Wednesday, June 17, 2015

कौन जाने के वो शैतान न था - पाकिस्तान से आधुनिक कवितायेँ - 8


गुनाह
-नून मीम राशिद

आज फिर आ ही गया
आज फिर रूह पे वो छा ही गया
दी मेरे घर पे शिकस्त आ के मुझे
होश आया तो मैं दहलीज पे उफ़्तादा था
ख़ाक-आलूदा ओ अफ़्सुर्दा ओ ग़म-गीं ओ नेज़ार
पारा थे मेरी रूह के तारे आज वो आ ही गया
रोज़न-ए-दर से लरज़ते हुए देखा मैंने
ख़ुर्म ओ शाद सर-ए-राह से जाते हुए
सालहा-साल से मसदूद था याराना मेरा
अपने ही बादा से लब-रेज़ था पैमाना मेरा
उस के लौट आने का इम्कान न था
उसे के मिलने का भी अरमान न था
फिर भी वो आ ही गया
कौन जाने के वो शैतान न था
बे-बसी मेरे ख़ुदा-वंद की थी !
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नून मीम राशिद का जन्म 1910 में पश्चिमी पंजाब के गुजरांवाला में हुआ था. पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर से उन्होंने 1932 में एम.ए. किया. विभाजन से पहले वे आल इण्डिया रेडियो में काम करते रहे. बाद में वे संयुक्त राष्ट्र संघ में कई महत्वपूर्ण स्थानों पर रहे. उर्दू कविता में आधुनिकता के बड़े संस्थापकों में उनका भी नाम लिया जाता है. वे प्रगतिशील लेखक संघ के समानान्तर चलने वाली संस्था हल्क-ए-अरबाब-ए- ज़ौक़ से सम्बन्ध रखते थे. उन पर पाश्चात्य साहित्य का बड़ा प्रभाव रहा जो उनके लेखन में स्पष्ट दिखाई देता है. 1975 में उनके पहले उनकी जो किताबें छपीं उनमें प्रमुख थीं – मावरा, ईरान में अजनबी, लामुसावी इंसान और गुमनाम का मुमकिन.

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