Saturday, March 12, 2016

काँधों पे ग़म की शाल है और चाँद-रात है

सैयद वसी शाह की एक और ग़ज़ल -

आँखों में चुभ गईं  तेरी यादों की किर्चियाँ
काँधों पे ग़म की शाल है और चाँद-रात है

दिल तोड़ के ख़मोश नज़ारों का क्या मिला?
शबनम का ये सवाल है और चाँद-रात है

कैम्पस की नहर पर है तेरा हाथ हाथ में
मौसम भी लाज़वाल है और चाँद-रात है

हर इक कली ने ओढ़ लिया मातमी लिबास
हर फूल पर मलाल है और चाँद-रात है
छलका सा पड़ रहा है ‘वसी’ वहशतों का रंग
हर चीज़ पे ज़वाल है और चाँद-रात है

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