Thursday, March 8, 2018

यह दस्‍तक हत्‍यारे की है

मेरी दस्तक
- नवीन सागर

यह दस्‍तक हत्‍यारे की है
दूर किसी घर में उठी चीखों के बाद.

हर तरफ दम साधे
घरों के निहत्‍थे सन्‍नाटे भर हैं
हुआ क्‍या आखिर
कि चीखों के इस संसार में हर कोई अकेला
ऐसा जीना और ऐसा मारना!
इस तरह कि एकदम बेमतलब!

पाप के इतने चेहरे
ईश्‍वर का कोई चेहरा नहीं
बचाने वाले से बड़ा
मारने वाला आया!

एक बच्‍चा लातों की मार से
अपने मैल और कीचड़ में
मरता है रोज.
बेघर करोड़ों
सड़कों पर करते हैं कूच
कटोरे पर माथा पटकते मरते हैं बेपनाह.

ऐसे में मतलब क्‍या है मेरे जीवन का!
अगर मैं सांकल चढ़ाए बाहर को पीठ किए
भीतर को धंसता ही जाता हूं.
मतलब है क्‍या मेरे जीवन का!

मैं दरवाजा खोलता हूं
कि लड़ते-लड़ते नहीं दरवाजा खोलते-खोलते
मारा गया

बाहर पर कोई नहीं हथियार बंद कोई
बचा रह गया मैं
मौत के मुंह से लौटकर
जीवन के बंद दरवाजे पर

मेरी दस्‍तक!

यह दस्‍तक हत्‍यारे की है.

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