राबर्ट
क्लाइव
- अफ़ज़ाल अहमद सैय्यद
"
मेरी सारी नेकनामी रहने दो
मेरी
सारी दौलत छीन लो "
उसके
साथ ऐसा ही किया गया
उसने
दर्द कम करने के लिए अफ्यून का इस्तेमाल ख़त्म कर दिया था
ओमीचंद
का भूत अब उसके सामने परेड नहीं करता था
उसे
मालूम था
सच
और खुशनसीबी पर उसकी इजारेदारी ख़त्म हो चुकी है
अब
किसी बारिश में
दुश्मन
का गोला बारूद नहीं भीग सकेगा
कोई
हुक्मरान
उसके
क़दमों में खड़े होकर
उसे
सुलह के दस्तावेज नहीं पेश करेगा
फिर
भी वह वही था
जिसने
तारीख की एक अहम जंग
सिर्फ
चौदह सिपाहियों के नुकसान पर जीती थी
वह
एक मुश्किल दुनिया का बाशिन्दा था
हम
उसकी खुदकशी पर अफ़सोस कर सकते हैं
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