अफ़ज़ाल अहमद सैयद की कविता की यह नायाब कविता फिर से:
अगर कोई पूछे
अगर कोई पूछे कि दरख़्त अच्छे होते हैं या छतरियां
तो बताना कि दरख़्त
जब हम धूप में उनके नीचे खड़े हों
और छतरियां जब हम धूप में चल रहे हों
और चलना अच्छा होता है उन मंज़िलों के लिए
जहां जाने के लिए कई सवारियां और इरादे बदलने पड़ते हैं
हालांकि सफ़र तो उंगली में टूट जाने वाली सुई की नोंक का भी होता है
और उसका भी जो उसे दिल में जाते हुए देखती है
अगर कोई पूछे कि दरवाज़े अच्छे होते हैं या खिड़कियां
तो बताना कि दरवाज़े दिन के वक़्त
और खिड़कियां शामों को
और शामें उनकी अच्छी होती हैं
जो एक इन्तज़ार से दूसरे इन्तज़ार में सफ़र करते हैं
हालांकि सफ़र तो उस आग का नाम है
जो दरख़्तों से ज़मीन पर कभी नहीं उतरी
मांगने वाले को अगर कच्ची रोटियां एक दरवाज़े से मिल जाएं तो उसे
दियासलाई अगले दरवाज़े से मांगनी चाहिए
और जब बारिश हो रही हो तो किसी से कुछ नहीं मांगना चाहिए
न बारिश रुकने की दुआएं
दुआ मांगने के लिए आदमी के पास एक ख़ुदा का होना बहुत ज़रूरी है
जो लोग दूसरों के ख़ुदाओं से अपनी दुआएं क़ुबूल करवाना चाहते हैं
वो अपनी दाईं एड़ी में गड़ने वाली सुई की चुभन
बाईं में महसूस नहीं कर सकते
बाज़ लोगों को खुदा विरसे में मिलता है
बाज़ को तोहफ़े में, बाज़ अपनी मेहनत से हासिल कर लेते हैं
बाज़ चुरा लाते हैं
बाज़ फ़र्ज़ कर लेते हैं
मैंने ख़ुदा क़िस्तों में ख़रीदा था
क़िस्तों में ख़रीदे हुए ख़ुदा उस वक़्त तक दुआएं पूरी नहीं करते
जब तक सारी क़िस्तें अदा न हो जाएं
एक बार मैं ख़ुदा की क़िस्त वक़्त पर अदा न कर सका
ख़ुदा को मेरे पास से उठा ले जाया गया
और जो लोग मुझे जानते थे
उन्हें पता लग गया
कि अब मेरे पास न ख़ुदा है, न क़ुबूल होने वाली दुआएं
और मेरे लिए एक ख़ुदा फ़र्ज़ कर लेने का मौका भी जाता रहा.
3 comments:
waah!
Behtrin kavita
और जो लोग मुझे जानते थे
उन्हें पता लग गया
कि अब मेरे पास न ख़ुदा है, न क़ुबूल होने वाली दुआएं
और मेरे लिए एक ख़ुदा फ़र्ज़ कर लेने का मौका भी जाता रहा.
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