Monday, October 22, 2007
नए कबाड़ी का स्वागत
कबाड़खाने में आज एक बहुत शानदार कबाडी का आगमन हुआ है। अजित वडनेरकर जी का ब्लॉग ' शब्दों का सफर ' मुझे व्यक्तिगत रुप से हिन्दी का सबसे समृद्ध और श्रमसाध्य ब्लॉग लगता रहा है। उन से बहुत प्रभावित हूँ मैं। हालांकि उन से मेरी कोई मुलाक़ात वैसे नहीं है पर उनके काम को देख कर मुझे अच्छा लगा। कुछ दिन पहले मैंने उन्हें यहाँ भी कुछ उम्दा कबाड़ भेजने की दरख्वास्त की थी। मुझे आशा नहीं थी कि वे मेरे न्यौते को स्वीकार करेंगे। लेकिन आज वे यहाँ आ गए हैं और कबाड़खाना अपने को और अधिक समृद्ध देख कर प्रसन्न है। अजित भाई, तहे दिल से आपका शुक्रिया और कबाड़ी जमात में शामिल होने पर बधाई। कबाड़खाने के बाक़ी सम्मानित सदस्यों से मेरा अनुरोध है कि 'शब्दों का सफर' एक बार ज़रूर करें। फिर आप बार बार उस सफर का रुख करेंगे : मेरी ग्रांटी हैगी।
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1 comment:
अड्डा है भई अड्डा है
कबाड़ियों का अड्डा है
खोदा है खुद ही हमने
गडृढा है गहरा है
लगाया कबाड़ पर पहरा है
तिरंगा इस पर लहरा है
मन का तीखा जहरा है
चेहरों पर लगा कान बहरा है
फिर भी साहित्य का सहरा है
न तेरा है न मेरा है पीला हरा है
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