परवीन शाकिर (1952-1994) |
परवीन शाकिर की ग़ज़ल
टूटी है मेरी नींद मगर तुमको इससे क्या
बजते रहें हवाओं से दर तुमको इससे क्या
बजते रहें हवाओं से दर तुमको इससे क्या
तुम मौज –मौज मिस्ले-सबा घूमते रहो
कट जायें मेरी सोच के पर तुमको इससे क्या
कट जायें मेरी सोच के पर तुमको इससे क्या
औरों के हाथ थामो उन्हें रास्ता दिखाओ
मैं भूल जाऊँ अपना ही घर तुमको इससे क्या
मैं भूल जाऊँ अपना ही घर तुमको इससे क्या
अब्रे –गुरेज़पा को बरसने से क्या गरज़
सीपी मे बन न पाये गुहर तुमको इससे क्या
सीपी मे बन न पाये गुहर तुमको इससे क्या
ले जाये मुझको माले-गनीमत के साथ उदू
तुमने तो डाल दी है सिपर तुमको इससे क्या
तुमने तो डाल दी है सिपर तुमको इससे क्या
तुमने तो थम के दश्त में खेमे गड़ा दिये
तन्हा कटे किसी का सफर , तुमको इससे क्या
तन्हा कटे किसी का सफर , तुमको इससे क्या
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