेँ आप लगातार इस ठिकाने पर पढ़ रहे हैं. आज उनकी दो और कविताएँ –

पालना

एक दोषहीन मंदिर जैसा
छोटा सा खटोला
बारह नक्काशीदार खिड़कियाँ,
चारखानों वाला लकड़ी का फर्श
पलंग के चार पायों पर पीतल की घंटियाँ
और एक शानदार मोरमुखी सिंहासन
और चबूतरे के भीतर
हमारा बच्चा, हमारा दारुण संरक्षक

माया ब्लोच का एक और चित्र

ऋण

मेरी आत्मा पर के अपमान
चाबुक बरसाते हैं मेरी धारीदार पेशियों पर
न चुकाए गए तमाम ऋण
विस्मृति के कारनामे
पीड़ा का उत्सव हैं एक
बोध के सुदूर छोर पर
हमारी निरावृत्त इन्द्रियाँ बदल जाती हैं लुगदी में
बराबर भरपाई होती है
हमारी सारी
एन्द्रिक परेशानियों की
औपचारिकता की 

(चित्रकार: माया ब्लोच इजराइली पेंटर हैं. इनका एक इंटरव्यू इस लिंक पर पढ़ा जा सकता है - 

Hello Stranger: HuffPost Arts Interviews Maya Bloch)


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मूल अंग्रेज़ी में यही रचनाएं:

Cradle

Like a perfect temple
The little crib
With twelve carved windows, Chequered wooden floor
Brass bells at the four bed-posts
And on a grand peacock throne
Within the quadrangle
The baby, our terrible benefactor


Credit

Indignities on my soul
Lashings on my striated muscles
All unpaid debts
Acts of forgetfulness
Are a festival of pain
On the far side of senses
Our exposed organs turn into pulp
All solemnity
Of our erotic trouble
Are recompensed equitably

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