Wednesday, December 13, 2017

मुँह भर पुकारे नहीं सुनेगी तू


रेल की पटरी
- इब्बार रब्बी

रेल की पटरी हो सुनसान
चांद आज नहीं निकले
कुत्ते भूँकते हों दूर
भगवान ग्लास फ़ैक्टरी का भोंपू
बोलने में देर हो
दूर-दूर तक कुछ नहीं
सिर्फ़ अंधेरा
ऐसे में वह
बस्ती से दूर आए
सूनी पटरी पर बैठे
फिर खड़ा हो और
मुँह भर पुकारे
नहीं सुनेगी तू


[1967]

2 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत खूब

'एकलव्य' said...

बहुत ही सुन्दर व कोमल भाव रचना का