Saturday, March 12, 2016

गुरू का पोर्ट्रेट चेले के ब्रश

चार्ल्स एमील ड्यूरां (1837-1917) जिन्हें कारलस ड्यूरन के नाम से जाना जाता है, अपने समय में पेरिस के कला और रंगमंच क्षेत्र में एक जानी-मानी हस्ती हुआ करते थे. कुलीन समाज के पोर्ट्रेट्स बनने में उनकी महारत थी और वे एक बेहद प्रभावी अध्यापक भी थे.

1874 में उनके स्टूडियो में बतौर शिष्य अमेरिका से जॉन सिंगर सार्जेंट का प्रवेश हुआ. सार्जेंट जल्द ही स्टूडियो के स्टार बन गए. कला को लेकर ड्यूरन की एप्रोच खासी रेडिकल थी और वे अपने छात्रों से  ड्राइंग और पेंटिंग एक साथ करने को कहते थे.


सार्जेंट बाद में बहुत बड़े चित्रकार बने. 1879 में उन्होंने अपने उस्ताद का पोर्ट्रेट बनाया जिसमें उन्होंने गुरू की प्रवाहमय तकनीक को मास्टर कर लिया था. प्रदर्शित किये जाने के बाद इस पोर्ट्रेट को एक बड़ा इनाम मिला. पोर्ट्रेट के दाईं तरफ ऊपर सार्जेंट ने अपने गुरू को समर्पित सिग्नेचर किये हैं जो सार्जेंट की अपने गुरु के प्रति सम्मान का प्रतीक हैं. इसके अलावा इस पोर्ट्रेट को देखने के बाद उस समय  के तमाम आलोचकों का मानना था कि चेले ने गुरू को कहीं पीछे छोड़ दिया था. पेश है यही पोर्ट्रेट और उसकी डीटेल्स -













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