'रेड राइडिंग' ट्रिलॉजी से एक स्टिल |
200
बरस
-
प्रशांत चक्रबर्ती
खाली
निगाहों से ताकते हैं मेरा दरवाज़ा खटखटाते बाबा.
अब
भी भुन रही माँ की चिता पर किसी ज्यादा पक गये सॉसेज जैसे.
बाबा
की लेमन टी, उनका तौलिया – आज रात खाली है उनका पाखाना.
अगले
200 और सालों के लिए माँ पड़ी रहती है डीप फ्रीज़ में.
बाबा
की मच्छरदानी – मैं तैयार करता हूँ उसे.
मुझ पर भेदती हुई निगाह डालते हैं वे.
उड़कर
दूर जा रहा हूँ मैं भोर के समय.
कुछ
महत्वपूर्ण काम करने.
अकेला
होऊँगा, उनकी चिता के सामने मेरा बूढ़ा बातूनी मसखरा, उनका फ्रीज़र ...
कवि की तस्वीर |
मूल कविता यह रही:
200 Years
Knocking
at my door baba stares, blank.
Like
an overdone sausage on that pyre ma is still grilling.
Baba’s
lemon tea, his towel— his loo free tonight.
In
deep freeze ma lies for 200 more years.
Baba’s
mosquito-net I prepare.
Piercing
he looks at me.
At
dawn I am flying away.
To
do significant things.
Alone,
my old garrulous fool will face his pyre, his freezer…
No comments:
Post a Comment