अभयारण्य
- संजय चतुर्वेदी
चिंतन
में श्रृगाल परिपाटी,
हुआं-हुआं इत हुआं-हुआं उत फिर क्यों उम्मत बांटी
हर सियार का रंग अलग है तिरक चाल भन्नाटी
अलग तंज़ मुनफ़रिद किनाया चौकस कन्नी काटी
लेकिन सबकी एक वासना एक मलाई चाटी
ऊंचे सुर लम्बी लयकारी भई ज़िन्दगी नाटी
जीवन में विचार बंदरवा मारै कठिन गुलाटी.
(2016)
No comments:
Post a Comment