मौने की तारीफ से उत्साहित
होकर फ्रांसुआ
देपॉ ने इस
युवा कलाकार के करियर का नियंत्रण अपने हाथों में लेने का फ़ैसला किया. शुरूआत के
तौर पर देपॉ ने पिनशों
का ढेर सारा काम खरीद लिया. इस सम्बन्ध ने 1920 तक चलना था.
1904 में पिनशों ने
थियेटर नौर्मैड के एक प्रोग्राम का कवर तैयार किया. गी दे मोपासां का एक नाटक
मंचित किया जाना था.
18 जुलाई से 18 सितम्बर तक
पिनशों ने अपने चित्रों को दुबारा से प्रदर्शित किया. इस बार कसीनो दे दीईपे में
उनके साथ लूचे, लेबर्ग और कैमोइन के चित्र लगे थे. जब वे उन्नीस साल
के थे तो रुआं की गैलरी लेग्रिप में उनकी पहली प्रमुख प्रदर्शनी आयोजित हुई. इसमें
चौबीस कैनवास सजाये गए थे. इस बाबत दो महत्वपूर्ण आलेख भी छपे.
उसी साल रॉबर्ट एन्टोइन पिनशों ने पहली
बार पेरिस का रुख किया. 1905 में पेरिस में अक्टूबर नवम्बर
में लगी इस प्रदर्शनी में फॉविज़्म का विधिवत जन्म माना गया.आलोचक कमील मौक्लेयर ने
लिखा : “जनता के मुंह पर रंगों का एक बर्तन उड़ेल दिया गया
है.”
लुई वौसेलास ने एक ही कक्ष
में लगे और एक शिल्प का प्रभाव देते कुछेक पेंटर्स के चित्रों को देखकर ‘लेस फॉव्स’ (बनैले पशु) शब्द का आविष्कार किया. 20
नवम्बर को मार्सेल निकोल ने लिखा “इन चित्रों का कला से कोई
सम्बन्ध नहीं है. इनकी तुलना एक मासूम बच्चे के खेल से की जा सकती है जिसके पास
खिलौने के नाम पर केवल रंगों का डिब्बा हो.”
(जारी)
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