Wednesday, March 4, 2015

तुम्हें क्यों लगता है, मैं वापस आऊँगी?


वो आदमी और वो औरत
-शेफ़ाली फ्रॉस्ट

१. 
तुम क्यों आये?
जबरन लाया गया.  
मुझे क्यों बाँध लिया अनचाही जगह?
तुम मेरे कान की तूफ़ान और शांति थीं, तूफ़ान और शांति!
तुम इसलिए रोज़ कपड़े बदलते थे?
हाँ, तुम्हें पता चलता था, जब मैं नहीं होता था?
नहीं, तुम्हें पता था, मैं तुम्हें समझ नहीं पायी?
मैंने तुम्हें छिपा दिया ...  
क्या तुम मुझे भूल पाये?
नहीं, मैंने तुम्हें दुःख दिया?
नहीं, क्या तुम इंसान बन सके?
नहीं. 
तो क्या मैं आज भी तुम्हे नहीं जानती?
नहीं, आज भी नहीं.  

२. 
फिर आ गए तुम?
समझ लो ख़त्म हो गया वो, जिसे मैं ताक रहा था !
तोड़ दूँ तुम्हारी दूरबीन?
सब देख लूँ तब ...
सब देख लोगे, तो नींद आ जायेगी?
नहीं!
क्या उसे हासिल करना चाहते हो?
मैं तुम्हारी मृत्यु देखना चाहता हूँ ...
क्या तुम इसीलिये खिलखिला रहे हो?
पर तुम रो क्यों रही हो?  
तुम दूरबीन के पार हो...  
मैं तुम्हे प्यार नहीं करता. 
तुम खरीद सकते हो मुझे.  
तुम बिकना चाहती हो?     
तुम मिटाओगे मुझे?
हाँ, तुम्हारी ख़ुशी बेच कर मुझे नींद आ जाएगी...
मैं ज़ोर से हँसूंगी! 
नहीं, तुम मर चुकी होगी.    

३. 
मैं जा रही हूँ! 
मत जाओ!
मुझे रुक कर क्या मिलेगा?
मेरे टूटे दांत, मेरा ढीला बदन, मेरी मोटी भूख... 
इसीलिये तुम मुझे बिस्तर से उतरता देखते थे?
मैं तुम्हे ढूंढता था. 
मैं तो पास ही थी.  
मैं डर गया था कि तुम चुक गयीं.  
क्यों रोकना चाहते हो मुझे?
भयभीत हूँ!
रो पाओगे?
मैं कभी नहीं रोता.   
बिस्तर से तुम्हे झटक कर चली जाऊं तो मर जाओगे?
नहीं, सांस लूँगा, फिर पकड़ कर खड़ा हो जाऊंगा... 
किसे?
बिस्तर के पास खड़ी तुम्हारी आवाज़ को. 
तुम्हें क्यों लगता है, मैं वापस आऊँगी?
क्यों, तुम्हें नहीं लगता, तुम आओगी?

 ४ . 
मैं कब से रुकी हुई हूँ यहाँ?
मैं गुज़र रहा हूँ यहां से  ...
क्यों मुझे भिगोया तुमने! 
मैंने देखा तुम निचुड़ गयी थीं.  
पर मैं तो अब भी बह रही हूँ...
नहीं, तुम नदी के पार हो. 
सच? क्या मैंने तुम्हें खो दिया, हमेशा के लिए?
तुमने मुझे हासिल कर लिया.        
यही तुम्हारी मृत्यु है?
हाँ, अकेलेपन से डरती हो तुम?
हाँ, तुम रुके रहो.   
कहाँ?
रेत के इस पहाड़ पर.   
मैं यहां हूँ ही नहीं! 
क्यों, तुम चले गए क्या?

नहीं, मैं कभी था ही नहीं.  

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