Friday, January 15, 2016

प्रैक्टिकल आदमी के लिए बीजगणित – रिचर्ड फ़ाइनमैन की बातें – 4


प्रैक्टिकल आदमी के लिए बीजगणित


मेरा चचेरा भाई, जो मुझसे तीन साल बड़ा था, हाईस्कूल में था और उसे बीजगणित में खासी मुश्किल हो रही थी. उसे पढ़ाने घर पर एक ट्यूटर आया करता था. मुझे एक कोने में बैठने की इजाज़त थी (हँसते हुए) – ट्यूटर मेरे चचेरे भाई को बीजगणित सिखाया करता जैसे 2x प्लस कुछ. मैंने अपने भाई से पूछा, “तुम क्या करने की कोशिश कर रहे हो?” हुआ ये कि मैं उसे x के बारे में बात करता सुन रहा था. भाई बोला – “ तुम्हें आता ही क्या है - 2x + 7 पंद्रह के बराबर है,” उसने कहा और आप पता लगाने की कोशिश कर  रहे हैं कि x क्या है.” मैं बोला, “तुम्हारा मतलब है 4?वह बोला, हां, मगर तुमने इसे अंकगणित से किया. इसे बीजगणित से किया जाना होता है. और यही वजह रही कि मेरा भाई कभी भी बीजगणित नहीं कर सका क्योंकि वह यही नहीं समझ सका कि उसे करना क्या है. कोई रास्ता ठा भी नहीं.  किस्मत से मैंने बीजगणित को स्कूल जाकर नहीं सीखा बल्कि यह जानकार सीखा कि पूरा मसाला x को खोजने का था और इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ना था कि आप इसे कैसे करते हैं – ऐसी कोई चीज़ नहीं है कि आप इसे अंकगणित से करें या बीजगणित से – यह एक झूठ चीज़ है जिसका आविष्कार उन्होंने स्कूलों के लिए किया है ताकि बीजगणित सीखने वाले सारे बच्चे उसमें पास हो सकें. उन्होंने नियमों का एक समूह खोज लिया था, बिना सोचे समझे जिनका अनुसरण करके सही उत्तर निकल जाता था; दोनों तरफ से 7 को घटाइए, अगर आपके पास एक मल्टीप्लायर है तो दोनों साइड्स को उससे भाग दे दीजिये वगैरह वगैरह और चाहे आप यह न समझ पा रहे हों कि आप कर क्या रहे हैं, कुछ स्टेप्स के बाद आप उत्तर तक पहुँच सकते हैं. गणित की किताबों की एक सीरीज हुआ करती थी जो ‘प्रैक्टिकल आदमी के लिए अंकगणित’ से शुरू होती थी. उसके बाद ‘प्रैक्टिकल आदमी के लिए बीजगणित’ आती थी. और फिर ‘प्रैक्टिकल आदमी के लिए त्रिकोणमिति’ और एक प्रैक्टिकल आदमी के लिए त्रिकोणमिति मैंने उसी से सीखी. मैं उसे जल्द ही भूल गया क्योंकि वह मेरी समझ में आई ही नहीं. लेकिन सीरीज की किताबें आती जा रही थीं और स्कूल की लाइब्रेरी में ‘प्रैक्टिकल आदमी के लिए कैलकुलस’ आने वाली थी. उस समय तक इनसाइक्लोपीडिया पढ़कर मुझे पता चल चुका था कि वह एक ज़रूरी और दिलचस्प विषय था और  यह कि मुझे उसे सीखना ही चाहिए. तब तक मैं बड़ा हो गया था. मैं शायद तेरह साल का था. और तक कैलकुलस वाली किताब आखिरकार छप कर आ ही गयी. मैं बहुत उत्तेजित था और जब मैं उसे लेने को लाइब्रेरी पहुंचा तो वहां जो महिला थी उसने मुझे देखकर कहा “तुम तो बच्चे हो. तुम इस किताब में क्या खोज रहे हो? यह किताब बड़ों के लिए है.” सो यह मेरे जीवन के कुछ असुविधापूर्ण अवसरों में एक था और मैंने झूठ बोला और कहा कि मेरे पिताजी ने उसे अपने लिए छांटा हुआ है. सो मैं उसे घर ले गया और मैंने उससे कैलकुलस सीख ली और पिताजी को उसके बारे समझाना शुरू किया. पिताजी उसे शुरू से पढ़ते और गड़बड़ा जाते और इस बात ने मुझे बहुत परेशान किया. मुझे नहीं मालूम था कि उनका ज्ञान सीमित था. और यह भी कि उनकी समझ में वह नहीं आ रहा था. मुझे लगता था कि वह कहीं अधिक साधारण और सीधी है और उनकी समझ में वह आई ही नहीं. तो वह पहला मौका था जब  उझे पता लगा कि किसी मायने में मैंने उनसे ज्यादा सीख लिया था.

(जारी)

1 comment:

जसवंत लोधी said...

कमाल का लेख है भाई ।seetamni. blogspot. in