ढिनचैक पूजा, ढिनचैक
नेता और ढिनचैक पत्रकार
- राजेश जोशी
ढिनचैक पूजा, सेल्फ़ी
मैंने ले ली आज, दारू, दारू, दारू, दिलों का शूटर, है मेरा
स्कूटर
कल रात से ही समाधि की अवस्था में हूँ. न जाने
कैसे साइबर बीहड़ में भटकते हुए मैं ढिनचैक पूजा तक पहुँच गया और उनके एक नहीं
तीन-तीन गाने (गाने?) सुन बैठा: 'सेल्फ़ी मैंने ले ली आज', 'दारू, दारू, दारू' और 'दिलों का शूटर, है मेरा स्कूटर.
किसी ने लिखा है कि अगर आप ढिनचैक पूजा को या
उनके 'कृतित्व' को नहीं जानते तो लानत है आप पर, आप 21वीं सदी में नहीं बल्कि गुफाओं में रह रहे हैं.
भूल जाइए कि ढिनचैक पूजा दिल्ली की एक युवती
हैं जो सुर-लय-ताल और छंद को चबाकर यूट्यूब पर जहाँ तहाँ पीक की तरह थूक देती हैं, जिस पर लाखों लोग आह या वाह करने लगते हैं और आपकी एक एक आह या वाह,
यहाँ तक कि गाली भी, ढिनचैक पूजा के बैंक
एकाउंट में खनखनाती अशरफ़ियों की शक्ल में गिरती हैं.
दिल्ली की ढिनचैक पूजा की तो तारीफ़ की जानी
चाहिए कि एक से एक प्रतिभाशाली कलाकारों के बीच उन्होंने अपनी रिवर्स-टैलेंट या 'उलट-प्रतिभा' का लोहा मनवा लिया है. पर यहाँ बात उस
ढिनचैक पूजा की हो रही है जो व्यक्ति नहीं बल्कि एक प्रवृत्ति का नाम है.
ये ढिनचैक पूजा मुँह चिढ़ाती हैं, उन सबको जो एक एक सुर को साधने की चाह लिए बरसों उस्ताद का हुक़्क़ा भरते
हुए बिता दिया करते थे. वो बड़े ग़ुलाम अली साहब की एंटी-थीसिस हैं. वो एक
फ़िनॉमिना हैं, इस सोशल-डिजिटल काल की उपज, अपने समय के सतहीपन का सच्चा प्रतिबिंब.
हिट्स, लाइक्स और
शेयर्स इस काल में ढिनचैक पूजाएँ सिर्फ़ यू-ट्यूब पर ही नहीं मिलतीं. राजनीति,
पत्रकारिता, लेखन, सरकार,
शिक्षा, सिनेमा, मनोरंजन,
हर इलाक़े की अपनी-अपनी ढिनचैकें हैं जो ऐलानिया कहती हैं: मैं तो
और घटिया, और बेसुरा, और वाहियात,
और बकवास गाने गाऊँगी, जो करना है कर लो. उनको
मालूम है उनके ऐसा कहने और जो कहा उस पर अड़े रहने के ही पैसे हैं. वही उनका
यूएसपी है.
उदाहरण देखिए: मौजूदा हिंदुस्तानी राजनीति की
सबसे क़द्दावर ढिनचैक जी कहते हैं मैंने अपने हार्डवर्क से हार्वर्ड के
अर्थशास्त्रियों को मात कर दिया. अर्थशास्त्रियों ही नहीं उन्होंने डॉक्टरों और
वैज्ञानिकों को भी बताया कि प्लास्टिक सर्जरी का चलन प्राचीन भारत में आम था, अगर न होता तो गणेश जी के कटे हुए सिर पर हाथी का सिर बैठाना कैसे संभव
हुआ?
उन्होंने सिकंदर को बिहार पहुँचाकर पहले भी
प्रतिमान गढ़े हैं.
अब अर्थशास्त्री, इतिहासकार, वैज्ञानिक और डॉक्टर बैठकर अपना सिर
धुनें लेकिन ढिनचैक जी ने तो अपना गाना सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया है, आप लाइक करें या मुँह निपोरें, उसकी बला से. उनके तो
नोट (इस मामले में वोट) खरे.
उत्तर प्रदेश में इसी नस्ल के कई ढिनचैक
नेताओं ने सामूहिक प्रयास करके ताजमहल के कुल-गोत्र की पुरानी बहस को फिर से जिला
दिया है. वो कोरस गा रहे हैं, ये है मंदिर नहीं है
ताज... ये है मंदिर नहीं है ताज... ताजमहल ये है ही नहीं… प्राचीन शिव मंदिर है!
ग़ौर से सुनें तो ये समूहगान बिलकुल वैसा ही
सुनाई पड़ता है जैसा ढिनचैक पूजा ने सेल्फ़ी लेने की ऐतिहासिक परिघटना का महात्म्य
समझाया है: सेल्फ़ी मैंने ले ली आज, सेल्फ़ी
मैंने ले ली आज... मेरे सिर पर रहता ताज, सेल्फ़ी मैंने ले
ली आज!
फ़र्क़ बस इतना है कि यू-ट्यूब की ढिनचैक पूजा
अकेली गाती हैं पर राजनीतिक ढिनचैक पूजाओं के कई संस्करण हैं, छोटे-बड़े, महिला-पुरुष, उत्तर
भारतीय, दक्षिण भारतीय, गृहस्थ-संन्यासी,
सिविलियन और फ़ौजी, सहजधारी और भगवाधारी और वो
सब बेसुरा समवेत गान तब तक गाते रहते हैं जब तक आप ये न कहें, कुछ तो बात है ढिनचैक पूजा में, वरना वो इतनी पॉपुलर
क्यों है?
इनमें से कुछ बात बात पर सीधे सिर काट लाने या
जीभ काट लेने की धमकी देकर पॉपुलर हुए हैं. कुछ की फ़ैन फॉलोइंग सिर्फ़ इस वजह से
बढ़ी क्योंकि उन्होंने सवाल किया, महात्मा गाँधी ने आख़िर
किया ही क्या? जैसे देशभक्त गाँधी वैसा ही नाथूराम गोडसे. तो
फिर गाँधी का गुणगान क्यों किया जाए?
हरियाणा के एक मंत्री ने ऐलान किया कि गाँधी
को अभी खादी ग्रामोद्योग के कैलेंडर से हटाया गया है, धीरे धीरे करेंसी नोटों से भी हटा दिया जाएगा. उनसे बड़ा ब्रांड नेम तो
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. गाँधी ने खादी के लिए ऐसा क्या कर दिया कि उनकी
तस्वीर कैलेंडर में छापी जाए?
इसी वर्ग में वो ढिनचैक नेता भी हैं जो अपनी
राजनीति को अपनी टोपी में पहनते हैं और दोनों हाथों से चमचमाती तलवारें भांजते, सबको मार डालने काट डालने की चिंघाड़ निकालते हुए राजनीति के स्टेज में
प्रवेश करते हैं. पर आख़िर में पता चलता है कि तलवारें काठ की थीं इसीलिए दुश्मन
पर चलने से पहले ही टूट कर गिर गईं.
पर ढिनचैक नेताओं की एक श्रेणी ऐसी भी है
जिन्हें न हिट्स की चाह है न लाइक्स की. जिन्हें न फ़ॉलोअर चाहिए और न पैसा.
उन्हें अपने ख़ानदानी बिज़नेस में भी कोई दिलचस्पी नहीं है. मगर ज़माना उन्हें
नेता बनाने पर आमादा है. वो कुछ कहें न कहें, दाद देने
वालों की पुरउम्मीद क़तारें वाह, वाह कहने को तैयार बैठी
रहती हैं.
और फिर वो ढिनचैक पत्रकार भी हैं जो रोज़ाना
शाम को आपकी टीवी स्क्रीन पर आठ खिड़कियाँ खोल, गिलोटीन
तैयार कर बैठ जाते हैं और पूरे राष्ट्र की ओर से जवाब तलब करना शुरू कर देते हैं.
सब को पता होता है कि गिलोटीन का गंडासा आज शाम किसके सिर पर गिराना है.
इनमें हर तरह के लोग हैं, उद्योगपति से सौ करोड़ का सौदा पटाते हुए पकड़े जाने पर तिहाड़ जेल की सैर
करने वाले, दंगों की रिपोर्टिंग में बहादुरी के झूठे क़िस्से
बयान करने वाले, अदालत की जगह ख़ुद फ़ैसला सुनाने और अदालत
से बार बार डाँट खाने वाले और प्रधानमंत्री के साथ सेल्फ़ी खिंचाने वाले. और इन
ढिनचैक पत्रकारों के लाखों ढिनचैक फ़ॉलोअर.
पुनश्च: आज से सौ डेढ़ सौ साल बाद जब ढिनचैक
पूजा के व्यक्तित्व और कृतित्व का मूल्यांकन किया जाएगा तब ही सबको समझ में आएगा
कि 'सेल्फ़ी मैंने ले ली आज' दरअसल एक कालजयी रचना थी
जिसमें सेल्फ़ी लेने में व्यस्त एक ऐसे आत्ममुग्ध समाज का वर्णन किया गया था जिसे
लगता था कि उसके सिर पर ताज रख दिया गया है और इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि
उसके पड़ोस में भात-भात चिल्लाती हुई एक लड़की भूखी मर गई.
(http://www.bbc.com से साभार)
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