Tuesday, January 2, 2018

भारत-पाकिस्तान उर्फ़ कौन है जो यह सब खेल रचता है

हल्द्वानी अमर उजालाकाम करने वाले जयप्रकाश पाण्डे यानी जेपी पिछले साल फरवरी में चीनी सरकार के पत्रकार एक्सचेंज कार्यक्रम में हिस्सेदारी करने चीन गए थे. ग्यारह महीने के प्रवास के बाद वे वापस हल्द्वानी में हैं. उनकी चीन यात्रा के संस्मरणों को विस्तार में बाद में छापा जाएगा. सबसे पहले पढ़िए उनकी चीन डायरी का एक ज़रूरी अंश 

बाएँ से दाएं : डॉन टीवी के रज़ा ख़ान, जेपी
और इंडिपेंडेंट न्यूज़ एजेंसी के जमीर अरशदी 

दोस्तो माफ करना! बेजिंग में हम साथ साथ थे. इस बीच कभी नहीं लगा कि हम दुश्मन देशों से हैं. खानपान, गीत संगीत, सस्कृति, चुटकले और किस्से हमारे सब एक हैं. कुछ शब्दों को छोड़ दें तो जुबान से भी हमको अलग नहीं किया जा सकता है. देश से बाहर हम सबसे अच्छे दोस्त और सहयोगी बन जाते हैं. अपने देश लौटते ही दुश्मन.

मैं बात कर रहा हूं पाकिस्तानी दोस्तों के बारे में. कभी कभी तो यहां तो यहां तक महसूस होने लगता है हमारी तरक्की की राह में सबसे बड़ी बाधा वे ही हैं. ऐसा हम ही नहीं सोचते हैं पाकिस्तानी भी हमारे प्रति यही नजरिया रखते हैं.

मैं नाम तो भूल गया वह पाकिस्तान रेडियो में डायरेक्टर थे 2014 में चीन में  मेरी किसी पहले पाकिस्तानी से मुलाकात थी. कैसे हैं जनाब पूछने पर उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा था देश से बाहर हम अच्छे दोस्त हैं. इस बार मैं दो पाकिस्तानी पत्रकारों के साथ करीब एक साल रहा. उनमें से डॉन मीडिया ग्रुप से रजा खान और  इंडिपेंडेंट न्यूज एजेंसी से जमीर अरशदी थे. एशियायी पत्रकारों के ग्रुप में हमारी अच्छी पटती थी. साथ खाना घूमना फिरना क्रिकेट खेलने से लेकर बार्डर की टेंशन पर चर्चा भी होती थी. वे अजमेर शरीफ सहित ताजमहल देखने के लिए भारत आना चाहते हैं.

हंसी मजाक में रजा अक्सर शोले फिल्म के डॉयलाग बोलता था तो जमीर भी हिंदी गाने गुन गुनाता था. अपने कार्यक्रमों में हमने साथ हिंदी गाने भी गाए. हमें गपियाते देख अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकन कई बार कौन भारतीय है और पाकिस्तानी इसका भेद करने में गच्चा खा जाते थे. कुछ तो सवाल भी करते थे आपके देशों की सीमा पर युद्ध जैसे हालात हैं मगर आप लोगों को देखकर लगता नहीं कि परस्पर विरोधी देशों से हैं. तब हमारा जवाब होता था यह आम जनता का नहीं हुकमरानों का वैमनस्य है. जिसकी सजा जनता को भी भुगतनी पड़ती है.

पिछले हफ्ते कुलभूषण जाधव के परिवार के साथ पाकिस्तान में हुई बदसलूकी के बाद कुछ न्यूज चैनलों की डिबेट में बार्डर के तनाव से कम हालात नहीं थे. हालांकि जाधव के परिवार के साथ हुए दुर्व्यवहार को सही नहीं ठहराया जा सकता है. इस मामले को लेकर मैं पाकिस्तानी दोस्तों से बात कर रहा था तो वे भी दोनों तरफ चैनलों पर युद्ध जैसे हालात बनाने वालों से चिंतित थे. उन्होंने बताया उनके दोस्त भी पूछते हैं भारतीय पत्रकारों के साथ उनके संबंध कैसे थे. रजा ने बताया कि दोस्ती के बारे में बताने पर कुछ को तो आश्चर्य भी होता है तब उनको बताना पड़ता है कि आम आदमी और सिस्टम को चलाने वालों के बीच का फर्क. रजा और जमीर के अलावा रैनमिन यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता की पढ़ाई करने आए पत्रकारों से भी दोस्ताना संबंध थे. 

कई बार हम सबका सवाल होता था हममें दुराग्रह या फिर दुश्मनी जैसा कोई भाव नहीं है तो फिर कौन है जो यह सब खेल रचता है.   
  

1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

जो दिखाया जाता है वो कहीं नहीं है
जो कहीं नहीं है वो दिखाया जाता है।