Friday, March 20, 2015

नहीं चुनी मैंने वो ज़बान जिसमें माँ ने बोलना सिखाया - फ़ज़ल ताबिश की नज़्म


बहुत जुरूरी सवालात खड़े करती फ़ज़ल ताबिश की यह बेहद सामयिक नज़्म भी मैंने मुबारक अली की फेसबुक वॉल से ली है –

नहीं चुनी मैंने वो ज़मीन जो वतन ठहरी
नहीं चुना मैंने वो घर जो खानदान बना
नहीं चुना मैंने वो मजहब जो मुझे बख्शा गया
नहीं चुनी मैंने वो ज़बान जिसमें माँ ने बोलना सिखाया

और अब
मैं इन सबके लिए तैयार हूँ
मरने मारने पर

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