Saturday, March 19, 2016

अश्लील पुस्तकें


अश्लील पुस्तकें 
- हरिशंकर परसाई

शहर में ऐसा शोर था कि अश्‍लील साहित्‍य का बहुत प्रचार हो रहा है. अखबारों में समाचार और नागरिकों के पत्र छपते कि सड़कों के किनारे खुलेआम अश्‍लील पुस्‍तकें बिक रही हैं.

दस-बारह उत्‍साही समाज-सुधारक युवकों ने टोली बनाई और तय किया कि जहाँ भी मिलेगा हम ऐसे साहित्‍य को छीन लेंगे और उसकी सार्वजनिक होली जलाएँगे.

उन्‍होंने एक दुकान पर छापा मारकर बीच-पच्‍चीस अश्‍लील पुस्‍तकें हाथों में कीं. हरेक के पास दो या तीन किताबें थीं. मुखिया ने कहा – आज तो देर हो गई. कल शाम को अखबार में सूचना देकर परसों किसी सार्वजनिक स्‍थान में इन्‍हें जलाएँगे. प्रचार करने से दूसरे लोगों पर भी असर पड़ेगा. कल शाम को सब मेरे घर पर मिलो. पुस्‍तकें मैं इकट्ठी अभी घर नहीं ले जा सकता. बीस-पच्‍चीस हैं. पिताजी और चाचाजी हैं. देख लेंगे तो आफत हो जाएगी. ये दो-तीन किताबें तुम लोग छिपाकर घर ले जाओ. कल शाम को ले आना.

दूसरे दिन शाम को सब मिले पर किताबें कोई नहीं लाया था. मुखिया ने कहा – किताबें दो तो मैं इस बोरे में छिपाकर रख दूँ. फिर कल जलाने की जगह बोरा ले चलेंगे.

किताब कोई लाया नहीं था.

एक ने कहा – कल नहीं, परसों जलाना. पढ़ तो लें.

दूसरे ने कहा – अभी हम पढ़ रहे हैं. किताबों को दो-तीन बाद जला देना. अब तो किताबें जब्‍त ही कर लीं.

उस दिन जलाने का कार्यक्रम नहीं बन सका. तीसरे दिन फिर किताबें लेकर मिलने का तय हुआ.

तीसरे दिन भी कोई किताबें नहीं लाया.

एक ने कहा – अरे यार, फादर के हाथ किताबें पड़ गईं. वे पढ़ रहे हैं.

दूसरे ने कहा – अंकल पढ़ लें, तब ले आऊँगा.

तीसरे ने कहा – भाभी उठाकर ले गई. बोली कि दो-तीन दिनों में पढ़कर वापस कर दूँगी.

चौथे ने कहा – अरे, पड़ोस की चाची मेरी गैरहाजिरी में उठा ले गईं. पढ़ लें तो दो-तीन दिन में जला देंगे.


अश्‍लील पुस्‍तकें कभी नहीं जलाई गईं. वे अब अधिक व्‍यवस्थित ढंग से पढ़ी जा रही हैं.

1 comment:

रेणु मिश्रा said...

वाह!! क्या खूब सच बयानी है।