प्रशान्त
चक्रबर्ती की दो और ताज़ा कवितायेँ पेश हैं:
शिकागो के चित्रकार जॉन एंटनी गीम्ज़िक की कृति 'म्यूटेंट पॉल्यूशन' |
स्वच्छ
भारत
निगल
जाओ बचे-खुचे बनारस का सबसे छोटा हिस्सा
और
बन जाओ ऑक्सीजन – मुक्त समाज का एक हिस्सा
पके
हुए बगीचों को छुओ – तेल और चिकनाई
अपने
बेटे के गालों को दुलराओ – सीसा और जस्ता
लावा
बहता है हमारी नदियों की सतह के नीचे
उँगलियों
के पोरों से छुओ उनके प्रवाह को
गर्म
भूरे रंग का
विशुद्ध
प्रदूषण
जीवित
आवारे
कौन
जादूगर फुला देता है रोटी को?
किस
इलास्टिक को खींचती है जेली?
यह
कैसे कि हमारे उदरों को घेर लेते हैं
मछलियाँ,
मांस और मुर्गियां
और
सड़-गलकर बदल जाते हैं
स्वामीहीन
मनुष्यों में
धीरे-धीरे
रूपांतरित होते हैं हम
जीवित
आवारों में
---------------------------------------------------------------------
मूल अंग्रेज़ी में यह रहीं कवितायेँ:
Swachh Bharat
Ingest the tiniest portion of
leftover Banaras
And become a member of an oxygen free
community
Touch ripe orchards—oil and grease
Caress the cheeks of your son—lead
and zinc
Lava flows beneath our sacred rivers
Touch their flow with finger-tips
Warm caramel coloured
Pure pollution
Living Vagabonds
What wizard balloons the bread?
What elastic the jelly pulls?
How fish and flesh and fowl
Encompass our stomachs
Melt and decompose
Into masterless men
Slowly do we mutate
Into living vagabonds
No comments:
Post a Comment