Wednesday, March 4, 2015

मुँह लाल गुलाबी आँखें हों और हाथों में पिचकारी हो


बाबा नज़ीर अकबराबादी की रचना. स्वर छाया गांगुली का है. अग्रज और मित्र आशुतोष बरनवाल के लिए ख़ास जो इसे हर साल होली पर सुनने की मांग करते हैं.  - 



जब फागुन रंग झमकते हों
तब देख बहारें होली की

परियों के रंग दमकते हों
ख़ुम शीशे जाम छलकते हों
महबूब नशे में छकते हों
जब फागुन रंग झमकते हों

नाच रंगीली परियों का
कुछ भीगी तानें होली की
कुछ तबले खड़कें रंग भरे
कुछ घुँघरू ताल छनकते हों
जब फागुन रंग झमकते हों

मुँह लाल गुलाबी आँखें हों
और हाथों में पिचकारी हो
उस रंग भरी पिचकारी को
अँगिया पर तक के मारी हो
सीनों से रंग ढलकते हों
तब देख बहारें होली की

जब फागुन रंग झमकते हों

तब देख बहारें होली की

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