सारस
कभी-कभी लगता है
मुझको वे सैनिक
रक्तिम युद्ध-भूमि से
लौट न जो आए
नहीं मरे वे वहाँ बने
मानो सारस
उड़े गगन में, श्वेत पंख सब फैलाए.
उन्हीं दिनों से, बीते हुए जमाने से
उड़े गगन में, गूँजे उनकी आवाजें
क्या न इसी कारण ही
अक्सर चुप रहकर
भारी मन से हम नीले
नभ को ताकें?
आज, शाम के घिरते हुए अँधेरे में
देखूँ, धुंध-कुहासे में सारस उड़ते,
अपना दल-सा एक बनाए
उसी तरह
जैसे जब थे मानव, भू पर डग भरते.
वे उड़ते हैं, लंबी मंजिल तय करते
और पुकारें जैसे नाम
किसी के वे,
शायद इनकी ही पुकार
से इसीलिए
शब्द हमारी भाषा के
मिलते-जुलते?
उड़ते जाते हैं
सारस-दल थके-थके
धुंध-कुहासे में भी, जब दिन ढलता है,
उस तिकोण में उनके
जरा जगह खाली
वह तो मेरे लिए, मुझे यह लगता है.
वह दिन आएगा, मैं सारस-दल के संग
हल्के नील अँधेरे
में उड़ जाऊँगा,
उन्हें सारसों की ही
भाँति पुकारूँगा
छोड़ जिन्हें मैं इस
धरती पर जाऊँगा.
सारस
उड़ते हैं, घास ऊँची होती है, पालने
झुलाए जाते हैं. मेरे घर में भी तीन को पालने में झुलाया गया, मेरे यहाँ तीन बेटियों का जन्म हुआ. किसी अन्य के यहाँ चार, किसी और के दस तथा किसी अन्य के पंद्रह बच्चों ने जन्म लिया. त्सादा
गाँव में एक सौ झूले झुलाए जाते हैं, दागिस्तान में एक लाख
झूले झुलाए जाते हैं. जन्म-दर की दृष्टि से दागिस्तान का रूसी संघ में पहला स्थान
है. हम पंद्रह लाख हो गए. जितने अधिक लोग होते हैं,
पहाड़ी
लोगों में कहा जाता है कि तीन मामलों में कभी देर नहीं करनी चाहिए - जब मुर्दे को
दफनाना हो, जब मेहमान को खाना खिलाना हो और जब जवान
बेटी की शादी करनी हो.
इन
तीनों मामलों में दागिस्तान में कभी देर नहीं होने देते. लीजिए, ढोल ढमढम करने लगा, जुरना झनझना उठा और शादियाँ शुरू
हो गई. शराब का पहला जाम उठाकर यह कामना की जाती है - 'बहू
बेटे को जन्म दे.'
तीन
और चीजें भी हैं जो पहाड़ी लोगों को अवश्य ही पूरी करनी चाहिए - शराब से भरे हुए
सींग को पीना चाहिए, अपने नाम को बट्टा नहीं लगने
देना चाहिए और कठिन परीक्षा के समय अपना साहस नहीं छोड़ना चाहिए.
पहाड़ी
लोगों को काफी परीक्षाओं-आजमाइशों का सामना करना पड़ा है. किस्मत के हथौड़े ने
दागिस्तान के घरों को तोड़ने के लिए कुछ कम चोटें नहीं कीं, मगर उन्होंने उन्हें सहन कर लिया.
वैसे
संसार में आज भी शांति नहीं है. हमारी पृथ्वी पर कभी यहाँ तो कभी वहाँ गोलाबारी
होने लगती है, बम फटते हैं और हमेशा की तरह आज भी माताएँ
अपने बच्चों को छातियों से चिपका लेती हैं.
जब
आकाश में बारिश लानेवाली घटाएँ घिर आती हैं तो किसान कटी हुई फसल को समेटने के लिए
खेतों की ओर भागते हैं. जब हमारी पृथ्वी के ऊपर खतरे के बादल मँडराने लगते हैं तो
लोग शांति की रक्षा करने, उसे युद्ध के खतरे से बचाने
की कोशिश करते हैं.
दागिस्तान
में ऐसा कहा जाता है - लड़के साँड़ के सींग काट दिए जाते हैं और काटनेवाले कुत्ते
को जंजीर से बाँधकर रखा जाता है. अगर हमारी दुनिया में भी ऐसी ही रीति-परंपरा होती
तो जीना आसान होता. अब छोटा-सा दागिस्तान बड़ी दुनिया के बारे में चिंता करता हुआ
जीता है.
पहले
वक्तों में पहाड़ी लोग जब कभी कहीं धावा बोलने को जाते थे तो बहुत ही जवान
सूरमाओं को अपने साथ नहीं लेते थे. लेकिन शामिल ने कहा कि ऐसा करना चाहिए. कानी
उँगली बहुत छोटी होती है, मगर उसके बिना मजबूत घूँसा
नहीं बनता.
हमारे
देश के बड़े और भारी घूँसे में दागिस्तान बेशक कानी उँगली के समान ही हो. तब
हमारे दुश्मन अपना एड़ी-चोटी का जोर लगाकर भी इस घूँसे को कमजोर नहीं कर सकेंगे.
यह
घूँसा तो दुश्मनों के लिए है, लेकिन दोस्त के कंधे पर
तो चौड़ी हथेली ही टिकी रहती है. उस हथेली में भी कानी उँगली होती है.
जब
में विदेशों में जाता हूँ तो सबसे पहले कवियों-शायरों से जान-पहचान करता हूँ. गीत
गीत को अच्छी तरह से समझता है. इसके अलावा मैं हमवतनों से मिलने की कोशिश करता
हूँ,
अगर वे वहाँ होते हैं. बेशक यह सही है कि विदेशों में हमवतन भी भिन्न-भिन्न
हैं. लेकिन हमवतनों के प्रति घमंड को मैं इस कारण बर्दाश्त नहीं कर सकता कि वे
भिन्न-भिन्न हैं. मेरी उनसे तुर्की, सीरिया और पश्चिमी
जर्मनी में तथा कितनी ही दूसरी जगहों पर मुलाकात हुई.
कुछ
दागिस्तानी तो शामिल के वक्त में ही अपनी मातृभूमि से दूर चले गए थे. वे अपने
घर-बार छोड़कर उस सुख की तलाश में चले गए थे जो उन्हें अपने वतन में नहीं मिला था.
दूसरे
इसलिए चले गए कि उन्होंने क्रांति को नहीं समझा या समझ गए, लेकिन डर गए. कुछ ऐसे थे जिन्हें खुद क्रांति ने ही बाहर निकाल दिया.
चौथी किस्म के लोग भी हैं जो एकदम तुच्छ, दयनीय और
पथ-भ्रष्ट हैं. इन्होंने महान देशभक्ति के युद्ध में मातृभूमि के साथ गद्दारी की.
भिन्न-भिन्न
दागिस्तानियों से मिला हूँ मैं. तुर्की में तो दागिस्तानी गाँव में भी गया था.
'हमारे यहाँ भी एक छोटा-सा दागिस्तान है,' इस गाँव
के वासियों ने मुझसे कहा.
'नही, आप ठीक नहीं कह रहे हैं. दागिस्तान तो सिर्फ
एक ही है. दो दागिस्तान नहीं हो सकते.'
'तो तुम्हारे ख्याल में हम कौन हैं, कहाँ से आए हैं?'
'हाँ, आप कौन हैं और कहाँ से आए हैं?'
'हम कारात, बतलूख, खूँजह,
आकूश, कुमुख, चोख और
सोगरात्ल के रहनेवाले हैं. हम दागिस्तान के भिन्न गाँवों के हैं, ठीक उसी तरह, जिस तरह वे जो हमारे गाँव के कब्रिस्तान
में हमेशा के लिए सोए हुए हैं. हम भी एक छोटा-सा दागिस्तान हैं!'
'आप - कभी थे. कुछ अभी भी दागिस्तानी बने रहना चाहते हैं. शायद ये भी
दागिस्तानी हैं?' मैंने गोत्सीत्स्की अलीखानोव और
उजून-हाजी की तस्वीरों की तरफ इशारा करते हुए पूछा.
'अगर दागिस्तानी नहीं तो कौन हैं ये? ये हमारे ही
लोगों में से हैं, हमारी ही भाषा बोलते हैं.'
'दागिस्तान इनकी भाषा नहीं समझ पाया और ये दागिस्तान की भाषा.'
'हर कोई अपने ही ढंग से दागिस्तान को समझाता है. हर किसी के दिल में अपना
दागिस्तान है.'
'लेकिन दागिस्तान हर किसी को अपना बेटा नहीं मानता.'
'किसे मानता है?'
'वहाँ हमारे बारे में क्या कहा जाता है?'
'ऐसे पत्थर, जो दागिस्तान के निर्माण के वक्त उसकी
इमारत की दीवार में नहीं चुने जो सके और फालतू पड़े रहे. ऐसे पत्ते जिन्हें पतझर
की हवा उड़ा ले गई, ऐसे तार, जो पंदूरा
के मुख्य तारों के साथ एक ही सुर में नही बज सके.'
तो
ऐसे बातें कीं मैंने विदेशों में रहनेवाले हमवतनों से. उनमें अमीर भी हैं, गरीब भी, दयालु भी, क्रोधी भी,
ईमानदार और बेईमान भी, धोखे में आनेवाले और
धोखा देनेवाले भी. उन्होंने मेरे सामने लेज्गीन्का नाच नाचा, मगर खंजड़ी पराई थी.
जब
हम यह कहते हैं कि दागिस्तान में हम पंद्रह लाख हैं तो उन लोगों को नहीं गिनते
हैं जिनका ऊपर उल्लेख किया गया है.
जब
मैं सीरिया से रवाना हो रहा था तो एक अवार औरत मुझसे लगातार यह अनुरोध करती रही कि
मैं गेर्गेबिल गाँव में खूबानियों के पेड़ को हाथों से छूकर उसे नमस्ते कहूँ.
संगमरमर
सागर के तट पर अवार जाति के कुछ बच्चों ने, जिनका बाप
हज करने मक्का गया था, मुझसे कहा -
'हमारे लिए तो दागिस्तान ही मक्का है. मक्का हो आनेवाले को हाजी कहा
जाता है. लेकिन हमारे लिए तो अब वही हाजी है जिसे दागिस्तान हो आने का सौभाग्य
प्राप्त हुआ है.'
मखाचकला
में मेरे पास एक ऐसा ही हाजी आया था जो चालीस साल तक अपनी मातृभूमि से दूर रहा था.
'कहो, कैसा लगा तुम्हें यहाँ?' मैंने उससे पूछा. 'दागिस्तान बदल गया न?'
'अगर मैं वहाँ यह सब कुछ बताऊँगा तो लोग यकीन नहीं करेंगे. लेकिन मैं उनसे
एक ही बात कहूँगा - दागिस्तान कायम है.'
मेरा
दागिस्तान कायम है. वह जनतंत्र है. उसमें जनगण हैं, भाषा
है, नाम हैं, रीति-रिवाज हैं. ऐसा है
दागिस्तान का भाग्य. शादियाँ होती हैं, पालने झुलाए जाते
हैं, जाम उठाए जाते हैं, गाने गाए जाते
हैं.
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