बासठ वर्षीय सारस और लोमड़ी
-वुसतुल्लाह
ख़ान
कराची से
दिल्ली हफ़्ते में एक बार फ़्लाइट जाती है और बहुत ही भरी हुई फ़्लाइट होती है.
लेकिन उस रूट पर चलने वाली पीआईए के बोइंग 737 में
घुसते ही दोनों देशों के आपसी संबंधों का अंदाज़ा हो जाता है.
दोनों
देश चूँकि हर कुछ समय के बाद एक दूसरे से किसी भी बात को लेकर हत्थे से उखड़ जाते
हैं शायद इसलिए सीट पर बैठते ही एक हत्था हिला और मेरे हाथ में आ गया.
उस
फ़्लाइट में किसी दुबली पतली नाज़ुक सी एयर होस्टेस या स्मार्ट स्टुवर्ड के बजाए
मोटा ताज़ा और पहलवान दिखने को मिलता है. शायद इसलिए कि भारतीय यह नहीं समझ लें कि
हम देखने में उन से कमज़ोर या उन्नीस हैं.
एक
मुसाफ़िर ने जब 50 वर्षीय एयर होस्टेस से पानी माँगा तो उसने दिल को
लुभा लेने वाली मुस्कुराहट के साथ बहुत जल्द काग़ज़ का गिलास, पेपर नैपकिन के साथ आगे कर दिया. मैंने पानी माँगा तो अभी लाती हूँ कह कर
आगे बढ़ गई.
दस
मिनट बाद फिर पानी माँगा तो उसने काग़ज़ का गिलास बिना पेपर नैपकिन मेरी तरफ़ ऐसी
मुस्कान के साथ बढ़ाया जैसे दोनों देश एक दूसरे को देख यूं मुस्कुराते हैं जैसे
कर्ज़ ब्याज के साथ लौटा रहे हों.
मैंने
सोचना शुरू किया कि इस एयर होस्टेस ने एक मुसाफ़िर को क्यों मुस्कुरा कर पेपर
नैपकिन के साथ पानी दिया और मुझे क्यों एक बनावटी मुस्कान के साथ गिलास थमाया.
यूरेका!!!
वजह समझ में आ गई !!! उस मुसाफ़िर ने सफ़ेद शलवार कमीज़ पहनी हुई थी और मैंने
बदक़िस्मती से जींस पर फ़ैब इंडिया का गेरूआ शर्ट कुर्ता पहना हुआ था!!!
ये
फ़्लाइट जिसमें आधे से अधिक वो दक्षिण भारतीय कामगार और उत्तर भारतीय प्रवासी थे
जो खाड़ी के अरब देशों से कराची के रास्ते दिल्ली जा रहे थे. उन्होंने शुद्ध उर्दू
में ये एलान सुना.
ख़्वातीन-ओ-हज़रात
अस्सलाम अलैकुम. हम आपके शुक्रगुज़ार हैं कि आपने अपनी परवाज़ के लिए पीआईए का
इंतख़ाब किया.बराहेकरम अपनी निशस्त की पुश्त सीधा कर लीजिए. बालाइख़ाना बंद कर
लीजिए. आपके मुलाहिज़े के लिए हिफ़ाज़ती तादाबीर का किताबचा आपके सामने की सीट की
जेब में है. हंगामी हालात में इस्तेमाल के लिए हिफ़ाज़ती जैकेट ज़ेरे निशस्त है.
उम्मीद है आपका सफ़र पुरकैफ़-ओ-ख़ुशगवार गुज़रेगा.
मैंने
साथ बैठे सरदार जी से पूछा गुरू जी एलान पल्ले पड़ा? कहने लगे वाहे गुरु जाने. मेरे पल्ले ते कुछ नहीं पया.
मुझे
कुछ साल पहले की एक और फ़्लाइट की घोषणा याद आ गई. कृपया करके ये घोषणा ध्यान से
सुनिए. ;हम मुंबई से कराची की उडा़न पर आपका हार्दिक स्वागत
करते हैं. हमारी यह उडा़न एक घंटा एवं पाँच मिनट की होगी. कृपया सुरक्षा बेल्ट
बाँधे रखिए. इलेक्ट्रानिक उपकरण बंद रखिए क्योंकि उड़ान के दौरान विमान के संचार
तंत्र में गड़बड़ी हो सकती है. आशा है कि इंडियन एयरलाइंस से आपकी यात्रा सुरक्षित,
सुखद एवं मंगलमय रहेगी.'
मुझे
याद है कि मैंने एयर होस्टेस से पूछा था कि अभी जो घोषणा हुई उसमें क्या कहा गया.
कहने लगी सर आप बैठिए मैं अभी सर से पूछ कर बताती हूँ कि इसका आसान हिंदीकरण क्या
है.
लेकिन
इसमें इन बेचारों का क्या क़सूर! दोनों देश जब भी दिल्ली और इस्लामाबाद या न्यू
यॉर्क या शर्म-अल-शेख़ या सार्क की साइडलाइंस पर वार्तालाप का मंडप सजाते हैं तो
दोनों तरफ़ के नेताओं और नौकरशाहों की कोशिश होती है कि ऐसी ज़बान बोलें जिस से
देखने वाले को यह शक हो कि कुछ बात हो रही है. पर इस बात का कोइ मतलब न निकलने
पाए.
एक
था सारस और एक थी लोमड़ी. दोनों में हर समय ख़ट-पट रहती थी. एक दिन शेर की कोशिशों
से दोनों में तालमेल हो गया. लोमड़ी ने कहा सारस भाई हमारे गिले-शिकवे दूर हो गए.
आप मेरे घर खाने पर आइए. सारस जब बन ठन कर लोमड़ी के यहाँ पहुँचा तो लोमड़ी ने
मुस्कुराते हुए एक प्लेट में पतला शोरबा उसके सामने रखा दिया. सारस ने लंबी चोंच
में शोरबा भरने की बहुत कोशिश की लेकिन कुछ कामयाबी न हुई. और लोमड़ी अरे आप तो
बहुत तकल्लुफ़ कर रहे हैं कहती हुई लप-लप सारा शोरबा पी गई.
सारस
ने लोमड़ी से कहा कि कल शाम आप मेरे यहाँ खाने पर आइए मुझे बहुत ख़ुशी होगी.
लोमड़ी जब पहुंची तो सारस ने एक सुराही में बोटियाँ डालकर लोमड़ी के सामने रख
दिया. लोमड़ी ने अपनी थूथनी सुराही में डालने की कई बार कोशिश की लेकिन वो एक भी
बोटी न निकाल सकी. सारस ने कहा अरे आप तो मुझ से भी ज़्यादा तकल्लुफ़ कर रही हैं.
सारस ने अपनी लंबी चोंच सुराही में डाली और सब बोटियाँ चट कर गया.
बासठ
वर्ष बाद कॉंफ़िडेंस बिल्डिंग और कंपोज़िट डायलॉग के साए में सारस और लोमड़ी की
कहानी जारी है.
(बीबीसी के हिन्दी ब्लॉग से साभार)
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