जलसा से शेफ़ाली फ्रॉस्ट की कविताएं – 5
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फ़ोटो firozeshakir.com से साभार |
फटी ईंट
वो
पाँव जो फंसे थे सीमेंट और पानी में,
रंग
रहा था जंग लगा सरिया
केसरिया
नाखून जिनके,
निकल
गए, बूढ़ी
पैजनियों से, ठुमक,
उड़
गए, बिना
लिंटर की छत से,
फड़फड़ाते
हुए टांग
पीछे
की चहारदीवारी पर रंगा लाल वानर,
हज़ार
सिर एक पूँछ में बाँध,
पोखर
में कूद जाता था जो,
चला
गया वो भी,
पाँव
के कमल से,
हाथ
के चँवर से,
तोड़
कर पुल,
संकट
मोचित, सेवा
से विमुख
भूल
चुका है यह मंदिर
वो
नाम,
जो
फटे भक्तों की ईंट पर लिख कर आया था,
जिसके
टूटे हुए गुस्से पर,
कोई
और आ के बैठ गया है...
सींच
रहा है मरा हुआ सीमेंट अब भी लेकिन
भूखे
पुजारियों का दंश,
बह
रही है पूजा आज भी
डरी
हुई आँखों से,
अविरल.
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