Wednesday, March 4, 2015

उसकी उंगलियाँ शहद के एक मर्तबान के भीतर


प्रशान्त चक्रबर्ती की एक शानदार, मीठी कविता:

शहद

उलझ गयी है मेरी बेटी
उसकी चिपचिप में
एक अधबनी अवस्था
उससे चिपक गयी है किसी जोंक की तरह
ज़रूरत से ज़्यादा हक जताने वाली कोई स्त्री जैसे
उसके सुदीर्घ स्तम्भ गिरते हैं उसकी उँगलियों से
रास्ता बनाते, फिसलते
थामे रखते हुए
उसका जीवन, उसकी उंगलियाँ

शहद के एक मर्तबान के भीतर

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