अजी सुनती हो !
-वुसतुल्लाह खान
पाकिस्तान
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अगस्त 1947 तक अफ़ग़ानिस्तान, चीन या ईरान का हिस्सा नहीं बना था बल्कि हिंदुस्तान का हिस्सा था. सिवाय
काबुल दरिया के पाकिस्तान में सब नदियां हिंदुस्तान से दाख़िल होती हैं.
पाकिस्तान
की सबसे लंबी सीमा चीन,
अफ़ग़ानिस्तान या ईरान के साथ नहीं बल्कि भारत से मिलती हैं.
पाकिस्तानी
नागरिक ईरान,
चीन और अफ़ग़ानिस्तान भी जाते हैं लेकिन सबसे ज़्यादा भारत जाते
हैं.
हांलाकि पाकिस्तान में फ़ारसी, पश्तो और चीनी बोली जाती
है लेकिन सबसे ज़्यादा उर्दू बोली जाती है जो ईरान, अफ़ग़ानिस्तान
या चीन में नहीं बल्कि हिंदुस्तान में पैदा हुई.
चीन, ईरान या अफ़ग़ानिस्तान से पाकिस्तान की कभी जंग नहीं हुई लेकिन भारत से
चार बड़ी जंगें और सैकड़ों छोटी-मोटी झड़पें हो चुकीं हैं.
पाकिस्तान
के सिनेमाओं में अफ़ग़ान,
चीनी या ईरानी फ़िल्में नहीं दिखाई जातीं बल्कि भारतीय फ़िल्में
दिखाई जाती हैं.
पाकिस्तान
के टीवी दर्शक सबसे ज्यादा जो ग़ैर-मुल्की चैनल देखतें हैं उनमें हिंदुस्तानी चैनल
सबसे आगे हैं.
पाकिस्तान
की ख़ुफ़िया एजेंसियां चीन,
ईरान और अफ़ग़ानिस्तान से आने-जाने वालों पर उतनी कड़ी नज़र नहीं
रखतीं जितनी भारत आने-जाने वालों या भारत से आने-जाने वालों पर रखती हैं.
यही
काम भारतीय एजेंसियां भी करती हैं.
पाकिस्तानी
चीनी,
अफ़ग़ानी और ईरानी खाना भी पसंद करते हैं लेकिन उनके किचन में
रोज़ाना जो कुछ पकता है वो उत्तरी भारत के किसी भी घर के किचन मे पकता है.
पाकिस्तान
में शायद ही कोई अफ़ग़ानी,
चीनी या ईरानी शायर और अदीब इतना मशहूर हो जितने हिंदुस्तानी शायर
या अदीब मशहूर हैं.
हर
पाकिस्तानी बच्चा शाहरूख़ ख़ान, सलमान ख़ान, सचिन तेंदुल्कर और मनमोहन सिंह को जानता है.
लेकिन
बहुत कम पाकिस्तानी बच्चे अफ़ग़ानिस्तान, चीन और ईरान के
शीर्ष अदाकारों या खिलाड़ी या नेताओं के बारे में जानते हैं.
पाकिस्तानी
एफ़एम चैनल पर बॉलीवुड संगीत चलता है. राहत फ़तह अली ख़ान और आतिफ़ असलम के बारे
में ये बताना मुश्किल है कि वो भारत के ज़्यादा हैं या पाकिस्तान के.
इन
सबके बावजूद पाकिस्तानी राजनेता, कमेंटेटर, टीवी ऐंकर, फ़नकार जब भी कोई लेख लिखते हैं, कोई बात करते हैं तो अफ़ग़ानिस्तान को अफ़ग़ानिस्तान, ईरान को ईरान, चीन को चीन कहते हैं लेकिन भारत को
भारत, इंडिया या हिंदुस्तान नहीं कहते, पड़ोसी मुल्क कहते हैं.
जैसे
पारंपरिक पत्नियां और पति एक दूसरे का नाम नहीं लेते, मुन्ने के अब्बा और अजी सुनती हो कह कर गुज़ारा करते हैं.
ऐसा
भला क्यों है,
क्या भारत में भी पाकिस्तान को पाकिस्तान कहा जाता है या पड़ोसी
मुल्क़ कह कर काम चलाया जाता है?
(बीबीसी के हिन्दी ब्लॉग से साभार)
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