हमारे समय के बड़े कवि की ताज़ा कविताओं
की सीरीज़ – 1
आसिफ़ा के नाम
-असद ज़ैदी
सलाम अरे आसिफ़ा!
तुमको मेरा और तुम्हारी ख़ाला का सलाम पहुँचे!
चुन्नो और नवाब भी सलाम कहते हैं...
ये हमारे बच्चे नहीं, तुम भी इनको नहीं जानती ... पर हैं बड़े ना-अहल.
तमाम नालायक़ बच्चों का सलाम पहुँचे तुम्हें और तुम्हारे घोड़ों को
वे जलन से मरे जाते हैं घोड़ों को
हरी चरागाह को
तुम्हारी आज़ादी को देख कर.
अगर ये पहुँच गए तुम्हारे पास तो
खूब कोहराम मचाएँगे
चरागाह मैं दौड़ लगाएँगे घास को
रौंद डालेंगे
उन्हें क्या मालूम घास का कडिय़लपन
और दानाई.
अगले वक्तों के बुज़ुर्गों का तुमको
प्यार—मीर-ओ-सौदा का
नज़ीर-ओ-अनीस, मिर्ज़ा नौशा, अन्तोन और अल्ताफ़ का
और बीसवीं सदी के तुम्हारे लोग, उनका—नाज़िम, पाब्लो, फेदेरीको,
बर्तोल्त, रवि, फैज़, गजानन का
मक़बूल, अमीर, महमूद, थियो
यूनानी-ओ-अब्बास-ए-ईरानी का
उदास और मनहूस फ़रिश्तों—सेसर, फ्रांत्स, पाउल का
शक्की पर रहमदिल—सआदत, रघुवीर, तदेऊश का
और हर किस्म की पुरानी ख़वातीन का—आन्ना, रोज़ा, अनीस, मरीना, ज़ोहरा, विस्वावा,
अख्तरी, बाला, कमला, मीना, गीता, नरगिस, स्मिता...
फेहरिस्त है कि ख़त्म होने को नहीं आती.
तुमने इनमें किसी का नाम नहीं सुना, ये भी तुम्हें कहाँ जानते थे!
तो मामला बराबर. सब कह रहे हैं, भई, अदब के घर में
आसिफ़ा के लिए अम्नो-अमान!
जो बात हो प्यार की हो—चंचल, शोख़, संजीदा, ख़ामोश
और मुर्दा. प्यार तो प्यार है...
खोया प्यार भी हमेशा प्यार ही रहेगा.
बहुत बदनसीबी देखी है इन बुज़ुर्गों
ने, पर तुम्हें देखकर सब खुश होंगे
सआदत हसन कहेंगे लो यह आई हमारी
नन्ही शहीद!
खुशनसीब लोगों का क़िस्सा कुछ और
है—जिन्होंने मैदान मारा वही ना-खुश हैं.
साल उन्नीस सौ सैंतालीस... अक्टूबर
और नवम्बर के वो दो महीने.
एक दिन शुमार मे जो इकसठ थे, दो हफ्तों में चालीस से नीचे आ गए—
ऐसा था डोगरा राज का जनसंख्या
प्रबंधन.
मृतक—दो लाख सैंतीस हज़ार, उजड़े और लापता—छह लाख.
तुम्हें मालूम है कौन था हरि सिंह
और वो मेहर चन्द, प्रेम नाथ, यादविन्दर सिंह...?
कोई बात नहीं—वे सब जा चुके हैं अब, सारे कातिल, और उनके गुर्गे.
उनकी औलाद अब खुद को मज़लूमों में
गिनती है.
ये लोग कहते हैं हम दुखी हैं, हम वंचित हैं. दरअस्ल वो सच कहते हैं.
कैसी तकलीफों में गुज़री है कर्णसिंह
की ज़िन्दगी! कहो तो सब करते हैं हा हा हा!
अब मनहूस महबूबा ही को देखो— वह
नहीं समझ पाती कि हर आफ़त हर बला
हर जुर्म उसी के माथे पर क्यों मढ़
दिया जाता है उसने किया क्या है,
क्यों हर शै और हर शख्स उसे ना-खुश
करने को आमादा है!
और हाँ आसिफ़ा, उस अलबेले अरिजीत सेन कलाकार को अपना समझना
वह अजीबो-गरीब तुम्हें चरागाह में
मटरगश्ती करता दिखाई देगा
अपने किसी घोड़े को बता देना उसके
पास जाकर शराफ़त से हिनहिनाए
जब वह तुम्हारे घर के पास से गुज़रता
हो
तो उसे रोककर कहना सिगरेट बुझा दे
और
उसके हाथ में थमा देना साफ़ पानी का एक गिलास.
24.4.2018
सम्पादकीय नोट :
1. अासिफ़ा जम्मू-कश्मीर के पशुपालक बाकरवाल (गुज्जर) समुदाय की अाठ वर्षीय बच्ची थी। 10 जनवरी 2018 के दिन कठुअा ज़िले की हीरानगर तहसील के कसाना गाँव के पास जंगल के किनारे एक चरागाह में अपने घोड़ों को चराने गई, फिर वापस नहीं अाई. कुछ दिन बाद उसका शव जंगल में बरामद हुअा। इस मामले में अाठ लोगों को गिरफ़्तार किया गया. जाँच के नतीजे बताते हैं कि अपहरणकर्ताअोँ ने सूनी जगह पर बने एक मंदिर के गर्भगृह में सात दिन तक उसे बेहोश रखकर उसके साथ बलात्कार किया, फिर उसका गला घोंटकर पत्थर से सर कुचल दिया अौर उसकी लाश को फेंक दिया. मुख्य अपराधियों में मंदिर का पुजारी (अवकाशप्राप्त सरकारी मुलाज़िम), कई पुलिस कर्मचारी अौर एक नाबालिग लड़का भी शामिल हैं. अप्रैल में जब पुलिस का जाँच दल अदालत में अारोप-पत्र दाखिल कराने पहुँचा तो कठुअा के वकीलों नें जबरन उनका रास्ता रोका. जम्मू इलाक़े के अनेक हिन्दुत्ववादी संगठनों ने अारोपियों के समर्थम में अांदोलन अौर प्रदर्शन शुरू कर दिए. कश्मीरी पंडित समुदाय के अति-दक्षिणपंथी संगठन पनून कश्मीर के नेताअों का रुख़ भी बलात्कारियों के समर्थन का था। राज्य की साझा सरकार में शामिल भारतीय जनता पार्टी के दो मंत्री खुलकर अारोपियों के समर्थन में उतर अाए. इनमें एक मंत्री वही था जिसने दो साल पहले खेती-बाड़ी की किसी समस्या को लेकर प्रतिनिधिमंडल में अाए गुज्जर सदस्यों को संबोधित करके कहा था, “गुज्जरो, 1947 को भूल गए क्या?” इस तरह वह बाकलवाल समुदाय को शेष भारत में अब तक अज्ञात उस हत्याकांड की याद दिला रहा था जिसके तहत डोगरा राजा हरि सिंह की फ़ौजों ने हिंदू साम्प्रदायिक दस्तों के साथ मिलकर जम्मू डिवीज़न में क़रीब दो लाख सैंतीस हज़ार मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया था, अौर कुल मिलाकर छह लाख लोगों को रियासत से बाहर धकेल दिया था. जम्मू डिवीज़न अाबादी के हिसाब से उस समय मुस्लिम बहुल था। इस जातीय सफ़ाये के बाद वहाँ मुस्लिम जनसंख्या 61 प्रतिशत से गिर कर 38 प्रतिशत रह गई. वैसी ही हत्यारी शक्तियाँ अाज अासिफ़ा के क़ातिलों के पक्ष में खड़ी हैं.
2. इस कविता में इतिहास अौर वर्तमान की बहुत सी हस्तियों के नाम अाए हैं। अधिकांश को उनके पहले नाम से याद किया गया है। यहाँ उनके पूरे नाम क्रमानुसार दिये जा रहे हैं.
अासिफ़ा,
चुन्नो (काल्पनिक), नवाब (काल्पनिक), मीर तक़ी ‘मीर’, मिर्ज़ा मुहम्मद रफ़ी ‘सौदा’, नज़ीर अकबराबादी, मीर बब्बर अली अनीस,
मिर्ज़ा असदुल्लाह ख़ाँ ‘ग़ालिब’, अन्तोन चेख़व, ख़्वाजा अल्ताफ़ हुसैन ‘हाली’, नाज़िम हिकमत, पाब्लो नेरूदा, पाब्लो पिकासो, फ़ेदेरीको गार्सीया लोर्का, बेर्तोल्त ब्रेख़्त, रवीन्द्रनाथ टैगोर, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, गजानन माधव मुक्तिबोध, मक़बूल फ़िदा हुसैन, (उस्ताद) अमीर ख़ाँ, महमूद दरवीश, थिअो अंजीलोपुलोस, अब्बास कियारुस्तमी, सेसर वाय्येख़ो, फ़्रांत्स काफ़्का, पाउल सेलान, सअादत हसन मन्टो, रघुवीर सहाय, तदेऊश रूज़ेविच, अान्ना अख़्मातोवा, रोज़ा लग्ज़ेमबर्ग, अनीस क़िदवाई, मरीना त्स्वेतायेवा, ज़ोहराबाई अागरेवाली, विस्वावा शिम्बोर्स्का, बेगम अख़्तर, बालासरस्वती, कमला दास सुरैया, मीना कुमारी, गीता दत्त, नरगिस, स्मिता पाटील, हरि सिंह (डोगरा राजा), मेहर चन्द महाजन, प्रेमनाथ डोगरा, यादविन्दर सिंह (पटियाला का राजा), कर्ण सिंह, महबूबा मुफ़्ती, अरिजीत सेन.
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सलाम आसिफा
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