संजय चतुर्वेदी (फ़ोटो: प्रिन्स खटीमा उर्फ़ पवन अग्रवाल) |
पुस्तक
मेले
-संजय
चतुर्वेदी
हुईं
ज्ञान से बड़ी किताबें
अर्थतन्त्र
के पुल के नीचे रखवाली में खड़ी किताबें
जंगल
कटे किताब बनाई
लेकिन
चाल ख़राब बनाई
आदम
गए अक़ील आ गए
आकर
अजब शराब बनाई
श्रम
की पूजा करते करते मज़दूरों से लड़ीं किताबें
जैसे
अपना हक़ आज़ादी
ज्ञान
हमारा हक़ बुनियादी
लेकिन
उस तक जाने वाली
राह
नहीं है सीधी सादी
नीम
फ़रेबी उनवानों की बद-आमोज़ गड़बड़ी किताबें
ये
कैसी तालीम हो गई
अच्छी
दवा अफ़ीम हो गई
जैसे
जैसे बढ़ी किताबें
दुनियां
ही तक़सीम हो गई
जब
दो क़ौमें मिलना चाहीं आपस में लड़ पड़ी किताबें
शब्दों
के शौक़ीन झमेले
इस
दुनियां के पुस्तक मेले
इसके
बदले में तू दे दे
ख़ुदा
हमें दो दर्ज़न केले
अगर
मुदर्रिस ही खोटे हों क्या कर लेंगी सड़ी किताबें
नई
किताबें नया आदमी बना सकें तो ठीक बात है
नया
आदमी अधिक सभ्य हो ये थोड़ी बारीक़ बात है
नई
किताबें मेहनत करके नए रास्तों को पहचानें
और
उन्हें धनवान बनाएं स्मृतियों में गड़ी किताबें
न
हों ज्ञान से बड़ी किताबें
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