- अरिंदम कुमार, कक्षा - 6
तारेजमीं पर फिल्म देखी। वो भी चाणक्या में। सिनेमा हॉल हमेशा के लिए बंद होने से एक दिन पहले। फिल्म अच्छी थी। लेकिन और अच्छी हो सकती थी। इसका अंत दूसरी तरह से होना चाहिए था।
ईशान या ईशू पढ़ने लिखने में तेज नहीं है। लेकिन फिल्म के अंत में दिखाते हैं कि वो पेंटिंग में सबसे तेज है। इसलिए सारे बच्चे और टीचर्स भी उसके लिए क्लैप करते हैं। उसके माता पिता भी उसे बहुत प्यार करने लगते हैं क्योंकि वो पेंटिंग कॉम्पिटीशन में जीत जाता है।
लेकिन फिल्म तो अच्छी तब बनती जब ईशान अच्छा पेंटर भी नहीं बनता या कुछ भी अच्छा नहीं कर पाता तो भी लोग उसे समझते और प्यार देते। हर बच्चा कुछ न कुछ बहुत अच्छा करे ये उम्मीद नहीं करना चाहिए। ये जरूरी तो नहीं है कि वो कुछ बढ़िया करे ही। कोई भी बच्चा एवरेज हो सकता है, एवरेज से नीचे भी हो सकता है। लेकिन इस वजह से कोई उसे प्यार न दे ये तो गलत है।
7 comments:
वाह अरिंदम , क्या बात कही है ! वह प्यार ही क्या प्यार है जो केवल तभी मिलेगा जब तुम किसी ना किसी क्षेत्र में सबसे आगे हो ! फिर क्या आम मनुष्य प्यार नहीं पा सकेगा ? मै तुम्हारी बात से बिल्कुल सहमत हूँ ।
घुघूती बासूती
प्यार तो शर्तों पर नहीं किया जाना चाहिये ना। मैं पूरी तरह से सहमत हूं तुमसे। प्यार पाना हक है एक बच्चे का और वो उसे मिलना ही चाहिये।
अरे वाह बात में तो दम है
yaar ARINDAM YE SAB BADE LOG BEHKA RAHE HAIN TUMKO , DEKHO PYAR BHI KISI CHEEZ KE BADLE ME HI MILTA HAI . TUM ABHI SE YE SAMAJH LOGE TO BADE HOKE KABHI PYAR VYAR KE CHAKKAR ME JIVAN BEKAR NAHI KAROGE AUR BADHIYA LIFE JEEOGE.
arindam,
baat main dum hai,aisha nain hai ki jo log ordinary hotay hai log unhay pyar nahi kartay,kam say kam maa baap to kartay hai hai,lakin aaj average say achha karna survival ka sawaal hai,koshis karnay main kya harz hai,hota hai to accha,nahin hota to koi baat nain,kam say kam pryas to kiya!!
bhashan bahut hua by by.
happy new year,is saal man laga kar padhana.
taaraa Zammen par hai rahtay hai!!!!
DINESH SEMWAL
umra aur samajhdaari,jaroori nahi ki dono ek saath badhein.aapne saabit kiyaa.
umra aur samajhdaari,jaroori nahi ki dono ek saath badhein.aapne saabit kiyaa.
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