आवाज़ छाया गांगुली की. कलाम नज़ीर अकबराबादी का-
जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की
ख़म शीशए, जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की
महबूब नशे में छकते हों तब देख बहारें होली की
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