Tuesday, October 2, 2007

बदरी काका ने शादी क्यों नहीं की : आखिरी किस्त

काका के ऐसा पूछने पर गुजराती सेठ की आंखों में आंसू भर आये और उसने कहा : "ऐसा है बदरी जी भगवान् ने सब कुछ दिया। करोड़ों की दौलत दी। शोहरत दी। बस एक बेटा नहीं दिया ..."

सेठ जी के अपनी बात पूरी करने से पहली ही बौखलाते हुए बदरी काका ने सेठ से गाडी रोकने को कहा। "अगर आप मुझे अपना बेटा बनाना चाहते हैं तो इस बात को भूल जाइए। मेरे पास वैसे ही हजारों काम करने को होते हैं। आप जाएँ सेठ जी। मैं खुद ही अल्मोड़ा पहुंच जाऊंगा। ..."

"ऐसा नहीं है बदरी जी। मेरी एक बेटी है बस। सोच रहा हूँ कि उसके हाथ जल्दी से पीले कर दूँ और हम मियाँ बीवी हरिद्वार किसी आश्रम में अपना बुढापा काटें। लेकिन इतनी बड़ी जायदाद सम्हालने को कोई योग्य वर भी तो चाहिए होता है। उसी की तलाश में इतने साल भटकने के बाद आखिरकार मुझे भगवान् ने आप के दर्शन करा दिए। मैं तो बस यह चाहता हूँ कि आप मेरे दामाद बन जाएँ और मुझ बदनसीब के जीवन की नैया पार लगा दें। मैं अपनी सारी ज़ायदाद आपके नाम करना चाहता हूँ। ..."


"यानी आप मुझे घरजवाईं बनाने ले जा रहे हैं। वह भी पैसों का लालच देकर! ना सेठ जी, मुझे माफ़ करें ..."


"आप मेरी बात तो सुनिये। देखिए हम दो जन तो हरिद्वार जा के रहेंगे। मैं तो आपको देखते ही समझ गया था कि आप कोई पहुंचे हुए महात्मा हैं। मेरा एक प्रस्ताव है। मेरी सारी सम्पत्ति बेच कर आप अल्मोड़ा में बेसहारा लोगों के लिए कोई आश्रम खोल लें या और किसी परोपकार कार्य में उस पैसे को लगा दें। लेकिन मुझे पता है मेरी बेटी को आप से बेहतर वर इस जनम में तो नहीं मिल सकता। एक बार हाँ कह दीजिए बदरी जी। मैं आप के चरण छूता हूँ।"


सेठ की इस बात से काका के मन में दो बातें आईं: एक तो यह कि ज़रूर इस सेठ की लड़की में बीसियों खोट होंगे जो यह इतनी दूर अल्मोड़ा से उस के लिए वर खोज कर ले जा रहा है। दूसरा यह कि अगर पहले वाली बात सच नही है तब सेठ का प्रस्ताव विचार करने योग्य है।

"देखिए साब। बिना लड़की देखे मैं हाँ या ना नहीं कह सकता।" बदरी काका कह गए।


"इसी लिए तो आपको ले जाने आया हूँ बदरी जी। आप कनुप्रिया को एक बार देख कर पसंद कर लें। तभी हाँ कहें। मेरी बेटी आपको पसंद न आए तो मैं खुद आपको वापस अल्मोड़ा छोड़ कर आऊंगा।"


कई दिनों कि यात्रा के बाद आखिरकार दोनों अहमदाबाद पहुंचे। सेठ जी के महल जैसे घर में सैकड़ों नौकर चाकर थे। बैठक में सोने और चांदी से बनी मेज कुर्सियां थीं। उनकी पत्नी ने बदरी काका का तिलक लगा कर स्वागत किया।

आखिरकार वह क्षण आ ही गया जब सेठ जी की बेटी हीरे जड़े कपों में चाय ले कर आई। एक हाथ से उस ने ट्रे सम्हाली हुई थी जबकि दूसरे हाथ की सबसे छोटी उंगली उसने बांये गाल पर हलके से छुआ भर रखी थी।

बदरी काका ने इतनी सुन्दर लड़की की कभी सपने तक में कल्पना नहीं की थी। उन्हें अपनी तकदीर पर भरोसा नहीं हो रहा था। जब सेठ और सेठानी दोनों को अकेला छोड़ कर बाहर गए तो बदरी काका और कनुप्रिया के बीच एक घंटे का बेहद बुद्धिमत्तापूर्ण वार्तालाप हुआ। कनुप्रिया ऑक्सफोर्ड में पढ़ कर आयी थी लेकिन एक भारतीय नारी के उस में सारे गुण मौजूद थे। उसे शास्त्रीय संगीत का अपार ज्ञान था और वह खुद गाती भी थी। बातचीत के दौरान उसने 'ना जाओ सैंया' को चार अलग अलग रागों में गा कर भी सुनाया। भारतेंदु हरिश्चंद्र और जयशंकर प्रसाद जी उन के घर हर साल महीना महीना भर रहने आया करते थे।

लेकिन इस पूरे समय कनुप्रिया ने दूसरे हाथ की सबसे छोटी उंगली को अपने बांये गाल से एक पल को भी नहीं हटाया। बदरी काका संकोचवश इसका कारण नही पूछ सके। लेकिन उनके मन में आता रहा कि कहीं इस उंगली के नीचे कोढ़ तो नहीं। या क्या मालूम उंगली जन्म से ही उसके गाल से चिपकी हुई हो ... या ...

बाद में कनुप्रिया के चले जाने के बाद सेठ जी ने बदरी काका से उनके फैसले के बारे में पूछा। कुछ देर सोचने के बाद काका ने एक बार फिर से कनुप्रिया को देखने की इच्छा व्यक्त की।

कनुप्रिया आई तो सेठ जी जाने लगे। "आप यहीं बैठें सेठ जी।" कनुप्रिया की उंगली अब भी उसी तरह गाल पर थी।

"सेठ जी अपनी बेटी से कहें कि गाल से उंगली हटाए।"


सेठ जी ने कनुप्रिया को इशारा किया तो कनुप्रिया ने उंगली हटा दी। गाल पर सुई की नोक बराबर एक ताज़ा फुंसी थी। बदरी काका ने एक पल फुंसी को देखा फिर कनुप्रिया को। सोने से बनी कुर्सी से उठते हुए बदरी काका ने सेठ जी से कहा :

"बाक़ी तो सब ठीक है सेठ जी। लेकिन फुंसी नहीं चलेगी."

2 comments:

शिरीष कुमार मौर्य said...

Badari kaka se vida lena dukhad hai, ise aakhiri kist na kaho malik, Kuchh aage ki gunjaish bhi chhodo.

महेन said...

अरे यार बद्री काका तो भोत ओथेंटिक गपोड़ी हुए। हम तो खाली रिल्के को फ़ालो करने वाले ठहरे। वो कह गए बल कविता लिखने के लिये बहुत से नगर-शहर देखने चाहिये। फ़सक मारने के लिये तो ये और भी जरूरी हुआ दाज्यू।
बद्री काका की फ़सक जारी रहे।