सतयुग, कविता और एक रुपया
- अष्टभुजा शुक्ल
जैसे
कि एक रूपये माने चूतियापा यानी कि कुछ भी नहीं
वैसे
ही एक रूपये माने बल्ले-बल्ले यानी कि बहुत कुछ
और
कभी-कभी सब कुछ
निन्यानबे
पैसे सिर्फ बाटा वालों के लिए अब भी एक क़ीमत है
हक़ीक़त
यह है कि एक रूपया
एक
कौर या सल्फॉस की गोली से भी कम क़ीमत का है
एक
रूपये का एक पहलू एक रूपये से भी कम है
तो
दूसरा पहलू अशोक-स्तम्भ यानि कि समूचा भारत
और
भारतीयता की क़ीमत बाटा के तलवों से भी नीचे है
उसके
नीचे नंगी इच्छाएँ कफ़न के लिए सिसक रही हैं
आधा
भारत एक रूपये से शुरू होकर सिर्फ़ धकधकाता है
और
भिवानी की तरह सिकुड़कर एक रूपये तक सिमट जाता है
गर्मियों
में इतनी ठंडी किसी कोने में रख देने की चीज़ है
जैसे
बेइमानियाँ बहुत जतन से रखी जाती हैं
वहीं
पर अब एक रूपये क़बूल करने में गोल्लक मुँह बिचकाता है
और
बिजली नहीं रहती तो जनरेटर से फ़ोटो कॉपी करने वाले
एक
का तीन वसूलते हैं
एक
रूपये तेल का दाम बढऩे से दस मिनट लेट से निकलते हैं
लोग
घर से कि इतनी तेज़ उडऩे लगेंगी सवारी गाडिय़ाँ
कि
दुर्घटनाओं की ख़बरों से पटे मिलेंगे सुबह के अख़बार
न
एक रूपये में अगरबत्ती न नहाने धोने का सर्फ़ साबुन
न
आत्मा की मैल छुड़ाने वाला कोई अध्यात्म
उखड़ी
हुई कैची का रिपिट लगाने में भी एक रूपया नाकाफ़ी
एक
पन्ने पर एक रूपया एक रूपया लिखकर भर डालने के लिए भी
कोई
एक रूपये का मेहनताना लेने के लिए तैयार नहीं होगा
बल्कि
मुफ़्त में वह काम करके अपमानित कर देगा
एक
रूपये को जैसे इसे केन्द्र में रखकर लिखी गई
यह
कविता नामक चीज़ जिससे पटा हुआ बाज़ार
ऐसी
कविताएँ यदि मर जाएँ बिना किसी बीमारी के
तो
दो घंटे भी ज़्यादा होंगे कुछ आलोचना को रोने के लिए
इससे
सिर्फ़ इतना भर नुकसान होगा कि
विलुप्त
हो जाएगी कवियों की नस्ल और तब खाद्यान्न का संकट
कुछ
कम झेलना पड़ेगा इस महादेश की शासन व्यवस्था को
ऐसी
कविताओं की एक खासियत ये आलोचनाहंता है
दूसरी
यह हो सकती है कि किसी प्रकार की उम्मीद की
जुंबिश
से भी ये समाज को काफ़ी दूर रखती हैं
जैसे
हमारे समय का कवि ख़ुद को काफ़ी दूर रखता है अपने समाज से
आने
वाला समय शायद साहित्य के इतिहास को कुछ इस
तरह
रेखांकित करेगा कि हमारा समय एक कविता-शून्य समय था
इसीलिए
यह कविता के लिए सबसे बेचैन रहने वाले समय के रूप में
जाना
जाएगा और विख्यात होगा उतना ही जितना कि
अपने
तमाम अवमूल्यन के लिए कुख्यात हो चुकी है एक रूपये की मुद्रा
फिर
भी अरबों की संख्या भी नहीं काट सकती एक विषम संख्या को
क्योंकि
एक-- एक आधारभूत विषम संख्या है
वैसे
ही जब मर जाएगी एक रूपये की मुद्रा तो उसकी अन्त्येष्टि में
माचिस
की एक तीली भी ख़र्च नहीं करनी पड़ेगी लेकिन
तबाही
मचेगी वह कि रहने वाले देखेंगे तांडव
और
मन ही मन मनाएँगे कि हे प्रभू, हे
लोकपाल, हे पूँजीपुत्र
कि
क़ीमतें चीज़ों की या कवियों की
किसी
भी विधि से, अनुष्ठान
से या किसी अनियम से भी
घट
जाती एक रूपये तो वापस आ जाता बल्ले-बल्ले
वापस
आ जाती हमारी बिकी हुई कस्तूरी, केवड़ा
और
जितनी भी महकने वाली चीज़ें, हमारी
दुनिया से ग़ायब हो चुकी हैं
वैसे
ज़्यादा से ज़्यादा सच बोलने के इन दिनों में
झूठ
क्या बोला जाय पाप बढ़ाने के लिए
क्योंकि
अपराध तो वैसे ही आदतन इतना बढ़ चुका है
कि
घटते घटाते कम से कम हाथी जितना बचेगा ही
इसलिए
कहना पड़ता है कहकुओं को कि
एक
रूपये के मर जाने से दुनिया किसी
संकट
में नहीं फँसेगी
क्योंकि
उसके विकल्प के रूप में अब चलाई जा सकती है
हत्या, बेरोज़गारी, बलात्कार और आत्महत्या में
से कोई भी एक चीज़
और
समाज की जगह थाना, एन०जी०ओ०, कैफ़े साइबर, बार
या
कोई राजनीतिक पार्टी इत्यादि
लेकिन
उखड़ी उखड़ी बातों के झुंड से
अगर
निकल आए काम की एक कोई पिद्दी-सी बात भी
तो
मानना पड़ेगा कि कविता की धुकधुकी अभी चल रही है
और
अगर एक रूपये क़ीमतें घट जाएँ किसी भी अर्थशास्त्र से
तो
फिर वापस आ जाएगा सतयुग
वानर
सबके कपड़े प्रेस करके आलमारियों में रख देंगे
शेर
आएगा और कविता लिखते कवियों को बिना डिस्टर्ब किए
साष्टांग
करके गुफ़ा में वापस लौट जाएगा
सफाईकर्मियों
को शिमला टूर पर भेजकर
राजनीति
के कार्यकर्ता गलियों में झाडू लगाएँगे
पुलिस
की गाड़ियाँ प्रेमियों को समुद्रतट पर छोड़ आएँगी
पागुर
करते पशु धरती पर छोटे-छोटे बताशे छानेंगे
बादल
कहेंगे हे फसलों तुम्हें कितने पानी की दरकार है
और
वह साला सतयुग राम नाम का जाप करने
या
रामराज्य पर कविता लिखने वाले महा-महाकवियों की वाणी से नहीं
बल्कि
चीज़ों की क़ीमतें एक रूपये घट जाने से आएगा...