Saturday, February 6, 2016

बह रही है पूजा आज भी डरी हुई आँखों से

जलसा से शेफ़ाली फ्रॉस्ट की कविताएं – 5

फ़ोटो firozeshakir.com से साभार

फटी ईंट 

वो पाँव जो फंसे थे सीमेंट और पानी में,   
रंग रहा था जंग लगा सरिया
केसरिया नाखून जिनके
निकल गएबूढ़ी पैजनियों सेठुमक,
उड़ गएबिना लिंटर की छत से,
फड़फड़ाते हुए टांग  

पीछे की चहारदीवारी पर रंगा लाल वानर,  
हज़ार सिर एक पूँछ में बाँध,
पोखर में कूद जाता था जो
चला गया वो भी,  
पाँव के कमल से,
हाथ के चँवर से,
तोड़ कर पुल,  
संकट मोचितसेवा से विमुख 

भूल चुका है यह मंदिर 
वो नाम
जो फटे भक्तों की ईंट पर लिख कर आया था,
जिसके टूटे हुए गुस्से पर
कोई और आ के बैठ गया है... 
सींच रहा है मरा हुआ सीमेंट अब भी लेकिन 
भूखे पुजारियों का दंश,
बह रही है पूजा आज भी  
डरी हुई आँखों से

अविरल.

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