Sunday, July 8, 2018

एक जंगल था नवम्बर की धूप में नहाया हुआ

यात्रा
- एकांत श्रीवास्तव

नदियां थीं हमारे रास्ते में
जिन्हें बार-बार पार करना था

एक सूर्य था
जो डूबता नहीं था
जैसे सोचता हो कि उसके बाद
हमारा क्या होगा

एक जंगल था
नवम्बर की धूप में नहाया हुआ
कुछ फूल थे
हमें जिनके नाम नहीं मालूम थे

एक खेत था
धान का
पका
जो धारदार हंसिया के स्पर्श से
होता था प्रसन्न

एक नीली चिड़िया थी
आंवले की झुकी हुई टहनी से
अब उड़ने को तैयार

हम थे
बातों की पुरानी पोटलियां खोलते
अपनी भूख और थकान और नींद से लड़ते
धूल थी लगातार उड़ती हुई
जो हमारी मुस्कान को ढंक नहीं पाई थी
मगर हमारे बाल ज़रूर
पटसन जैसे दिखते थे

ठंड थी पहाड़ों की
हमारी हड्डियों में उतरती हुई
दिया-बाती का समय था
जैसे पहाड़ों पर कहीं-कहीं
टंके हों ज्योति-पुष्प

एक कच्ची सड़क थी
लगातार हमारे साथ
दिलासा देती हुई

कि तुम ठीक-ठीक पहुंच जाओगे घर 

2 comments:

Anita said...

बहुत प्यारी सी कविता

Harsh Bhardwaj said...

कबाड़खाना में अपनी कविताएँ भेजी जा सकती है?