अ चॉइस इन द हिमालयाज़
67 मिनट | 2012 निर्देशक | कैथरीन अडोर-कान्फ़ाइनो
कुमाऊं में एक सुदूर गाँव
है दिगोली. पिछले पन्द्रह सालों से दिगोली के आसपास के के इलाकों में मूगा रेशम के
उत्पादन का कार्य कर रही कोओपरेटिव संस्था ‘अवनि’ वहां के विकास में एक नयी
रोशनी बनकर उभरी है. पिछले पन्द्रह सालों से अवनि ने महिलाओं को सामाजिक और आर्थिक
रूप से आत्मनिर्भर बनाया है. इस संस्था में काम करने वाली हेमा के जीवन के सामने
दो रास्ते हैं – या तो वह अपने माँ-बाप की देखरेख करने के
लिए परम्परागत तरीके से खेतों पर काम करते रखना जारी रखे या अवनि में रेशम-उत्पादन
इत्यादि का काम सीखती रहे. एक प्रदर्शनी में अवनि के उत्पादों की बिक्री करने के
लिए हेमा को दिल्ली जाने का अवसर मिलता है. वहां से जब वह घर वापस लौटती है,
उसके अनुभव का दायरा और भी बड़ा हो चुका होता है. 29 की आयु में जब
वह विवाह के हिसाब से बड़ी समझी जाती है, उसकी शादी एक
बेरोजगार और निर्धन व्यक्ति से कर दी जाती है. बिना किसी संपत्ति और पैसे के वे एक
सुदूर गाँव में जा बसते हैं पर अवनि उसके सामने प्रस्ताव रखती है कि वह स्थानीय
महिलाओं को कताई-बुनाई सिखाने के लिए अपने पति की सहायता से एक प्रशिक्षण केंद्र
खोले. हेमा के संघर्ष की कहानी है यह प्रेरणादायक फिल्म.
72
वर्षीय कैथरीन का उत्तराखण्ड और विशेषतः कुमाऊँ के साथ एक विशेष भावनात्मक लगाव
रहा है. फ्रांसीसी मूल की इस चित्रकार-फिल्मकार व वास्तुशिल्पी ने कौसानी के समीप
एक छोटे से गाँव में पिछले बीस सालों से अपना दूसरा घर बनाया हुआ है. ‘अ चॉइस इन द
हिमालयाज़’ उनकी पहली फिल्म है जिसे यूरोप और एशिया के तमाम देशों में प्रशंसा मिली.
कई फिल्म समारोहों में दिखाई जा चुकी इस फिल्म के लिए कैथरीन को चीनी सरकार ने
2013 में ‘वूमैन ऑफ़ द ईयर’ का सम्मान प्रदान किया. फिलहाल वे कुमाऊँ के साथ अपने
सम्बन्ध को अभिव्यक्त करती एक मल्टी-मीडिया प्रदर्शनी की तैयारी कर रही हैं. फिल्म
एंड आर्ट्स गिल्ड ऑफ़ उत्तराखंड ने कैथरीन की फिल्म के करीब आधा दर्ज़न शोज़
हल्द्वानी में पहले भी किये हैं.
कौसानी में अपने हिन्दुस्तानी घर के बरामदे में कैथरीन. फ़ोटो: 2015, कबाड़खाना |
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