Thursday, March 10, 2016

हम ने पानी के धोके में फिर रेत पर कश्तियां डाल दीं

नोशी गीलानी (जन्म 1964)

पेश हैं नोशी गीलानी की दो ग़ज़लें -
1.
बंद होती किताबों में उड़ती हुई तितलियां डाल दीं
किस की रस्मों की जलती हूई आग में लड़कियां डाल दीं
ख़ौफ़ कैसा है ये नाम उस का कहीं ज़ेर-ए-लब भी नहीं
जिस ने हाथों में मेरे हरे कांच की चूड़ियाँ डाल दीं
होंट प्यासे रहे, हौसले थक गए उम्र सहरा हुई
हम ने पानी के धोके में फिर रेत पर कश्तियां डाल दीं
मौसम-ए-हिज्र की कैसी साअत है ये दिल भी हैरान है
मेरे कानों में किस ने तेरी  याद की बालियां डाल दीं

2.
दुशमन-ए-जां कई क़बीले हुए
फिर भी ख़ूओशबो के हाथ पीले हुए
बदगुमानी के सर्द मौसम में
मेरी गुड़िया के हाथ नीले हुए
जब ज़मीं की ज़बां चटखने लगी
तब कहीं बारिशों के हीले हुए
वक़्त ने ख़ाक वो उड़ाई है
शहर आबाद थे जो टीले हुए
जब परिन्दों की सांस रुकने लगी
तब हवाओं के कुछ वसीले हुए

कोई बारिश थी बदगुमानी की
सारे काग़ज़ ही दल के गीले हुए

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