सैयद वसी शाह की एक और ग़ज़ल -
आँखों में चुभ
गईं तेरी यादों की किर्चियाँ
काँधों पे ग़म की शाल है और चाँद-रात है
काँधों पे ग़म की शाल है और चाँद-रात है
दिल तोड़ के ख़मोश नज़ारों का क्या मिला?
शबनम का ये सवाल है और चाँद-रात है
शबनम का ये सवाल है और चाँद-रात है
कैम्पस की नहर पर है तेरा हाथ हाथ में
मौसम भी लाज़वाल है और चाँद-रात है
मौसम भी लाज़वाल है और चाँद-रात है
हर इक कली ने ओढ़ लिया मातमी लिबास
हर फूल पर मलाल है और चाँद-रात है
हर फूल पर मलाल है और चाँद-रात है
छलका सा पड़ रहा है ‘वसी’ वहशतों का रंग
हर चीज़ पे ज़वाल है और चाँद-रात है
हर चीज़ पे ज़वाल है और चाँद-रात है
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