Wednesday, January 27, 2016

एक अमेरिकी करोड़पति का सौ बरस पुराना इंटरव्यू

मैक्सिम गोर्की (1868 - 1936)

'मां' जैसी क्लासिक रचना लिखने वाले महान रूसी साहित्यकार मैक्सिम गोर्की आज से क़रीब सौ साल पहले पार्टी के लिए धन इकठ्ठा करने और समाजवाद के प्रचार हेतु अमरीका गए थे. उनके तब के लिखे लिखे लेख एक पुस्तक ‘पीले दैत्य का नगर’ की सूरत में सामने आए. 

पेश है उसी ज़रूरी किताब का एक अध्याय.
 

गणतन्त्र का एक सम्राट

संयुक्त राज्य अमेरिका के इस्पात और तेल के सम्राटों और बाकी सम्राटों ने मेरी कल्पना को हमेशा तंग किया है. मैं कल्पना ही नहीं कर सकता कि इतने सारे पैसेवाले लोग सामान्य नश्वर मनुष्य हो सकते हैं.

मुझे हमेशा लगता रहा है कि उनमें से हर किसी के पास कम सप कम तीन पेट और डेढ़ सौ दांत होते होंगे. मुझे यकीन था कि हर करोड़पति सुबह छ: बजे से आधी रात तक खाना खाता रहता होगा. यह भी कि वह सबसे महंगे भोजन भकोसता होगा : बत्तखें¸ टर्की¸ नन्हे सूअर¸ मक्खन के साथ गाजर¸मिठाइयां¸ केक और तमाम तरह के लजीज व्यंजन. शाम तक उसके जबड़े इतना थक जाते होंगे कि वह अपने नीग्रो नौकरों को आदेश देता होगा कि वे उसके लिए खाना चबाएं ताकि वह आसानी से उसे निगल सके. आखिरकार जब वह बुरी तरह थक चुकता होगा¸ पसीने से नहाया हुआ¸ उसके नौकर उसे बिस्तर तक लाद कर ले जाते होंगे. और अगली सुबह वह छ: बजे जागता होगा अपनी श्रमसाध्य दिनचर्या को दुबारा शुरू करने को.

लेकिन इतनी जबरदस्त मेहनत के बावजूद वह अपनी दौलत पर मिलने वाले ब्याज का आधा भी खर्च नहीं कर पाता होगा.

निश्चित ही यह एक मुश्किल जीवन होता होगा. लेकिन किया भी क्या जा सकता होगा? करोड़पति होने का फायदा ही क्या अगर आप और लोगों से ज्यादा खाना न खा सकें? 

मुझे लगता था कि उसके अंतर्वस्त्र बेहतरीन कशीदाकारी से बने होते होंगे¸ उसके जूतों के तलुवों पर सोने की कीलें ठुकी होती होंगी और हैट की जगह वह हीरों से बनी कोई टोपी पहनता होगा. उसकी जैकेट सबसे महंगी मलमल की बनी होती होगी. वह कम से कम पचास मीटर लम्बी होती होगी और उस पर सोने के कम से कम तीन सौ बटन लगे होते होंगे. छुट्टियों में वह एक के ऊपर एक आठ जैकेटें और छ: पतलूनें पहनता होगा. यह सच है कि ऐसा करना अटपटा होने के साथ साथ असुविधापूर्ण भी होता होगा लेकिन एक करोड़पति जो इतना रईस हो बाकी लोगों जैसे कपड़े कैसे पहन सकता है  

करोड़पति की जेबें उस गडढे जैसी होती होंगी जिनमें वह समूचा चर्च¸ सीनेट की इमारत और छोटी मोटी जरूरतों को रख सकता होगा लेकिन जहां एक तरफ मैं सोचता था कि इन महाशय के पेट की क्षमता किसी बड़े समुद्री जहाज के गोदाम जितनी होती होगी मुझे इन साहब की टांगों पर फिट आने वाली पतलून के आकार की कल्पना करने में थोड़ी हैरानी हुई. अलबत्ता मुझे यकीन था कि वह एक वर्ग मील से कम आकार की रजाई के नीचे नहीं सोता होगा. और अगर वह तम्बाकू चबाता होगा तो सबसे नफीस किस्म का और एक बार में एक या दो पाउण्ड से कम नहीं. अगर वह नसवार सूंघता होगा तो एक बार में एक पाउण्ड से कम नहीं. पैसा अपने आप को खर्च करना चाहता है

उसकी उंगलियां अद्भुत तरीके से संवेदनशील होती होंगी और उनमें अपनी इच्छानुसार लम्बा हो जाने की जादुई ताकत होती होगी : मिसाल के तौर पर वह साइबेरिया में अंकुरित हो रहे एक डालर पर न्यूयार्क से निगाह में रख सकता था. अपनी सीट सेे हिले बिना वह बेरिंग स्टेट तक अपना हाथ बढ़ाकर अपना पसंदीदा फूल तोड़ सकता था.

अटपटी बात यह है कि इस सब के बावजूद मैं इस बात की कल्पना नहीं कर पाया कि इस दैत्य का सिर कैसा होता होगा. इसके अलावा मुझे लगा कि वह सिर मांसपेशियों और हडि्डयों का ऐसा पिण्ड होता होगा जिसकी गति को फकत हर एक चीज से सोना चूस लेने की इच्छा से प्रेरणा मिलती होगी. लब्बोलुबाब यह है कि करोड़पति की मेरी छवि एक हद तक अस्पष्ट थी. संक्षेप में कहूं तो सबसे पहले मुझे दो लम्बी लचीली बांहें नजर आती थीं. उन्होंने ग्लोब को अपनी लपेट में ले रखा था और उसे अपने मुंह की भूखी गुफा के पास खींच रखा था जो हमारी धरती को चूसता चबाता जा रहा था : उसकी लालचभरी लार उसके ऊपर टपक रही थी जैसे वह तन्दूर में सिंका कोई स्वादिष्ट आलू हो

आप मेरे आश्चर्य की कल्पना कर सकते हैं जब एक करोड़पति से मिलने पर मैंने उसे एक निहायत साधारण आदमी पाया.

एक गहरी आरामकुर्सी पर मेरे सामने एक बूढ़ा सिकुड़ा सा शख्स बैठा हुआ था जिसके झुरीर्दार भूरे हाथ शान्तिपूर्वक उसकी तोंद पर धरे हुए थे. उसके थुलथुल गालों पर करीने से हजामत बनाई गई थी और उसका ढुलका हुआ निचला होंठ बढ़िया बनी हुई उसकी बत्तीसी दिखला रहा था जिसमें कुछेक दांत सोने के थे. उसका रक्तहीन और पतला ऊपरी होंठ उसके दांतों से चिपका हुआ था और जब वह बोलता था उस ऊपरी होंठ में जरा भी गति नहीं होती थी. उसकी बेरंग आंखों के ऊपर भौंहें बिल्कुल नहीं थीं और सूरज में तपा हुए उसके सिर पर एक भी बाल नहीं था. उसे देख कर महसूस होता था कि उसके चेहरे पर थोड़ी और त्वचा होती तो शायद बेहतर होता ; लाली लिए हुए¸ गतिहीन और मुलायम वह चेहरा किसी नवजात शिशु के जैसा लगता था. यह तय कर पाना मुश्किल था कि यह प्राणी दुनिया में अभी अभी आया है या यहां से जाने की तैयारी में है

उसकी पोशाक भी किसी साधारण आदमी की ही जैसी थी. उसका धारण किया हुआ सोना घड़ी अंगूठी और दांतों तक सीमित था. कुल मिलाकर शायद वह आधे पाउण्ड से कम था. आम तौर पर वह यूरोप के किसी कुलीन घर के पुराने नौकर जैसा नजर आ रहा था

जिस कमरे में वह मुझसे मिला उसमें सुविधा या सुन्दरता के लिहाज से कुछ भी उल्लेखनीय नहीं था. फ़र्नीचर विशालकाय था पर बस इतना ही था.

उसके फ़र्नीचर को देखकर लगता था कि कभी कभी हाथी उसके घर तशरीफ लाया करते थे.

"क्या आप आप ही करोड़पति हैं?" अपनी आंखों पर अविश्वास करते हुए मैंने पूछा. 

" हां हां!" उसने सिर हिलाते हुए जवाब दिया.

मैंने उसकी बात पर विश्वास करने का नाटक किया और फैसला किया कि उसकी गप्प का उसी वक्त इम्तहान ले लूं.
"आप नाश्ते में कितना बीफ़ खा सकते हैं ?" मैंने पूछा.

"मैं बीफ़ नहीं खाता" उसने घोषणा की "बस सन्तरे की एक फांक एक अण्डा और चाय का छोटा प्याला …"

बच्चों जैसी उसकी आंखों में धुंधलाए पानी की दो बड़ी बूंदों जैसी चमक आई और मैं उनमें झूठ का नामोनिशान नहीं देख पा रहा था.

"चलिए ठीक है" मैंने संशयपूर्वक बोलना शुरू किया "मैं आपसे विनती करता हूं कि मुझे ईमानदारी से बताइए कि आप दिन में कितनी बार खाना खाते हैं ?"

"दिन में दो बार" उसने ठण्डे स्वर में कहा "नाश्ता और रात का खाना. मेरे लिए पर्याप्त होता है. रात को खाने में मैं थोड़ा सूप थोड़ा चिकन और कुछ मीठा लेता हूं. कोई फल. एक कप काफी. एक सिगार …"

मेरा आश्चर्य कद्दू की तरह बढ़ रहा था. उसने मुझे सन्तों की सी निगाह से देखा. मैं सांस लेने को ठहरा और फिर पूछना शुरू किया:

" लेकिन अगर यह सच है तो आप अपने पैसे का क्या करते हैं ?"

उसने अपने कन्धों को जरा उचकाया और उसकी आंखें अपने गड्ढों में कुछ देर लुढ़कीं और उसने जवाब दिया:

"मैं उसका इस्तेमाल और पैसा बनाने में करता हूं …"

"किस लिए ?"

"ताकि मैं और अधिक पैसा बना सकूं …"

"लेकिन किस लिए ?" मैंने हठपूर्वक पूछा.

वह आगे की तरफ झुका और अपनी कोहनियों को कुर्सी के हत्थे पर टिकाते हुए तनिक उत्सुकता से पूछा:

"क्या आप पागल हैं ?"

"क्या आप पागल हैं ?" मैंने पलट कर जवाब दिया.

बूढ़े ने अपना सिर झुकाया और सोने के दांतों के बीच से धीरे धीरे बोलना शुरू किया :

"तुम बड़े दिलचस्प आदमी हो मुझे याद नहीं पड़ता मैं कभी तुम्हारे जैसे आदमी से मिला हूं …"

उसने अपना सिर उठाया और अपने मुंह को करीब करीब कानों तक फैलाकर खामोशी के साथ मेरा मुआयना करना शुरू किया. उसके शान्त व्यवहार को देख कर लगता था कि स्पष्टत: वह अपने आप को सामान्य आदमी समझता था. मैंने उसकी टाई पर लगी एक पिन पर जड़े छोटे से हीरे को देखा. अगर वह हीरा जूते ही एड़ी जितना बड़ा होता तो मैं शायद जान सकता था कि मैं कहां बैठा हूं.

"और अपने खुद के साथ आप क्या करते हैं?"

"मैं पैसा बनाता हूं." अपने कन्धों के तनिक फैलाते हुए उसने जवाब दिया.

"यानी आप नकली नोटों का धन्धा करते हैं" मैं खुश होकर बोला मानो मैं रहस्य पर से परदा उठाने ही वाला हूं. लेकिन इस मौके पर उसे हिचकियां आनी शुरू हो गईं. उसकी सारी देह हिलने लगी जैसे कोई अदृश्य हाथ उसे गुदगुदी कर रहा हो. वह अपनी आंखों को तेज तेज झपकाने लगा.

"यह तो मसखरापन है" ठण्डा पड़ते हुए उसने कहा और मेरी तरफ एक गीली संतुष्ट निगाह डाली. "मेहरबानी कर के मुझसे कोई और बात पूछिए" उसने निमंत्रित करते हुए कहा और किसी वजह से अपने गालों को जरा सा फुलाया.

मैंने एक पल को सोचा और निश्चित आवाज में पूछा: 

"और आप पैसा कैसे बनाते हैं?" 

"अरे हां! ये ठीकठाक बात हुई!" उसने सहमति में सिर हिलाया. "बड़ी साधारण सी बात है. मैं रेलवे का मालिक हूं. किसान माल पैदा करते हैं. मैं उनका माल बाजार में पहुंचाता हूं. आप को बस इस बात का हिसाब लगाना होता है कि आप किसान के वास्ते बस इतना पैसा छोड़ें कि वह भूख से न मर जाए और आपके लिए काम करता रहे. बाकी का पैसा मैं किराए के तौर पर अपनी जेब में डाल लेता हूं. बस इतनी सी बात है." 

"और क्या किसान इस से संतुष्ट रहते हैं?" 

"मेरे ख्याल से सारे नहीं रहते!" बालसुलभ साधारणता के साथ वह बोला "लेकिन वो कहते हैं ना लोग कभी संतुष्ट नहीं होते. ऐसे पागल लोग आपको हर जगह मिल जाएंगे जो बस शिकायत करते रहते हैं …"

"तो क्या सरकार आप से कुछ नहीं कहती ?" आत्मविश्वास की कमी के बावजूद मैंने पूछा. 

"सरकार?" उसकी आवाज थोड़ा गूंजी फिर उसने कुछ सोचते हुए अपने माथे पर उंगलियां फिराईं. फिर उसने अपना सिर हिलाया जैसे उसे कुछ याद आया हो: "अच्छा तुम्हारा मतलब है वो लोग वाशिंगटन वाले? ना वो मुझे तंग नहीं करते. वो अच्छे बन्दे हैं उनमें से कुछ मेरे क्लब के सदस्य भी हैं. लेकिन उनसे बहुत ज्यादा मुलाकात नहीं होती इसी वजह से ऐसा होना ही होता है कि कभी कभी मैं उनके बारे में भूल जाता हूं. ना वो मुझे तंग नहीं करते." उसने अपनी बात दोहराई और मेरी तरफ उत्सुकता से देखते हुए पूछा:

"क्या आप कहना चाह रहे हैं कि ऐसी सरकारें भी होती हैं जो लोगों को पैसा बनाने से रोकती हैं?" 

मुझे अपनी मासूमियत और उसकी बुद्धिमत्ता पर कोफ्त हुई. 

"नहीं" मैंने धीमे से कहा "मेरा ये मतलब नहीं था ... देखिए सरकार ने कभी कभी तो सीधी सीधी डकैती पर लगाम लगानी चाहिए ना ..." 

"अब देखिए! " उसने आपत्ति की "ये तो आदर्शवाद हो गया. यहां यह सब नहीं चलता. व्यक्तिगत कार्यों में दखल देने का सरकार को कोई हक नहीं ..." 
जब हमारे मुल्क में बहुत सारे ऐसे आप्रवासी हो जाएंगे जो कम पैसे पर काम करें और खूब सारी चीजें खरीदें तब सब कुछ ठीक हो जाएगा.

उसकी बच्चों जैसी बुद्धिमत्ता के सामने मैं खुद को बहुत छोटा पा रहा था. 

"लेकिन अगर एक आदमी कई लोगों को बर्बाद कर रहा हो तो क्या वह व्यक्तिगत काम माना जाएगा?" मैंने विनम्रता के साथ पूछा. 

"बर्बादी?" आंखें फैलाते हुए उसने जवाब देना शुरू किया "बर्बादी का मतलब होता है जब मजदूरी की दरें ऊंची होने लगें. या जब हड़ताल हो जाए. लेकिन हमारे पास आप्रवासी लोग हैं. वो खुशी खुशी कम मजदूरी पर हड़तालियों की जगह काम करना शुरू कर देते हैं. जब हमारे मुल्क में बहुत सारे ऐसे आप्रवासी हो जाएंगे जो कम पैसे पर काम करें और खूब सारी चीजें खरीदें तब सब कुछ ठीक हो जाएगा."

वह थोड़ा सा उत्तेजित हो गया था और एक बच्चे और बूढ़े के मिश्रण से कुछ कम नजर आने लगा था.उसकी पतली भूरी उंगलियां हिलीं और उसकी रूखी आवाज मेरे कानों पर पड़पड़ाने लगी:

"सरकार? ये वास्तव में दिलचस्प सवाल है. एक अच्छी सरकार का होना महत्वपूर्ण है उसे इस बात का ख्याल रहता है कि इस देश में उतने लोग हों जितनों की मुझे जरूरत है और जो उतना खरीद सकें जितना मैं बेचना चाहता हूं; और मजदूर बस उतने हों कि मेरा काम कभी न थमे. लेकिन उससे ज्यादा नहीं! फिर कोई समाजवादी नहीं बचेंगे. और हड़तालें भी नहीं होंगी. और सरकार ने बहुत ज्यादा टैक्स भी नहीं लगाने चाहिए. लोग जो देना चाहें वह मैं लेना चाहूंगा. इसको मैं कहता हूं अच्छी सरकार."

"वह बेवकूफ नहीं है. यह एक तयशुदा संकेत है कि उसे अपनी महानता का भान है." मैं सोच रहा था. "इस आदमी ने वाकई राजा ही होना चाहिए …"

"मैं चाहता हूं" वह स्थिर और विश्वासभरी आवाज में बोलता गया "कि इस मुल्क में अमन चैन हो. सरकार ने तमाम दार्शनिकों को भाड़े पर रखा हुआ है जो हर इतवार को कम से कम आठ घण्टे लोगों को यह सिखाने में खर्च करते हैं कि कानून की इज्ज्त की जानी चाहिए. और अगर दार्शनिकों से यह काम नहीं होता तो वह फौज बुला लेती है. तरीका नहीं बल्कि नतीजा ज्यादा महत्वपूर्ण होता है. गाहक और मजदूर को कानून की इज्ज्त करना सिखाया जाना चाहिए. बस!" अपनी उंगलियों से खेलते हुए उसने अपनी बात पूरी की.

"नहीं यह शख्स़ बेवकूफ नहीं है. राजा तो यह हर्गिज नहीं हो सकता." मैंने विचार किया और फिर उससे पूछा : "क्या आप मौजूदा सरकार से संतुष्ट हैं?" 

उसने तुरन्त जवाब नहीं दिया. 

"असल में वो जितना कर सकती है उस से कम कर रही है. मैं कहता हूं : आप्रवासियों को फिलहाल देश में आने देना चाहिए. लेकिन हमारे यहां राजनैतिक आजादी है जिसका वो लुत्फ उठाते हैं सो उन्हें इसकी कीमत देनी चाहिए. उन में से हर किसी ने अपने साथ कम से कम पांच सौ डालर लाने चाहिए. ऐसा आदमी उस आदमी से दस गुना बेहतर है जिसके पास फकत पचास डालर हों. जितने भी बुरे लोग होते हैं : मिसाल के लिए आवारा, गरीब, बीमार और बाकी ऐसे ही, वो भी किसी काम के नहीं हाते." 

"लेकिन" मैंने श्रमपूर्वक कहा "इस की वजह से आप्रवासियों की तादाद कम होने लगेगी." 

बूढ़े ने सहमति में सिर हिलाया. 

"मैं प्रस्ताव दूंगा कि कुछ समय के बाद उनके लिए हमारे देश के दरवाजे हमेशा के लिए बन्द कर दिए जाएं ... लेकिन फिलहाल के लिए हर किसी ने अपने साथ थोड़ा बहुत सोना लेकर आना चाहिए ... जो हमारे देश के लिए अच्छा होगा. इसके अलावा यह भी जरूरी है कि यहां के हिसाब से ढलने के लिए उन्हें ज्यादा समय दिया जाए. समय के साथ साथ यह सारा पूरी तरह बन्द कर दिया जाना चाहिए. अमेरीकियों के लिए जो भी काम करना चाहे वह इस के लिए आजाद हे लेकिन यह कतई जरूरी नहीं कि उन्हें भी अमरीकी नागरिकों की तरह अधिकार दिए जाएं. वैसे भी हमने पर्याप्त अमेरिकी पैदा कर लिए हैं. उन में से हर कोई हमारी आबादी बढ़ा पाने में सज्ञाम है. यह सब सरकार का सिरदर्द है. लेकिन इस सब को एक दूसरे आधार पर व्यवस्थित किए जाने की जरूरत है. सरकार के सारे सदस्यों को औद्योगिक इकाइयों में शेयर दिए जाने चाहिए ताकि वे देश के फायदे की बात अच्छे से और जल्दी सीख सकें. फिलहाल तो मुझे सीनेटरों को खरीदना है ताकि मैं उन्हें ... इस या उस बात के लिए पटा सकूं. तब उसकी जरूरत भी नहीं पड़ेगी."

उसने आह भरी और अपनी टांग को झटकते हुए जोड़ा :

"जिन्दगी को सही कोण से देखने के लिए आपको बस सोने के पहाड़ की चोटी पर खड़ा होना होता है"

"और धर्म के बारे में आप का क्या ख्याल है?" अब मैंने प्रश्न किया जबकि वह अपना राजनैतिक दृष्टिकोण स्पष्ष्ट कर चुका था.

"अच्छा!" उसने उत्तेजना के साथ अपने घुटनों को थपथपाया और बरौनियों को झपकाते हुए कहा : "मैं इस बारे में भली बातें सोचता हूं. लोगों के लिए धर्म बहुत जरूरी है. इस बात पर मेरा पूरा यकीन है. सच बताऊं तो मैं खुद इतवारों को चर्च में भाषण दिया करता हूं ... बिल्कुल सच कह रहा हूं आप से." 

"और आप क्या कहते हैं अपने भाषणों में?" मैंने सवाल किया. 

"वही सब जो एक सच्चा ईसाई चर्च में कह सकता है!" उसने बहुत विश्वस्त होकर कहा. "देखिए मैं एक छोटे चर्च में भाषण देता हूं और गरीब लोगों को हमेशा दयापूर्ण शब्दों और पितासदृश सलाह की जरूरत होती है ... मैं उनसे कहता हूं ..."

एक क्षण को उस के चेहरे पर बच्चों का सा भाव आया और उसने अपने होंठों को आपस में कस कर चिपका लिया. उसकी निगाह छत की तरफ उठी जहां कामदेव के शर्माते हुए चाकर एक मांसल औरत के निर्वसन शरीर को छिपा रहे थे. औरत का बदन यार्कशायर की किसी घोड़ी की तरह गुलाबी था. छत के रंग उसकी बेचमक आंखों में प्रतिविम्बित हुए और उनमें एक कौंध रेंग आई. फिर उसने शान्त स्वर में बोलना शुरू किया :

"ईसामसीह के भाइयो और बहनो! ईष्र्या के दैत्य के लालच से खुद को बचाओ और दुनियादारी से भरी चीजों को त्याग दो. इस धरती पर जीवन संक्षिप्त होता है : बस चालीस की आयु तक आदमी अच्छा मजदूर बना रह सकता है. चालीस के बाद उसे फैक्ट्रियों में रोजगार नहीं मिल सकता. जीवन कतई सुरक्षित नहीं है. काम के वक्त आपके हाथों का एक गलत काम और मशीन आपकी हडि्डयों को कुचल सकती है. एक सनस्ट्रोक और आपकी कहानी खत्म हो सकती है. हर कदम पर बीमारी और दुर्भाग्य कुत्ते की तरह आपका पीछा करते रहते हैं. एक गरीब आदमी किसी ऊंची इमारत की छत पर खड़े दृष्टिहीन आदमी जैसा होता है. वह जिस दिशा में जाएगा अपने विनाश में जा गिरेगा जैसा जूड के भाई फरिश्ते जेम्स ने हमें बताया है. भाइयो आप को दुनियावी चीजों से बचना चाहिए. वह मनुष्य को तबाह करने वाले शैतान का कारनामा है. ईसामसीह के प्यारे बच्चो तुम्हारा सामाज्य तुम्हारे परमपिता के सामाज्य जैसा है. वह स्वर्ग में है. और अगर तुम में धैर्य होगा और तुम अपने जीवन को बिना शिकायत किए बिना हल्ला किए बिताओगे तो वह तुम्हें अपने पास बुलाएगा और इस धरती पर तुम्हारी कड़ी मेहनत के परिणाम के बदले तुम्हें ईनाम में स्थाई शान्ति बख्शेगा. यह जीवन तुम्हारी आत्मा की शुद्धि के लिए दिया गया है और जितना तुम इस जीवन में सहोगे उतना ज्यादा आनन्द तुम्हें मिलेगा जैसा कि खुद फरिश्ते जूड ने बताया है."

उसने छत की तरफ इशारा किया और कुछ देर सोचने के बाद ठण्डी और कठोर आवाज में कहा:

"हां मेरे प्यारे भाइयो और बहनो अगर आप अपने पड़ोसी के लिए चाहे वह कोई भी हो इसे कुर्बान नहीं करते तो यह जीवन खोखला और बेहद आम है. ईर्ष्या के राक्षस के सामने अपने दिलों को समर्पित मत करो. किस चीज से ईर्ष्या करोगे? जीवन के आनन्द धोखा भर होते हैं; राक्षस के खिलौने. हम सब मारे जाएंगे¸ अमीर और गरीब¸ राजा और कोयले की खान में काम करने वाले मजदूर¸ बैंकर और सड़क पर झाड़ू लगाने वाले. यह भी हो सकता है कि स्वर्ग के उपवन में आप राजा बन जाएं और राजा झाड़ू लेकर रास्ते से पत्तियां साफ कर रहा हो और आपकी खाई हुई मिठाइयों के छिलके बुहार रहा हो. भाइयो¸ यहां इस धरती पर इच्छा करनो को है ही क्या? पाप से भरे इस घने जंगल में जहां आत्मा बच्चों की तरह पाप करती रहती है.प्यार और विनम्रता का रास्ता चुनो और जो तुम्हारे नसीब में आता है उसे सहन करो. अपने साथियों को प्यार दो उन्हें भी जो तुम्हारा अपमान करते हैं …"
उसने फिर से आंखें बन्द कर लीं और अपनी कुर्सी पर आराम से हिलते हुए बोलना जारी रखा:

"ईर्ष्या की उन पापी भावनाओं और लोगों की बात पर जरा भी कान न दो जो तुम्हारे सामने किसी की गरीबी और किसी दूसरे की सम्पन्नता का विरोधाभास दिखाती हैं. ऐसे लोग शैतान के कारिन्दे होते हैं. अपने पड़ोसी से ईर्ष्या करने से भगवान ने तुम्हें मना किया हुआ है. अमीर लोग भी निर्धन होते हैं :प्रेम के मामले मे. ईसामसीह के भाई जूड ने कहा था अमीरों से प्यार करो क्योंकि वे ईश्वर के चहेते हैं. समानता की कहानियों और शैतान की बाकी बातों पर जरा भी ध्यान मत दो. इस धरती पर क्या होती है समानता? आपने अपने ईश्वर के सम्मुख एक दूसरे के साथ अपनी आत्मा की शुद्धता में बराबरी करनी चाहिए. धैर्य के साथ अपनी सलीब धारण करो और आज्ञापालन करने से तुम्हारा बोझ हल्का हो जाएगा. ईश्वर तुम्हारे साथ है मेरे बच्चो और तुम्हें उस के अलावा किसी चीज की जरूरत नहीं है!"

बूढ़ा चुप हुआ और उसने अपने होंठों को फैलाया. उसके सोने के दांत चमके और वह विजयी मुद्रा में मुझे देखने लगा. "आपने धर्म का बढ़िया इस्तेमाल किया" मैंने कहा. "हां बिल्कुल ठीक! मुझे उसकी कीमत पता है." वह बोला "मैं अपनी बात दोहराता हूं कि गरीबों के लिए धर्म बहुत जरूरी है. मुझे अच्छा लगता है यह. यह कहता है कि इस धरती पर सारी चीजें शैतान की हैं. और ए इन्सान अगर तू अपनी आत्मा को बचाना चाहता है तो यहां धरती पर किसी भी चीज को छूने तक की इच्छा मत कर. जीवन के सारे आनन्द तुझे मौत के बाद मिलेंगे. स्वर्ग की हर चीज तेरी है. जब लोग इस बात पर विश्वास करते हैं तो उन्हें सम्हालना आसान हो जाता है. हां धर्म एक चिकनाई की तरह होता है. और जीवन की मशीन को हम इससे चिकना बनाते रहें तो सारे पुर्ज़े ठीकठाक काम करते रहते हैं और मशीन चलाने वाले के लिए आसानी होती है …"

"यह आदमी वाकई में राज है" मैंने फैसला किया.

"और क्या आप अपने आप को अच्छा ईसाई समझते हैं ?" सूअरों के झुण्ड से निकली उस नवीनतम संतति से मैंने बड़े आदर से पूछा.

"बिल्कुल!" उसने पूरे विश्वास के साथ कहा "लेकिन" उसने छत की तरफ इशारा करते हुए धीरगम्भीर आवाज में कहा "साथ ही मैं एक अमरीकी हूं और कड़ा नैतिकतावादी भी …"

उसके चेहरे पर एक नाटकीय भाव आया और अपने होंठों पर जबान फेरी. उसके कान उसकी नाक के नजदीक आ गए.

"आपका सही सही मतलब क्या है ?" मैंने धीमी आवाज में उससे पूछा. 

"आपके मेरे बीच की बात है" वह फुसफुसाया "एक अमरीकी के लिए ईसामसीह को पहचानना असंभव है." 

"असम्भव?" थोड़ा ठहरकर मैंने फुफुसाते हुए पूछा. 

"बिल्कुल" वह सहमत होते हुए फुसफुसाया. 

"लेकिन क्यों?" एक क्षण को खामोश हो कर मैंने पूछा.

"उसका जन्म किसी विवाह का परिणाम नहीं था." आंख मारते हुए बूढ़ा अपनी निगाह कमरे में इधर उधर डालता हुआ बोला. "आप समझ रहे हैं ना ? जिसका भी जन्म किसी विवाह का परिणाम न हो उसे तो यहां अमरीका में ईश्वर के बारे में बोलने का अधिकार तक नहीं मिल सकता. भले लोगों के समाज में कोई उसकी तरफ देखता भी नहीं. कोई भी लड़की उस से शादी नहीं करेगी. हम लोग बहुत कड़े कायदे कानूनों वाले होते हैं. और अगर हम ईसामसीह को स्वीकार करते हैं तो हमें सारे हरामियों को समाज में सम्मानित नागरिकों की तरह स्वीकार करना होगा ... चाहे वे किसी नीग्रो और किसी गोरी औरत की पैदाइश क्यों न हों. जरा सोचिए कितना हैबतनाक होगा यह सब! है ना!"

ऐसा वास्तव में हैबतनाक होता क्योंकि बूढ़े की आंखें हरी हो गईं और किसी उल्लू की सी नजर आने लगीं. अपने निचले होंठ को उसने बमुश्किल ऊपर की तरफ खींचा और अपने दांतों से चिपका लिया. उसे यकीन था कि ऐसा करने से वह ज्यादा प्रभावशाली और कठोर नजर आता होगा. 

"और आप किसी भी नीग्रो को सीधे सीधे इन्सान नहीं समझते?" एक लोकतांत्रिक देश की नैतिकता से उदास होकर मैंने पूछा. 

"आप भी कितने भोले हैं!" उसने मुझ पर दया जताते हुए कहा. "एक तो वे काले होते हैं. दूसरे उन से बदबू आती है. हमें जब भी पता लगता है कि किसी नीग्रो ने किसी गोरी औरत को बीवी बना कर रखा है तो हम तुरन्त उसका इन्साफ कर देते हैं. हम उसकी गरदन पर एक रस्सी बांधकर बिना ज्यादा सोचविचार के सबसे नजदीकी पेड़ पर लटका देते हैं. जब भी नैतिकता की बात आती है हम लोग बहुत कठोर होते हैं …"

अब उसके लिए मेरी भीतर वह इज्जत जागने लगी जो एक सड़ती हुई लाश को लेकर जागती है. लेकिन मैंने एक काम उठाया हुआ था और मैं उसे पूरा करना चाहता था.

"समाजवादियों के लिए आपका क्या रवैया है ?" 

"वे तो शैतान के असली चाकर हैं!" उसने अपने घुटने पर हाथ मारते हुए तुरन्त जवाब दिया "समाजवादी जीवन की मशीन में बालू की तरह होते हैं जो हर जगह घुस जाती है और मशीन को ठीक से काम नहीं करने देती. अच्छी सरकार के सामने कोई समाजवादी नहीं होना चाहिए. तब भी वे अमरीका में पैदा हो रहे हैं. इसका मतलब यह हुआ कि वाशिंगटन वालों को उनके काम धन्धों की जरा भी जानकारी नहीं हे. उन्होंने समाजवादियों को नागरिक अधिकारों से वंचित कर देना चाहिए. कुछ तो होगा इस से. मेरा मानना है कि सरकार को वास्तविकता के ज्यादा नजदीक रहना चाहिए. और ऐसा तब हो सकता है जब उसके सारे सदस्य अरबपति हों. असल बात यह है." 

"आप अपनी बातों पर कायम रहने वाले इन्सान हैं" मैने कहा. 

"बिल्कुल सही!" उसने स्वीकार करते हुए अपना सिर हिलाया. उसके चेहरे पर से बच्चों वाला भाव समाप्त हो गया और उसके गालों पर गहरी झुर्रियां उतर आईं. 

मैं उस से कला के बारे में कुछ सवाल करना चाहता था. 

"आपका रवैया ..." मैंने बोलना शुरू किया पर उसने उंगली ऊंची करते हुए कहा :

"दिमाग में नास्तिकता और शरीर में अराजकता : यही होता है समाजवादी. उसकी आत्मा को शैतान ने पागलपन और गुस्से के पंखों से सुसज्जित कर दिया है …. समाजवादी से लड़ने के लिए हमें और ज्यादा धर्म और सिपाहियों की जरूरत पड़ेगी. नास्तिकता के लिए धर्म और अराजकता के लिए सैनिक. पहले तो समाजवादी के दिमाग को चर्च के उपदेशों से भरा जाए. और अगर इस से उसका उपचार न हो सके तो सैनिकों से कहा जाए कि उसके पेट में गोलियां ठूंस दें."

उसने ठोस विश्वास के साथ सिर हिलाते हुए कहा:

"शैतान की ताकत बहुत बड़ी होती है."

"यकीनन ऐसा ही है" मैंने तुरन्त स्वीकार कर लिया.

ऐसा पहली बार हो रहा था कि मुझे सोना नाम के पीले दैत्य की ताकत और उसके प्रभाव देखना का मौका मिला था. इस बूढ़े की जर्जर हडि्डयों वाली कमजोर देह ने अपनी त्वचा के भीतर सड़े हुए कूड़े का ढेर छिपा रखा था जो इस वक्त झूठ और अध्यात्मिक भ्रष्टाचार के परमपिता की ठण्डी और क्रूर इच्छाशक्ति के प्रभाव में उत्तेजित हो गया था. बूढ़े की आंखें जैसे दो सिक्कों में बदल गई थीं और वह ज्यादा ताकतवर और रूखा दिखने लगा था. अब वह पहले से कहीं ज्यादा एक नौकर लगने लगा था लेकिन मुझे मालूम चल गया कि उसका मालिक कौन है. 

"कला के बारे में आपके क्या विचार हैं?" मैंने सवाल किया. 

उसने मुझे देखा¸ और अपने चेहरे पर हाथ फिराते हुए वहां से कठोर ईर्ष्या के भाव हटा दिए. एक बार फिर कोई बालसुलभ चीज उसके चेहरे पर उतर आई. 

"क्या कहा आपने?" उसने पूछा.

"कला के बारे में आपके क्या विचार हैं?"

"ओह" उसने ठण्डे स्वर में जवाब दिया "मैं उसके बारे में कुछ नहीं सोचता. मैं उसे खरीद लेता हूं …"

"मुझे मालूम है. पर शायद कला के बारे में आपके कुछ विचार हों और यह कि आप उस से क्या उम्मीद रखते हैं?" 

"ओह शर्तिया. मैं जानता हूं मुझे कला से क्या चाहिए होता है ... कला ने आपका मनोरंजन करना चाहिए. उसे देख कर मुझे हंसी आनी चाहिए. मेरे धन्धे में ऐसा ज्यादा कुछ नहीं जो मुझे हंसा सके. दिमाग को कभी कभी ठण्डाई की जरूरत पड़ती है .... और शरीर को उत्तेजना की. छतों और दीवारों पर लगे कुलीन चित्रों ने भूख बढ़ाने का काम करना चाहिए ... विज्ञापनों को सबसे बढ़िया और चमकीले रंगों से बनाया जाना चाहिए. विज्ञापन ने आपको एक मील दूर से ललचा देने लायक होना चाहिए ताकि आप तुरन्त उसकी मर्जी का काम करें. तब तो कुछ फायदा है. मूर्तियां और गुलदस्ते हमेशा तांबे के बढ़िया होते हैं बजाय संगमरमर या पोर्सलीन के. नौकरों से पोर्सलीन की चीजें टूट जाने का खतरा बना रहता है. मुर्गियों की लड़ाई और चूहों की दौड़ भी ठीक होती हैं. मैंने उन्हें लन्दन में देखा था ... मजा आया था. मुक्केबाजी भी अच्छी होती है पर यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि मुकाबले का अन्त किसी हत्या में न हो ... संगीत देशभक्तिपूर्ण होना चाहिए. मार्चेज़ अच्छे होते हैं पर अमेरिकी मार्च सब से बढ़िया होता है. अच्छा संगीत हमेशा अच्छे लोगों के पास पाया जाता है. अमेरिकी दुनिया के सबसे अच्छे लोग होते हैं. उनके पास सबसे ज्यादा पैसा है. इतना पैसा किसी के पास नहीं. इसीलिए बहुत जल्दी सारी दुनिया हमारे पास आएगी ..."

जब मैं उस बीमार बच्चे की चटरपटर सुन रहा था मैंने कृतज्ञता के साथ तस्मानिया के जंगलियों को याद किया. कहते हैं कि वे लोग नरमांस खाते हैं लेकिन उनका सौन्दर्यबोध तब भी विकसित होता है. 

"क्या आप थियेटर जाते हैं?" पीले दैत्य के गुलाम से मैंने पूछा ताकि मैं उसकी उस शेखी को रोक सकूं जो वह अपने मुल्क के बारे में बघार रहा था जिसे उसने अपने जीवन से प्रदूषित कर रखा था. 

"थियेटर? हां हां वह भी कला है!" उसने आत्मविश्वास के साथ कहा. 

"और थियेटर में आपको क्या पसन्द है?" 

"एक तो वहां बहुत सारी जवान महिलाएं होती हैं जिन्होंने नीची गरदन वाले गाउन पहने होते हैं. आप ऊपर से उन्हें देख सकते हैं" एक पल सोचने के बाद उसने कहा. 

"लेकिन थियेटर में आप को सब से ज्यादा क्या पसन्द आता है?" मैंने बेचैन महसूस करते हुए पूछा.

"ओह" अपने होंठों को करीब करीब अपने कानों तक ले जाते हुए उसने कहना शुरू किया. "जैसा हरेक को लगता है मुझे भी अभिनेत्रियां सबसे ज्यादा पसन्द हैं ... अगर वे सारी जवान और खूबसूरत हों तब. लेकिन तुरन्त देख कर आप बता नहीं सकते कि उनमें से कौन सी जवान है. वे सब इस कदर बनी संवरी रहती हैं. मेरे ख्याल से यही उनके पेशे की मांग होती होगी. लेकिन कभी कभी आप को लगता कि वो लड़की बढ़िया दिखती है! मगर बाद में आपको पता लगता है कि वह पचास साल की है और उसके कम से कम दो सौ आशिक हैं. यह शर्तिया बहुत अच्छा नहीं लगता. सर्कस की लड़कियां उन से कहीं बेहतर होती हैं. वो हमेशा ज्यादा जवान होती हैं और उनके शरीर लोचदार ..." 

निश्चय ही इस विषय पर वह उस्ताद की हैसियत रखता था. खुद मैं जो जीवन भर पापों में उलझा रहा था¸ इस आदमी से काफी कुछ सीख सकता था. 

"और आप को कविता कैसी लगती है?" मैंने पूछा. 

"कविता?" अपने जूतों को देखते हुए उसने मेरी ही बात को दोहराया. उसने एक क्षण को सोचा अपना सिर उठाया और अपने सारे दांत एक ही बार में दिखाता हुआ बोला "कविताएं? अरे हां! मुझे कविताएं पसन्द हैं. अगर हरेक आदमी विज्ञापनों को कविता में लिखना चालू कर दे तो जिन्दगी बहुत खुशनुमा हो जाएगी."

"आप का सब से प्रिय कवि कौन है?" मैंने जल्दी जल्दी अगला सवाल पूछा. 

कुछ परेशान होते हुए बूढ़े ने मुझे देख कर धीमे से पूछा: "आपने क्या कहा?" 

मैंने अपना सवाल दोहराया. 

"हम्म्म्म ... आप बड़े मजाकिया आदमी हैं" संशय के साथ अपना सिर हिलाते हुए उसने कहा "मैं क्यों किसी कवि को पसन्द करूं? और किसी कवि को किस बात के लिए पसन्द किया जाना चाहिए?" 

"माफ कीजिए" अपने माथे से पसीना पोंछते हुए मैंने कहा "मैं आप से पूछ रहा था कि आप की चैकबुक के अलावा आप की सबसे पसन्दीदा किताब कौन सी है ..." 

"वह एक अलग बात है!" उसने सहमत होते हुए कहा "मेरी सबसे पसन्दीदा दो किताबों में एक है बाइबिल और दूसरा मेरा बहीखाता. वे दोनों मेरे दिमाग को बराबर मात्रा में उत्तेजित करती हैं. जैसे ही आप उन्हें अपने हाथ में थामते हैं आपको अहसास होता है कि उनके भीतर एक ऐसी ताकत जो आप को आप की जरूरत का हर सामान उपलब्ध करा सकती है ..."

"ये आदमी मेरी मजाक उड़ा रहा है" मुझे लगा और मैंने सीधे सीधे उसके चेहरे को देखा. नहीं. उसकी बच्चों जैसी आंखों ने मेरे सारे संशय दूर कर दिए. वह अपनी कुर्सी पर बैठा हुआ था अपने खोल में घुसे अखरोट की तरह सिकुड़ा हुआ और यह बात साफ थी कि उसे अपने कहे हर शब्द की सच्चाई पर पूरा यकीन था.

"हां!" अपने नाखूनों की जांच करते हुए उसने बोलना जारी रखा "वे शानदार किताबें हैं! एक फरिश्तों ने लिखी और दूसरी मैंने. आप को मेरी किताब में बहुत कम शब्द मिलेंगे. उसमें संख्याएं ज्यादा है. वह दिखाती है कि अगर आदमी ईमानदारी और मेहनत से काम करता रहे तो वह क्या पा सकता है. सरकार मेरी मौत के बाद मेरी किताब छापे तो वह अच्छा काम होगा. लोग भी तो जानें कि मेरी जैसी जगह पर आने के लिए क्या क्या करना पड़ता है़" 

उसने विजेताओं की सी मुद्रा बनाई. 

मुझे लगा कि साज्ञाात्कार खत्म करने का समय आ चुका है. हर कोई सिर इस कदर लगातार कुचला जाना बरदाश्त नहीं कर सकता. 

"शायद आप विज्ञान के बारे में कुछ कहना चाहेंगे?" मैंने शान्ति से सवाल किया. 

"विज्ञान?" उसने अपनी एक उंगली छत की तरफ उठाई. फिर उसने अपनी घड़ी बाहर निकाली समय देखा और उसकी चेन को अपनी उंगली पर लपेटते हुए उसे हवा में उछाल दिया. फिर उसने एक आह भरी और कहना शुरू किया:

"विज्ञान हां मुझे मालूम है. किताबें. अगर वे अमेरिका के बारे में अच्छी बातें करती हैं तो वे उपयोगी हैं. मेरा विचार ये कवि लोग जो किताबें विताबें लिखते हैं बहुत कम पैसा बना पााते हैं. ऐसे देश में जहां हर कोई अपने धन्धे में लगा हुआ है किताबें पढ़ने का समय किसी के पास नहीं है …. हां और ये कवि लोग गुस्से में आ जाते हैं कि कोई उनकी किताबें नहीं खरीदता. सरकार ने लेखकों को ठीकठाक पैसा देना चाहिए. बढ़िया खाया पिया आदमी हमेशा खुश और दयालु होता है. अगर अमेरिका के बारे में किताबें वाकई जरूरी हैं तो अच्छे कवियों को किराए पर लगाया जाना चाहिए और अमरीका की जरूरत की किताबें बनाई जानी चाहिए और क्या."

"विज्ञान की आपकी परिभाषा बहुत संकीर्ण है." मैंने विचार करते हुए कहा.

उसने आंखें बन्द कीं और विचारों में खो गया. फिर आंखें खोलकर उसने आत्मविश्वास के साथ बोलना शुरू किया:

"हां हां अध्यापक और दार्शनिक वह भी विज्ञान होता है. मैं जानता हूं प्रोफेसर¸ दाइयां¸ दांतों के डाक्टर ये सब. वकील¸ डाक्टर¸ इंजीनियर. ठीक है ठीक है. वो सब जरूरी हैं. अच्छे विज्ञान ने खराब बातें नहीं सिखानी चाहिए. लेकिन मेरी बेटी के अध्यापक ने एक बार मुझे बताया था कि सामाजिक विज्ञान भी कोई चीज है …. ये बात मेरी समझ में नहीं आई …. मेरे ख्याल से ये नुकसानदेह चीजें हैं. एक समाजशास्त्री अच्छे विज्ञान की रचना नहीं कर सकता उनका विज्ञान से कुछ लेना देना नहीं होता. एडीसन बना रहा है ऐसा विज्ञान जो उपयोगी है. फोनोगाफ और सिनेमा वह उपयोगी हे. लेकिन विज्ञान की इतनी सारी किताबें. ये तो हद है. लोगों ने उन किताबों को नहीं पढ़ना चाहिए जिनसे उन के दिमागों में संदेह पैदा होने लगें. इस धरती पर सब कुछ वैसा ही है जैसा होना चाहिए और उस सब को किताबों के साथ नहीं गड़बड़ाया जाना चाहिए." 

मैं खड़ा हो गया. 

"अच्छा तो आप जा रहे हैं?" 

"हां" मैंने कहा "लेकिन शायद चूंकि अब मैं जा रहा हूं क्या आप मुझे बता सकते हैं करोड़पति होने का मतलब क्या है?" 

उसे हिचकियां आने लगीं और वह अपने पैर पटकने लगा. शाायद यह उसके हंसने का तरीका था? 

"यह एक आदत होती है" जब उसकी सांस आई वह जोर से बोला. 

"आदत क्या होती है?" मैंने सवाल किया. 

"करोड़पति होना ... एक आदत होती है भाई!" 

कुछ देर सोचने के बाद मैंने अपना आखिरी सवाल पूछा: 

"तो आप समझते हैं कि सारे आवारा नशेड़ी और करोड़पति एक ही तरह के लोग होते हैं?"

इस बात से उसे चोट पहुंची होगी. उसकी आंखें बड़ी हुईं और गुस्से ने उन्हें हरा बना दिया.

"मेरे ख्याल से तुम्हारी परवरिश ठीकठाक नहीं हुई है." उसने गुस्से में कहा.

"अलविदा" मैंने कहा.

वह विनम्रता के साथ मुझे पोर्च तक छोड़ने आया और सीढ़ियों के ऊपर अपने जूतों को देखता खड़ा रहा. उसके घर के आगे एक लान था जिस पर बढ़िया छंटी हुई घनी घास थी. मैं यह विचार करता हुआ लान पर चल रहा था कि मुझे इस आदमी से शुक्र है कभी नहीं मिलना पड़ेगा. तभी मुझे पीछे से आवाज सुनाई दी: 

"सुनिए" 

मैं पलटा. वह वहीं खड़ा था और मुझे देख रहा था. 

"क्या यूरोप में आपके पास जरूरत से ज्यादा राजा हैं?" उसने धीरे धीरे पूछा. 

"अगर आप मेरी राय जानना चाहते हैं तो हमें उनमें से एक की भी जरूरत नहीं है." मैंने जवाब दिया. 

वह एक तरफ को गया और उसने वहीं थूक दिया. 

"मैं सोच रहा कि अपने दिए दोएक राजाओं को किराए पर रखने की." वह बोला. "आप क्या सोचते हैं?"
"लेकिन किस लिए?"

"बड़ा मजेदार रहेगा. मैं उन्हें आदेश दूंगा कि वे यहां पर मुक्केबाजी कर के दिखाएं …"

उसने लान की तरफ इशारा किया और पूछताछ के लहजे में बोला:

"हर रोज एक से डेढ़ बजे तक. कैसा? दोपहर के खाने के बाद कुछ देर कला के साथ रहना अच्छा रहेगा बहुत ही बढ़िया."

वह ईमानदारी से बोल रहा था और मुझे लगा कि अपनी इच्छा पूरी करने के लिए वह कुछ भी कर सकता है.

"लेकिन इस काम के लिए राजा ही क्यों?"

"क्योंकि आज तक किसी ने इस बारे में नहीं सोचा" उसने समझाया.

"लेकिन राजाओं को तो खुद दूसरों को आदेश देने की आदत पड़ी होती है" इतना कह कर मैं चल दिया.

"सुनिए तो" उसने मुझे फिर से पुकारा.

मैं फिर से ठहरा. अपनी जेबों में हाथ डाले वह अब भी वहीं खड़ा था. उसके चेहरे पर किसी स्वप्न का भाव था.

उसने अपने होंठों को हिलाया जैसे कुछ चबा रहा हो और धीमे से बोला:

"तीन महीने के लिए दो राजाओं को एक से डेढ़ बजे तक मुक्केबाजी करवाने में कितना खर्च आएगा आपके विचार से?"

1 comment:

hillwani said...

अद्भुत अध्याय, अद्भुत अनुवाद.. मक्सिम गोर्की ऐसा ही था. ऐसा ही उसका लेखन था. यही है अनुवाद. यही सबक है. मेरी अपील है कि यही सबको सीखना चाहिए. अनुवाद में हम गोर्की की करामात की झलक देख रहे हैं. थैंक्स अशोक जी. ये तपिश भी है और तपस्या भी है. गोर्की का दैत्य आज भी हूबहू वैसा ही है. वही सब वो कर रहा है. वही सब यहां हो रहा है. मुझे तो ये एक बहुत महत्त्वपूर्ण पोस्ट लगती है इस वर्ष की, इस समय की.
सादर,
शिवप्रसाद जोशी